दृढ़ संकल्प।

आइए एक बार फिर हम गुरू पूर्णिमा पर निम्नलिखित हमारे दृढ़ संकल्पों का दृढ़ता के साथ पुनरावृत्ति करें । :- 
१.हमारा एक मात्र धर्म अपने गुरू कि सेवा है ।
२. हमारा एक मात्र कर्म उनके आदेशो का पालन है।
३. हमारा एक मात्र सुख गुरू को सुख देना है ।
४. हमारा एक मात्र आधार गुरू शरणागति है ।
५. हमारा एक मात्र धन गुरू चरण धुलि , गुरू उच्छिष्ट तथा गुरू चरण अभिषेक का जल है । 
६. हमारे आत्मा का एक मात्र संबंध अपने हरि गुरू से हीं है । 
७. हमारा एक मात्र प्राण हमारा गुरू हैं ।
 ८. हमारा एक मात्र चिंतन हरि गुरू के लीलाओं का तथा तत्वज्ञान का चिंतन है । 
९. हमारा एक मात्र प्रियतम हरि और गुरू हैं । 
१०. हमारा एक मात्र तीर्थ गुरू धाम हैं ।
 ११. हमारा एक मात्र लक्ष्य अपने हरि गुरू के प्रेम को प्राप्त करना है उनकी निष्काम सेवा भक्ति को हासिल करना है । 

इसके अलावा हमारा कोई भी कामना नहीं है । श्री राधे । 
:- आपका संजीव ।।

Comments

Popular posts from this blog

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।