क्या निष्काम भाव से हरि गुरू की भक्ति व सेवा से हमको सुख नहीं मिलेगा ?
क्या निष्काम भाव से हरि गुरू की भक्ति व सेवा से हमको सुख नहीं मिलेगा ?
श्री महाराज जी :- वास्तविक जो सेवा की भावना है वो यही है कि अपने सुख की कामना ना हो ।
तो अपने को कभी सुख ही नहीं मिलेगा क्या ? अरे दु:ख निवृत्ति तो हो गई भगवत प्राप्ति पर वो तो छोटी मोटी चीज है। माया निवृत्ति हो गई, सब हो गया । लेकिन फिर तो हम ज्ञानियों की तरह हो गए जब हमको सुख ना मिला ।
नहीं ऐसा नहीं है । जब हम स्वामी की सेवा करेंगे उनको सुख देने के लिए तो स्वामी आनंद सिंधु हैं वो उस सुख को वापस कर देगा मुझे । वो केवल परीक्षा लेता है जीव की कि इसका समर्पण सही है क्या ? तो जब वो हमको वापस करेंगे तो वो आनंद इतना विलक्षण है कि उस आनंद के पाने वाले की चरणधूलि पाने के लिए जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस ब्रज में वृक्ष बनते हैं ।
वो आनंद तो नहीं मिलेगा उनको जो गोपियों को मिल रहा है । लेकिन गोपियों को जो आनंद मिल रहा है निष्कामता में, उस आनंद को पाने वाली गोपियों की चरण धूल ही मिल जाए, बस इतने में ही परमहंस अपने को कृतार्थ मानते हैं और प्यास पैदा हो जाती है उनके ।
प्यास । ये प्यास शब्द जो बोल रहा हूं न, यह किशोरी जी का पर्यायवाची शब्द है ।
प्यास ही को रूप मानो, प्यारी जू को रूप है ।
" भरहिं निरन्तर होहि न पूरे । तिन्ह के हियंँ तुम्ह कहँ गृह रूरे ( रामायण )
जैसे संसारी मिथ्या विषयों के रस में हम तृप्त होते हैं प्यास बढ़ती जाती है । ऐसे ही स्प्रिचुअल दिव्य प्रेम में भी हमारी प्यास बढ़ती जाती है ।
और हमारे संसार के प्यासे और परमार्थिक प्यासे रसिक लोग, इनके बीच में एक सीट है परमहंसों की, उनकी प्यास बुझ जाती है । ना संसार की प्यास उनकी रहती है और ना उधर वाली रहती है । वो बीच के क्लास के हैं ।
यद्यपि उनके यहां सातवीं भूमिका में ऐसा कहा गया है।
अज्ञान पहली भूमिका , भ्रान्ति दूसरी भूमिका, आवरण तीसरी भूमिका, परोक्ष ज्ञान चौथी भूमिका, अपरोक्ष ज्ञान पांचवी भूमिका, दु:ख निवृत्ति छठी भूमिका, तृप्ति सातवीं भूमिका ।
सातवीं भूमिका पर जब पहुंचते हैं ज्ञानी लोग तो तृप्त हो जाते हैं । अब ना उनकी संसार की कभी कामना पैदा होगी, न प्यास बढ़ेगी और न ब्रह्म के लिए प्यास बढ़ेगी ।
लेकिन भक्तों के यहांँ ऐसा नहीं । तो इसलिए ये चिंता ना कीजिए कि हमको सुख नहीं मिलेगा । निष्काम भक्ति सबसे अच्छी है उसमें सुख तो मिलता है । अरे ! अनंत कोटी सकाम भक्ति का रस न्योछावर हो जाएगा, ऐसा रस मिलेगा । इसलिए और सब बातें तो आप जानते मानते हैं अपने-अपने परसेंट के हिसाब से लेकिन इस पॉइंट पर विशेष ध्यान देना है । बार-बार चिंतन के द्वारा । और दो हीं पर्सनैलिटी हैं ये भी नहीं है कि हां बहुत जगह इसका सारे संसार में अभ्यास करना है । केवल हरि और गुरु इन्हीं की शरणागति हमको करना है । - श्री कृपालु महाप्रभु ( गुरू सेवा , पेंज -१९, २० )
Comments
Post a Comment