भगवान और महापुरूष कृपा साध्य है । लेकिन कृपा कि शर्त है शरणागति ।

 भगवान और महापुरूष कृपा साध्य है । लेकिन कृपा कि शर्त है शरणागति । और केवल महापुरुषों के चरण पर अपना सिर पटक देने से या मुख से बोलने से कि मैं आपके शरण में हूँ शरणागति नहीं होती । शरणागति के लिए पहले मन को शूद्ध करने कि जरूरत है । भगवान और महापुरूष दिव्य हैं ,‌ वो अशूद्ध मन से केवल मुख से बोल देने से इसे शरणागति नहीं मानते । मन को शूद्ध करना होगा पहले , और अंत: करण को शुद्ध करने के लिए साधना अवश्य करनी होगी । 
भगवान को निर्मल मन बुद्धि चित्त चाहिए। 
और जीव का अंत:करण गंदा है , इसे शूद्ध करने के लिए श्रोत्रीय-ब्रह्मनिष्ठ महापुरूष को अपना गुरू बनाना हीं होगा और फिर उनकी बतलाई साधना करके अपने अंत:करण को शूद्ध करना होगा तभी वो कृपा साध्य भगवान , गुरू कृपा करेंगे । 
इसलिए इस धोखे में न रहे कि वो कृपा साध्य है अपने आप कभी न कभी कृपा कर हीं देंगे । 
न न ! अगर ऐसे हीं कृपा कर दें तो फिर सब पर कर देगें और फिर यह संसार कि जरूरत क्यों रहती , कृपा कर देते सब पर एक साथ , सब गोलोक चला जाता एक साथ, परमानंद हासिल कर लेता । 

तो ऐसा नहीं है । साधना तो करनी हीं परेगी । कृपा के लिए पात्र बनना होगा पहले , और पात्र बनने के लिए साधना करनी हीं होगी , रूपध्यान साधना सबके लिए कंपल्सरी है । किसी को कोई रियायत नहीं है इसमें । 
:- पुज्यनियां रासेश्वरी देवी जी ।

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