एक महाशय का प्रश्न है कि कैसे जाने हम कहां है?हमारा कितना उत्थान या पतन हुआ है अपने आप कैसे जाने ?
श्री महाराज जी के श्री मुख से ( हमारे लिए अति महत्वपूर्ण ) -
एक महाशय का प्रश्न है कि कैसे जाने हम कहां है?
हमारा कितना उत्थान या पतन हुआ है अपने आप कैसे जाने ?
और ए सही है अपने आप कोई नही जान सकता !
इसलिय कि जिस मन में उचाई निचाई होती है उत्थान पतन होता है वो मन अपने खिलाप जजमेंट नही दे सकता |
अर्थात हमारा मन गड़बड़ है और उसी मन से हम पुछ रहे है - क्यों , गड़बड़ है ?
तो वो मन कहेगा नही कहां गड़बड़ है हम तो विल्कुल ठीक है|
सो ए तो भगवान और महापुरुष ही जान सकता है कि कौन कहां है |
लेकिन थोड़ा बहुत आइडिया फिलौसोफी के द्वारा हो सकता है | और वो होना भी चाहिए ,
सबको खुद को नापना चाहिए
तो वो क्या है नपना ?
" यावत् पापयैस्तु मलीनम्
ह्रदयं ताव देव ही :"
ब्रह्मवैवर्त पुराण मे कहा गया कि जिसका ह्रदय जितना पापयुक्त होता है वो उतना ही गंदी वाते सोचता है , सुनता है , और वोलता है |
संसारी बाते , निदंनीय बाते , पाप की बाते सुनना, सोचना , वोलना , पहचान है कि हमारा मन कितना गंदा है |
पहली बात तो हम दुसरे में दोष देखने की सोचते है ।
बस पक्का प्रमाण है कि हमारा मन पापयुक्त है हम अपने गंदगी को नही सोंचा दुसरे का क्यों सोचा ?
दुसरे के प्रति अगर गंदी भावना हुई , दोष भावना हुई , दुसरे के प्रति राग , द्वेष उत्पन्न हुई तो इसका क्या मतलव की तुम निर्दोष हो क्या ?
और निर्दोष तो भगवत प्राप्ति के पहले कोई नही ! तुम अंतर्यामी हो क्या जो दुसरे के ह्रदय की बात जानते हो कौन क्या है , कैसा है ?
फिर तुम्हारा मन क्यों सोचा दुसरे में दोष ????
सोचता है कि ए इसके पास बार बार जाता है
अब अगर उसका मन पवित्र है अच्छी लाईन में है भगवत बिषय में है तो सोचेगा की - ये सतसंग के लिए भगवत चर्चा के लिए जाता होगा !
और अगर उसका मन पापयुक्त है तो सोचेगा की वो कैरेक्टर का खड़ाब है|
अब वो पहुँच गया वही गंदगी में,
हो सकता है इसी गड़बड़ मे वो नामापराध भी कर बैठे !
उसका क्या फायदा हुआ -- और नुकसान हो गया उल्टा !
पहले तो गंदी बाते सोचा, और सोचा तो सोंचा दुसरे को वोला कि सुनो वो उसके पास बहुत जाता है , वो बुरा है , !
लो ..... और पाप कर बैठा ......
और उसने कहा सुनो जी उसके पास वो २४ घंटे रहता है लो और पाप पर पाप कर बैठा !
इस तरह वो अपना ही नही तमाम का नुकसान कर बैठा एक मुर्ख ने ,
अपना ही नही औरो से कह के और पाप कर बैठा
यानी उसका मन बहुत पापयुक्त है बहुत गंदा है जो इस चर्चा मे इंटरेस्ट ले रहा है |
वो सोचता है कि चलो सभी से कहते है कि वो बड़ा बदमाश है ।
अरे तुम ए सोचा की वो बड़ा बदमाश है ए तुम सोचा इसलिय सबसे पहले तो तुम बदमाश हो , तुम्हारा मन और भी गंदा है जी और तुम दुसरे को बता कर उसको भी खड़ाब कर रहे हो , उसका भी पतन करने का प्रयास कर रहे हो ?
राक्षस कही का !
वो बेचारा अच्छा खासा बैठा है , भगवान का चिंतन कर रहा है और तुम उससे कहते हो सुनो सुनो - हे हे हे वो एसा है वो वैसा है
ए सब क्रियाएँ जो हमारे मन में व्यवहार में जो आती है उसको हमको रीड करना चाहिए की हमारा खुद का मन कितना पाप युक्त है ?
हमने साधना नही की , अपने को अधम पतित , गुनहगार , दीन मानने की फिलोसोफी दिन रात नही सुनाई जाती है क्या ? पर ठीक उल्टा हम कर रहे है उसका !
हमारा मन एक गंदा कपड़ा है बहुत जन्मो का , हमको उसे साफ करना है , साफ करने के लिए निर्मल पानी चाहिए - और निर्मल पानी माने भगवान और गुरु ।
ए दो निर्मल है इनको मन में जीतना लाओगे मन की गंदगी उतनी शुद्ध होगी |
और अगर गंदी बाते लाओगे मन में और गंदा होगा सीधी सी बात है ।
तो पांच मिनट.सोते समय सोचा करो कि आज हमने गंदी बाते कहां कहां सोची ? क्यों सोची ?
