स्त्री का पतिव्रता होना मन का बिषय है या सिर्फ तन का?
स्त्री का पतिव्रता होना मन का बिषय है ।
श्री महाराज जी :- एक पतिव्रता स्त्री थी । वो ओखली में धान कूट रही थी । वहां उसकी एक सहेली खड़ी थी ।
उस स्त्री के पति ने उससे पानी मांगा ।
उसने मुसल को कहा कि ऐ मुसल अगर आज तक मैंने किसी भी दुसरे पुरूष को छुआ तक नहीं तुम ऐसे ही टंगे रहो मैं अभी अपने पति को पानी देकर आती हुं । वो मुसल हवा में टंगा रह गया ।
उसने अपने पति को पानी देकर वापस आई फिर हवा में टंगे उस मुसल को हाथ लगाया और फिर से धान को कुटने लगी ।
यह देख कर उसकी सहेली को बहुत आश्चर्य हुआ । उसने इसका रहस्य पुछा , उसने कहा वो एक पति व्रता स्त्री है अपने पति को छोड कर किसी अन्य पुरुष को छुआ तक नहीं इसलिए उसको ऐसा पावर मिल गया है कि वो जर बस्तूओं को भी जो आज्ञा दे तो उसे पालन करना परता है ।
उसकी सहेली यह सोंचते हुए अपने घर दौड़ते हुए लौटी कि उसे भी कोई पराया पुरूष आज तक छूआ नहीं है । उसमें भी यह पावर जरूर होगा लेकिन वो आज तक इस पावर का उपयोग नही किया , आज करेगी ।
वो घर गई अपने पति को बोली आज तुम हमारा पावर देखना आज मैं क्या बढ़िया चमत्कार दिखाती हुं ।
बस अभी मैं ओखली में धान कुटती हुं और जैसे हीं मैं मुसल उपर कि ओर उठाऊंगी तो तुम मुझसे पानी मांगना फिर देखना चमत्कार ।
पति ने सोंचा ये क्या हो गया आज इसको , लगता है इसके कुछ स्क्रू ढ़ीला हो गया हैं ।
फिर भी जब वो मुसल उपर के तरफ उठाई तो उसका पति ने पानी मांगा ।
वो अपने सहेली के तरह मुसल को ओर्डर दिया ए अगर मैं पतिव्रता स्त्री हुं तो तुम ऐसे ही हवा में टंगे रहो मैं अपने पति को पानी देकर अभी लौटती हुं । यह बोलते हुए उसने मुसल को हवा में छोड़ दिया ।
अब मुसल उसके नाक पर गिर पड़ा । उसके नाक टूट गए । उपर से उसके पतिव्रता का पोल अपने पति के सामने खुल गया सो अलग ।
तो पतिव्रता, ब्रह्मचर्य, संन्यास आदि मन का बिषय है तन का नहीं ।
इसके लिए सबसे पहले मन में संसारिक बिषयों , भोगों के प्रति वैराग्य हासिल करना होगा । जो भक्ति से हीं संभव है अन्य किसी मार्ग से नहीं । :- श्री महाराज जी
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