जीव को अपने कल्याण के लिए सबसे पहले किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष को अपना गुरू बनाना होगा
श्री महराज जी :-
जीव को अपने कल्याण के लिए सबसे पहले किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष को अपना गुरू बनाना होगा, फिर उनकी शरणागति करनी होगी, आप तन से करें , धन से करें ठीक है, तन और धन दोनों से करें सेवा गुरू कि लेकिन मन से शरणागति कंपल्सरी है सभी के लिए।
क्योंकि मन ही मेन है । धन किसी के पास है किसी के पास नहीं है, तन से भी कोई गुरू की सेवा चाहे न कर सके, भला वो वीमार है वेचारा , कोई लाचार है अपहिज है या दुर रहता है सात समंदर लेकिन मन के बिना तो कोई जीव हो हीं नही सकता है, मन तो सबके पास है ।
तो मन प्रमुख हैं इसलिए मन से गुरू की शरणागति करनी पड़ेगी । जीव को गुरू कि शरणागति करनी पड़ेगी , जोर देकर कहा है शास्त्रों ने ।
फिर साधना भक्ति करने का मार्ग गुरू बतलायेगा उसको, तत्वज्ञान करायेगा, समय समय पर उसके डाउट को क्लियर करेगा गुरू, साधनावस्था में जीव को संभालेगा भी गुरू। फिर साधना भक्ति करने पर जब जीव का अंत:करण शुद्ध हो जाएगा तब गुरू अपने स्वरूप शक्ति से उसके अंत:करण को दिव्य बना देगा और प्रेम दान कर देगा ।
जब तक अंत:करण शुद्ध नहीं होगा तब तक गुरू दिव्य प्रेम का दान नहीं कर सकता , अरे कैसे करेगा हं हं ( हंसी ) ।
बिना बर्तन बने अगर कोई गुरू सीधे प्रेम दान कर दें विस्फोट हो जाएगा शरीर में इतनी पावर होती है, आनंद होती भगवान के दिव्य प्रेम में ।
पुरा शरीर ब्रस्ट कर जाएगा जीव का ।
इसलिए बिना अंत:करण शुद्धि के गुरू प्रेम दान नहीं कर सकता कभी।
जीव अपने गुरू के बतलाए साधना भक्ति करके अपने अंत:करण को दस दिन में शुद्ध करे , एक साल में करें , दस साल में करें या दस जन्म लग जाए किसी को लेकिन बिना अंत:करण के शुद्धि के गुरू प्रेम दान नहीं करेगा ।
अत: बिना शरणागति के साधना भक्ति नहीं हो सकती है । शरणागति कंपल्सरी है । तुम आज करो, कल करो , एक साल बाद करो , दस साल बाद करो , अगले जन्म में करो लेकिन सबसे पहले शरणागति करनी पड़ेगी , तब जाकर साधना भक्ति की शुरुआत होगी ।
मेडिकल के नॉलेज के लिए कोई कहे कि हम मेडिकल कौलेज में एडमिशन नहीं लेंगे, नहीं जाएंगे मेडिकल कौलेज , लौ के लिए कोई कहे की लौ कौलेज में दाखिला नहीं लेंगे, कौलेज नहीं जाएंगे । केवल उस प्रोफेसर के किताब को पढ़ कर डौक्टर बन जाएंगे ,वकील बन जाएंगे , यह तो संसार में भी असंभव है तो फिर किसी महापुरुष के बिना शरणागति के तुम सफल कैसे होंगे आध्यात्मिक दुनिया में , हं । दुर्लभ आध्यात्मिक सामान का अधिकारी कैसे बनोगे ? अनाधिकारी को हीं तो अधिकारी बनाता है गुरू । तो अनाधिकारी से अधिकारी बनने के लिए गुरू कि शरणागति परमावश्यक है । नहीं तो दिव्य प्रेम पाने का अधिकारी कैसे बनेगा जीव ?
तो भगवद् प्राप्ति के लिए सबसे पहले अपने गुरू की शरणागति करनी पड़ेगी , उसके बाद साधना भक्ति करने का तरिका गुरू बताएगा । फिर गुरू की सेवा तथा गुरू के द्वारा बतलाया गया साधना भक्ति करना हीं होगा , दुसरा कोई रास्ता नही है ।
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