आपलोग केवल चार बातें याद रखें ,हां तो वे चार बाते है :- पहला - हरि और गुरु की भक्ति , दुसरा - नित्य , तीसरा - अनन्य , चौथा - निष्काम भक्ति ।
श्री महराज जी : -
आप लोग बस केवल चार बाते याद रखे और अमल करे , माने और लागु करे अपने जीवन में , केवल चार बाते , आपको लक्ष्य की प्राप्ति हो जाएगी , बाकी सब ज्ञान की बातें है , सबको दिमाग मे नही रख सकते , क्योकी भुलने की बीमारी है .
हां तो वे चार बाते है :- पहला - हरि और गुरु की भक्ति , दुसरा - नित्य , तीसरा - अनन्य , चौथा - निष्काम भक्ति ,
अब भक्ति किसकी करनी है तो हरि और गुरु की , भक्ति का मतलब तो आपलोग समझ ही गय होंगे ,
मन का अटैचमेंट हरिगुरु मे ही हो , मन का अटैचमेंट क्युँ ? क्युँकी भक्ति मन को ही करनी है , अन्य इन्द्रियों की भक्ति का कोई फल नही है , क्युँकि भगवान मन मे उठे संकल्पो को ही नोट करते है . वे अन्य इन्द्रियादी कर्मो को नोट नही करते , क्युँ क्युँकि सबसे पहले आप मन मे ही संकल्प करते है उसके बाद ही मन के अनुसार इन्द्रियादी अपना कर्म करता है क्युँकि सभी इन्द्रियादी मन के हीं दास होते है अत: भगवान मन के संकल्पो को ही नोट करते है , वो इन्द्रियादी कर्मो के तरफ देखते भी नही , आपका प्राइभेसी यहां नही काम करेगा , आप बुरा सोचे किसी के लिय , भगवान नोट कर लिय , कोइ चालाकी या प्राइभेसी नही चलेगा , क्युँकि भगवान सर्वान्तर्यामी है और वो हमारे ह्रदय मे वैठ कर सब आइडियाज को , हर पल हर क्षण के आइडियाज को नोट करते रहते है और तदनानुसार फल देते हैं
अत: मन का अटैचमेंट हमेशा हरि और गुरु मे ही हो ,
और ध्यान दो ...... हर क्षण हो कि श्याम सुन्दर हमारे अन्दर बैठे है ,
और नित्य हो , मतलब ये नही की हर दिन केबल आधा घन्टा का भक्ति कर लिय हो गया , नही नही
ऐसा नही चलेगा हर समय अपना काम करते हुए याद करें कि हमारे मन का अटैचमेंट हरिगुरु मे ही है .
नही तो एक घन्टा के लिय साधना किया और २३ घन्टा संसार मे लगाए रखे , इस तरह तो कपड़े को एक बार साफ पानी मे साफ कर दिया और बाकी सारे समय गंदे पानी मे डुबाते रहे , इस तरह कपड़ा कभी साफ होगा ही नही , गंदा का गंदा ही रहेगा ,
इस तरह समझो की कमाए केवल १०० रु और प्रतिदिन खर्च कर दिया २३०० रु फिर क्या होगा आपलोग जानते हैं |
इसलिय कही भी काम करते हुए या तो आफिस मे या दुकान मे संसार मे काम करते हुए हरेक आधे घन्टे मे कम से कम ए सोचो की भगवान श्री कृष्ण हमारे अन्दर बैठे है आपका काम बन जाएगा |
तीसरा - भक्ति अनन्य हो हरि और गुरु का ही हो , एसा नही की कुछ देर हरिगुरु मे मन का अटैचमेंट कर लिया और वांकी समय , माया बद्ध संसार को मन मे ले आए , माया बद्ध मां के लिय , वाप के लिय , भाइ के लिय , मित्र के लिय या अन्य संसारी लोगो के लिय , राग , द्वेश , घृणा , क्रोध , राजसीक या तामसीक भक्ति करते रहे या सोचते रहे !