हम दुसरे मे दोश देख रहे है , दुसरे मे गंदगी सोची , दुसरे से द्वेष इर्ष्या कर रहे हैं ,
हमको फुर्सत है दुसरे की गंदगी सोंचने की
और हम किर्तन भी कर रहे हैं गुरुजी की पुजा भी कर रहे है और ए भी किए जा रहे है साथ साथ चोरी चोरी |
यानि हम कमा रहे है दो पैसा और खर्च कर रहे हैं दो रुप्या
और हम सतसंगी है घर छोड़ कर बैठे हुए लोग ऐसी पाप कर रहे हैं जो कहते है - हम तो त्यागी है , सन्यासी हैं , भगवत बिषय में रहते हैं हमेशा ।
लेकिन हमारा मन गंदगी मे रहता है।
हमारे मन को हर समय इक्छा होनी चाहिए की कोइ भगवत बिषय सुनाबे , नही तो को हम खुद भगवत बिषय सोंचे , किताब पढें।
इसके अलावा कोइ संसार कि बात करे तो हरगिज नही सुनना |
सुना ऽऽऽ बस इसका प्रमाण ए है कि हमारा मन बहुत पाप युक्त है क्यों क्योंकि सुना क्यों ?????
सुनने में अच्छा लगा , हां अच्छा लगा ! और पक्का प्रमाण है कि तुम्हारा मन गंदा है।
वो लड़का ऐसा है वो लड़की ऐसी है उसका कैरेक्टर खड़ाब है वो बड़ा बदमाश है आंय ......
अरे माया का जगत है यहां तो सब खड़ाब हईय है ।
लेकिन तुम को तो अपने खड़ाब मन को साफ करना है ।
भीतर की गंदगी को बाहर निकालना है और तुम उल्टी दवा किए जा रहे हो बाहर के गंदगी को अंदर कर रहे हो , गंदगी का चिंतन कर रहे हो !
एक व्यक्ति अगर संसार मे गंदी चीज देता है तो क्या हम उसे लेते है ? नही न !
अगर खाने के लिय गोवर का लड्डु दे तो हम उसे क्या कहेंगें - बदतमीज़ !
और ए दुसरे की गंदगी हम खाए जा रहे है ठाठ से !
और कहते है कि हम सतसंगी है घर छोड़ कर बैठे हैं।
महराज जी के साथ रहते है हमेशा , उनकी सेवा करते हैं ,
और पाप पर पाप किए जा रहे हैं |
मरने के बाद क्या कहोगे भगवान से
हम महराज जी के साथ रहे हमेशा , लेकिन जैसे कमल के पत्ते पर जल रहता है उस कमल के पत्ते से उसका संबधं नही रहता
लुढ़कता रहता है जल वैसे ही हम साथ रहे हमेशा।
कोइ न हम बिषयों पर कंट्रोल किया न मन पर , न ईंद्रियों पर !
जुवान पर भी नही , जाकर बाजार मे खा आय !
सोचा नही कि ईंद्रियो पर कंट्रोल करना चाहिए !
ये पचास तरह की सारी , कपड़े और पैंट
क्या कामदेव हो तुम ?
बड़े सुन्दर लग रहे हो तुम ????
संसार को मोहित करके क्या करोगे ??????
अरे तुमको लोग वेवकुफ मानते है एसा करने से ।
वो चोरी चोरी लोग कहते है क्या श्रृंगार कर रहा है।
सवेरे उठ कर कंघा ले कर सबसे पहले ..........यूंँ यूँ यूँ .
क्या व्याह करना है बुढ़ापे में ????????
नही तो फिर एसा क्यों ????
क्यों ईद्रिंयों को मन को खड़ाब करते हो ??
मन के गंदगी को साफ करना होगा बिषय बासनाओं को त्यागना होगा ! इतना भी नही सुना समझा अभी तक !
सारी का एक छोड़ सत्तर वर्ष कि बुढ़िया ऐसे फैलाए रहती है कि लटकता रहे
क्या होगा इससे ??? अफसरा दिखाई पड़ेंगें हम ?
अरे खोंस लो न उसको !
ऐं ऐं ऐं ....गांव की गवार हैं जो खोस लें
क्या विचित्र वात है !
और कहते है हम कहां है बताओ
अपने आप से पुछो न तुम कहां हो ?
अपने शरीर पर कितना खर्च किया और परमार्थ पर भगवान पर कितना किया !
लगाओ हिसाब !
वो भगवान के निमित्त जो कर रहे हो वो तुम्हारे लिय ही है!
वो वैंक बैलेंस है भगवान के यहा तुम्हारा
हां खाना जरुरी है शरीर के लिए , कपड़ा जरुरी है तन ढ़कने के लिए , लेकिन ऐसी सारी चाहिए ऐसा पैंट ऐसा शर्ट चाहिए ए सब बिमारी मत पालो ।
चार पैसे बचाकर अपना परमार्थ बनाओ
वो नही करेगें और पुछेंगें हमारा मन कहां है हमारी कितनी उन्नती हुइ !
तो इन सब बातो को सोचना चाहिए गम्भीरतापुर्वक और अपनी कमी को गड़बड़ी को निकालना चाहिए ।
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