कर्मसन्यास की साधना किसे कहते हैं ?
कर्मसन्यास की साधना किसे कहते हैं ?
श्री महाराज जी के श्री मुख से :- एक कर्मसंन्यास की साधना होती है। इसको बताने की आवश्यकता नहीं विशेष। जिसमें संसार का भी कोई वर्क नहीं हो, जो भी आप अधिक से अधिक समय निकाल सकें, घंटा दो घंटा चार घंटा। वो कभी भी निकालें रात को, दिन को, दोपहर को, सबेरे अपना कमरे में बैठ करके अपने श्यामसुन्दर को, किशोरी जी को, गुरु जी को खड़ा करके और उनके गुणों को, उनकी लीलाओं को, उनके रूप के पदों को धीरे-धीरे गाते हुए, जिसको संकीर्तन कहते हैं। और उसी प्रकार के भाव मन में लाते आओ, जो गावो । जो लाइन गावो उसी के अनुसार अपने मन का भाव बनाने का अभ्यास करो। रूपध्यान के साथ-साथ। बाल लीला गावो, किशोर लीला गावो, युगल सरकार की लीला गावो, जिस प्रकार का पद गावो, जिस प्रकार का नाम गावो उसी प्रकार का भाव भी बनाओ, एकान्त में। एकान्त का मतलब अकेले बैठो चाहे मियाँ बीबी बैठो, चाहे बच्चे। एक स्थिति वाले लोग हों। एक चित्तवृत्ति वाले, एक लक्ष्य वाले, दो-चार भी हों तो ठीक है लेकिन वो अकेले ही सही। लेकिन उस समय और कोई वर्क नहीं है वो संन्यास की साधना हो गई आपकी।
आप गृहस्थी हैं लेकिन आप एक घंटे के लिये आप संन्यासी हो गये, दो घंटे को आप संन्यासी हो गये।
माने सारा कर्म आपने छोड़ दिया और आपने कह दिया कि देखो भई इस समय कोई आवे तो कह देना कि वो पूजा में बैठे हैं। ऐसा जवाब दे देना। चाहे कोई लार्ड आवे कह देना पूजा में बैठे हैं। तो दो चार पाँच मिनट में वो चला जायेगा। और जब वो जान जायेंगे कि ये दो घंटे पूजा में बैठते हैं सबेरे छ: से आठ तक तो दूसरी बार फिर कोई नहीं आयेगा। सब समझ लेंगे कि ये पूजा में बैठते हैं इस टाइम में।
तो इस प्रकार ये कर्मसंन्यास की साधना नियमित रूप से करें। उसमें आलस्य न हो, प्रमाद न हो, लापरवाही न हो। अरे अभी तो जरा कुछ काम-धाम है अब अगले महीने शुरू करेंगे। लेकिन अभी तो जरा... जरा..., अब अगले महीने से ही होगा। ये उधार जिसने किया वो गया। हाँ, उधार नहीं। एक घंटा ही आपको समय मिलता हो, ठीक है आप बहुत बिजी हैं तो आप एक घंटा ही कीजिये लेकिन कुछ समय आप राधाकृष्ण का चिन्तन करते हुए
उनके मिलन की परमव्याकुलता बढ़ाइये और कामना कोई न रहे ये ध्यान रहे ।
मोक्ष पर्यन्त की कामना न किया कीजिये। उनका प्रेम चाहिये, उनका दर्शन चाहिये, उनका स्पर्श चाहिये, उनकी कृपा चाहिये, बस वो निष्काम भावना और माधुर्य भाव का वो लक्ष्य बनाये रखना है। वो जाने न पावे। वो भले ही आप दस बार बनावें तो एक बार बने कोई परवाह नहीं, दस बार में एक बार बना ठीक है कल नौ बार में एक बार बनेगा। कोई भी संसार का काम भी एकदम नहीं हो जाता उसमें भी तो तमाम अभ्यास करना पड़ता है।
तो हम एकान्त में कुछ समय नियत करके इस प्रकार किसी बाजे का सहारा लेकर के, बाजा बजाना नहीं यदि आता है तो कोई भी सुर देते रहो ताकि बाहर का शब्द आपके कान में न आवे, गृहस्थ में रहते हैं आप यह जरूरी नहीं कि कलाबाजी, बाजे की गायन कला आपको आती हो । अरे ऐसे ही बाजे का सुर खोल दिया, पूँ पूँ वो कर रहा है तो कम से कम बाहर की आवाज नहीं आयेगी। एक तारा ले लिया उसी को टुनटुन बजा रहे हैं, झांझ ले लिया उसी को बजा रह है तो कम से कम बाहर का डिस्टर्बेन्स नहीं होगा आपके कान में आकर के कि वो एक तश्तरी गिरी तो भी आप चिन्तन कर रहे हैं उसका ।
तो इस प्रकार आप एकान्त में साधना करते हैं यही कर्मसंन्यास की साधना है। अब यही कर्मसंन्यास जिसका सदा को हो जाता है उसको कर्मसंन्यासी बोल देते हैं। सदा को जिसका हो जाता है। तो जब कर्मसंन्यासी वो सदा को हो जाता है और होने के बाद जब वो पूर्णता को प्राप्त हो जाता है तो फिर वो कर्मयोगी भी पूर्ण रह सकता है।
ये कर्मसंन्यास जरूरी इसलिये है कि संसार का वातावरण बहुत ही गड़बड़ है। तो उसमें रह करके हम ईश्वर में मन लगाने वाला जो मेन पॉइन्ट है योग जिसे हम कह रहे हैं उस योग को नहीं कर पाते हैं वर्तमान युग में। इतना एटमॉसफिअर गंदा है। हम छल-कपट नहीं करना चाहते लेकिन छल-कपट वालों से हमारा संपर्क हो रहा है तो उसके छल-कपट से बचने के लिये ये छल-कपट खोपड़ी में लाना पड़ता है। अरे सब कुछ समझने के बाद नहीं करना चाहते लेकिन हमको कोई ठग न ले इससे बचने के लिये हमें छल-कपट का चिन्तन करना पड़ता है।
इसलिये हम अगर ये कर्मसंन्यास की साधना करते रहेंगे तो ये हमारा हैल्पर होगा। इससे हमको जो ताकत मिलेगी वो बाकी टाइम में संभाले रहेगा।
Comments
Post a Comment