या अन्य माया बद्ध देवी , देवता की सात्विक भक्ति करते रहे , ये देवी देवता भी माया बद्ध ही है इनकी माया समाप्त नही हुइ है | अत: एक तरफ इनकी भक्ति कर लिय इनको भी मन मे रखे हुए है और हरिगुरु का भी भक्ति कर रहे है ,यह अनन्य भक्ति नही हुआ , क्युकि मायाधिन की भक्ति करोगे तो माया नही जाएगी और जब माया नही जाएगी तो भक्ति का फल नही मिलेगा , काम नही बनेगा , लक्ष्य की प्राप्ति नही होगी ,
देखो जिसकी बात सोचते रहोगे उसका कार्मिक दोश भी तुम्हारे अंदर आ जाएगा , आप कहोगे अरे हम तो कुछ नही किय , अरे नही किए लेकिन सोंचे तो , यही तो गरवड़ कर दिए , भगवान तो मन मे उठे विचारो को ही नोट कर लिय ,
अरे ए मन ही तो है जो आपसे पाप कर्म करवाते है
कइ जन्मो से करवा रहा है
इसलिय कभी भी मन मे मायाबद्ध जीवों या देवी देवता के प्रति राग और द्वेश भाव उठे तो हरिगुरु का भजने लगो . और सोंचो की ए मन बहुत गंदा है जबतक भगवत् प्राप्ति नही हो जाएगी यह हमे इसी तरह परेशान करता रहेगा ,
मन मे जैसे ही किसी के प्रति दोष भाव आए तुरत लाइन काट दो , मन का अटैचमेंट हरिगुरु मे कर दो,
देखो कपड़े मे आग पकड़ा तो आग पकड़ते ही आप बुझा देते हो न,
देखो खाते समय मुहं मे कंकड़ आ गया कैसा मुह बनाते हो , तुरत बाहर निकाल देते हो , उसी प्रकार जैसे ही मन का अटैचमेंट संसार मे होने लगे और राग , द्वेष , क्रोध आदि दोश उत्पन्न हो डिसकनेक्ट करके मन को हरिगुरु मे लगा दो , हरिनाम , गुण , लिला , धाम , उनके सन्त के तरफ कर दो .
काम बन जाएगा , भगवान फिर बुरे भाव को नोट नही करेंगे ,
अत: भगवान के रुप , गुण लीला , धाम और उनके सन्त मे ही मन का लगाव हो , ध्यान दो मे ही का मतलव सिर्फ भगवान के रुप , गुण लीला , धाम और उनके सन्त मे ही मन का लगाव हो अन्यत्र कही नही ,
इसी को अनन्यता कहते है .
अब आइए भक्ति निष्काम हो , यानी हम उनसे उनके सुख की ही कामना करें ,
संसार नही मांगोगे तो भी मिलेगा क्युँकि संसार तो अपने अपने प्रारब्द्ध के अनुसार अपने अपने असंख्य जन्मों के कर्म के अनुसार मिल ही रहा है और मिलेगा ही , नही चाहोगे तो भी मिलेगा , तबतक मिलता रहेगा जबतक माया नही जाएगी , और माया तबतक नही जाएगी जबतक भगवत् प्राप्ति नही होगी .
क्युँकि जबतक भगवान अपनी माया को नही कहेगे की ऐ इसे छोड़ दो जी , तबतक माया नही जाएगी .
और कही संसार मांगे और मान लो मिल भी गया तो लक्ष्य से भटक जाओगे . तुम संसार मे रम जाऔगे और परमानंद से हमेशा के लिय बंचित होकर फिर चौरासी लाख के चक्की मे पिसने के लिय तैयार रहना
इसलिय केवल हरि और हरि गुरु का ही भक्ति हो नं एक
, नं दो भक्ति नित्य हो , नं तीन भक्ति अनन्य हो ( भगवान , हरिगुरु के नाम रुप , लिला , गुण , उनके नाम और उनके संत मे ही सदा मन का अटैचमेंट हो )
और नं चार निष्काम भक्ति हो ,
केवल ए चार काम करो आपका काम बन जाएगा .
Thank you - जगदगुरु श्री कृपालु जी महराज
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