आस्तिक कौन है और नास्तिक कौन है ?
श्री महाराज जी के श्री मुख से :- ये संसारी चीजें छोटी-छोटी जिसके पीछे लग जाती हैं जड़ वस्तुयें, शराब सिगरेट आदि जब वो खोपड़ी में आ आकर हमको जगाती हैं और कहती हैं हमको पिओ । तो श्यामा श्याम में तो परमानन्द है। जब उनका हम बार-बार चिन्तन करेंगे तो वो तो बलवान होती ही हैं। वहाँ तो पावर भी मिलेगी स्पिरिचुअल । बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। तो इसलिये आपको बड़ा सरल लगेगा। अभ्यास हो जायगा वही कि आपका मन ही न लगेगा उनके बिना। आप सोच ही नहीं सकते कि मैं अकेले हूँ कभी। ये साधना आपको कर्मयोग संबंधी करनी है।
• इस साधना से आप आस्तिक बनने का अभ्यास करेंगे। अभी आस्तिक नहीं है। आस्तिक का मतलब होता है -
अस्ति परलोक इत्येवं दृढ़ामतिर्यस्य स आस्तिकः ॥ (पाणिनि व्याकरण)
भगवान् मेरे पास सदा हैं ये सदा फीलिंग में रहे तब वो आस्तिक कहलाता है। और आधा घंटे को आप पूजा में बैठ गये उस समय तो है और बाकी साढ़े तेइस घंटे आप अकेले हैं। आप यही रिअलाइज कर रहे हैं मैं अकेला हूँ। मैं जो सोच रहा हूँ कोई नहीं जानता। बीबी के खिलाफ सोच रहे हैं, बाप के खिलाफ सोच रहे हैं, माँ के खिलाफ सोच रहे हैं, नौकर के खिलाफ सोच रहे हैं। प्राइवेट। और आप समझते हैं हम प्राइवेट हैं। अरे प्राइवेट तुम्हारी नहीं चलेगी वहाँ-
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा । (श्वेताश्वतरोपनिषद् ६.११)
नोट कर रहा है वो। वहाँ प्राइवेसी नहीं चलेगी। आपका बाप बिल्कुल आपके पीछे खड़ा है। चोरी-चोरी नोट करता है और संकल्प नोट करता है क्रिया नोट नहीं करता। आइडिया नोट करता है, विचार नोट करता है। वो मेन पॉइन्ट पकड़ता है जहाँ से मशीन शुरू होती है कार्यवाही की आगे क्रिया कुछ भी आप किया करें इससे मतलब नहीं है। तभी तो अर्जुन ने इतनी हत्याएं की और उसने संकल्प नोट किया कि मन मेरे अन्दर है। हत्याएं कर रहा है, दुनिया देख रही है, गवाही दे रही है।
करोड़ों गवाहियाँ खड़ी हो गई कोर्ट में लेकिन भीतर का जो आइडिया था वो नोट करने वाला कहता है- नहीं नहीं, इसका मन मेरे पास था। सब गलत। इसने कोई हत्या नहीं की । प्रत्यक्ष दर्शी गवाह फेल हो गये क्योंकि वहाँ मंशा देखी जाती है। संसारी गवर्नमेन्ट में भी किसी भी अपराध में मंशा मेन है। इसीलिये हमारे यहाँ क्रिमिनल लॉ है कि डाउट का फायदा मुल्जिम को दिया जाय। अर्थात् भले ही गुनहगार छूट जाय लेकिन बेगुनाह को सजा न हो पाये।
:- श्री महाराज जी ( भगवद्गीता ज्ञान -३ )
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