बिना अंत:करण की शूद्धि के जीव जो भी काम भगवद् एरिया में भी करता है , उसी का अहंकार उसे होना निश्चित है स्वाभाविक तौर पे ।
पुज्यनियां रासेश्वरी देवी जी :- बिना अंत:करण की शूद्धि के जीव जो भी काम भगवद् एरिया में भी करता है , उसी का अहंकार उसे होना निश्चित है स्वाभाविक तौर पे ।
सेवा का अहंकार - हम तो इतना सेवा किए हैं या करते आ रहे हैं, कर रहे हैं , आ गया अहंकार ।
उसी प्रकार दान का अहंकार - हमने इतना दान किया या हर साल करते हैं । हो गया अहंकार । अरे बहुत करोगे तो किसी के सामने मुख से नहीं बोलोगे लेकिन मन हीं मन सोचोगे तो जरूर न चाहते हुए भी कि हम तो इतना सेवा करते हैं, दान करते हैं । यह तो और भी खतरनाक है , अंदर हीं अंदर सूक्ष्म अहंकार पल रहा है फल फुल रहा है। यह सूक्ष्म अहंकार हमारे द्वारा किए गए सभी सेवा तथा दान को जीरो बट्टा सौ बराबर जीरो बनाता जा रहा है ।
इसलिए रूपध्यान साधना सबके लिए आवश्यक बतलाया गया है श्री महाराज जी द्वारा । साधना सबके लिए कंपल्सरी है भगवद् प्राप्ति तक । साधना करने के साथ साथ सेवा भी आवश्यक है । दान भी आवश्यक है , साधना होगी तो ह्रदय स्वाभाविक रूप से शूद्ध होगा , फिर सेवा का , दान आदि का अहंकार हावी नहीं होगा मनुष्य के मन पर ।
Comments
Post a Comment