तीर्थ का महत्व

श्री कृपालु जी महाराज:- 
हमारे हृदय में वो बैठे हैं , महसूस करो , इसको रियलाइज करो । फिर बाहर भागना बंद हो जाए । और अगर तीर्थ में जाओ तो किसी महापुरुष के साथ जाओ तो लाभ मिलेगा । वो महापुरुष के साथ सत्संग भी मिलेगा न इसलिए लाभ होगा ।
पत्थर की और लक्कड़ की और सोने चांदी की मूर्ति में क्या है,  उसमें भी भगवान् व्याप्त है,  वो तुम्हारे अंदर भी व्याप्त है,  उसमें कोई अंतर नहीं  है ।
तीर्थ में महापुरुष जाते हैं इसलिए वो तीर्थ है । महापुरुष न जायें तो तीर्थ का कुछ नहीं,  सब एक से पृथ्वी है,  एक सा जल है , एक सी वायु है ,  एक सा सब कुछ है । 

आप लोगों ने पढ़ा होगा इतिहास में । हमारे इसी भारतवर्ष के सब मंदिर तोड़ दिए गए थे एक जमाने में,  सोमनाथ वगैरह  के बड़े-बड़े  । 
मंदिर में पत्थर की मूर्ति ने क्या कमाल दिखाया ? वेदव्यास कहते हैं कि वो तो भावना बनाने से आपको लाभ मिलता है,  किसी मूर्ति में कोई खास बात नहीं होती ।
 लेकिन हम लोग चूँकि शास्त्र वेद नहीं जानते , इसलिए ऊंचाई पर , पहाड़ पर एक मंदिर बनवाकर छोटा सा,  उसमें एक दुर्गा जी की मूर्ति रख दो  । ऐ बहुत बड़ा महत्व है ! वो दुर्गा जी का । अरे वो दुर्गा जी हो , चाहे वैष्णो देवी हो , चाहे आप के बगल के मंदिर वाली देवी जी हों और आपके हृदय में भी तो आपकी देवी जी राधा बैठी हैं,  काहे को परेशान हो रहे हो,  यहां वहां भागने में । देख आवें ,  क्या देखोगे ?  क्या चीज देखकर  विभोर होओगे तुम ?
तो भगवान सर्वत्र हैं , और सबसे बड़ी बात हमारे हृदय में हैं ।  ये बात मान लो मान लो ,  गांठ बांध लो,  हजार बार वेद कह रहा है , शास्त्र कह रहे हैं,  पुराण कह रहे हैं , संत कह रहे हैं । 
और कृपालु ने भी हजार बार कहा आप लोगों को । नहीं मानते , भूल जाते हैं । जो मैं सोच रहा हूं कोई नहीं जानता ! ये प्राइवेसी नहीं हो सकती । वो अंदर बैठा नोट कर रहा है ये बात रियलाइज करो,  बार-बार अभ्यास करो इसका,  तो इतना सुख मिलेगा तुमको जैसे कोई कंगाल खरबपति हो जाए एक सेकंड में - श्री महाराज जी ( जय गंगा मईया , पेंज 30 , 31)
श्री कृपालु जी महाराज:- जितने लोग जगन्नाथ जी के दर्शन करने गए , सच-सच बतावें कि जितना सुख उनको अपनी बीवी , अपने बेटे, अपनी मां, बाप , अपने प्रिय जनों को देखने में मिलता है इतना सुख मिला क्या ?  
देखा, जय हो, जय हो, एवाउट टर्न।
 ( हंसी )यह तो तुमने भगवान का अपमान किया कि अपने बेटे, मां-बाप , स्त्री, पति के बराबर भी भगवान का स्थान नहीं माना । और दर्शन करके एवाऊट टर्न और तुरंत जल्दी चलो घर वापिस ।

 तो तीर्थ का महत्व कुछ नहीं होता । उसके भीतर भगवद् भावना करने का महत्व होता है । भीतर भगवद् भावना जितनी करोगे उतना ही लाभ मिलेगा । जितने लोग गए जगन्नाथ जी, जिसने वहां खड़े होकर मूर्ति के सामने निष्काम आंसू बहाया बस वो गया तीर्थ करने, बांकी सब कुछ नहीं । ये दे दो , वो दे दो , सब व्यापार , भगवान ने तो कानून बना ही रखा है , जो भी मिलेगा वो आपके प्रारब्ध और क्रियामान कर्म के अनुसार हीं मिलेगा , चाहे लाख सिर पटक लो , लाख भीख मांग लो , भगवान अपने कानून में बंधे हैं ।

अभिमन्यू मारा गया तमाम महापुरूष बैठे हैं , भगवान भी बैठे हैं , नहीं जिलाया, जिंदा कर सकते थे लेकिन नहीं, उनको भी अपने कानून का पालन करना है , राम के पिता दशरथ जी की मृत्यू हो गई, जटायु उनके श्रीमति जी के लिए प्राण दे दिया , अपना धाम दे दिया पर जिलाया नहीं और ना जटायु कुछ मांगा , प्राण भी नहीं अरे उनसे उनका धाम भी नहीं मांगा जटायु ने , इसको कहते हैं निष्काम भक्ति, पर भगवान ने अपना धाम दे दिया , देना हीं पडेगा उनको, उनका कानून हैं , निष्काम भक्ति भगवान को भक्त का गुलाम बना देता है, भगवान अपने निष्काम भक्तों का सर्वेंट बन जाते हैं । इतना पावरफुल है निष्काम भक्ति । 

आपलोग सोचते हैं मंदीर मंदीर भटकेंगे, मांगेंगे गिरगिराकर, मन्नत मांगेगे तो मिल जायेगा , सब भोलापन है, आपने कमाया नहीं, अपना परलोक बनाया नहीं, हिसाब बराबर, जो मिलेगा आपके कमाई से हीं मिलेगा , अपने आप मिलेगा , नास्तिको को भी मिलता है। बैंक एकाउंट खाली है तो बैंक का मैनेजर दे देगा क्या ? 
तो वहीं बात भगवान के यहां भी है , बस सीधा सा हिसाब किताब है उनके यहां भी , अब कोई एक हजार लोग गया , मुख से मांगा , दो चार को मिल गया , वांकी नास्तिक बन गया , दो चार को जो मिला वो मिलना ही था उसको, उसी का कमाई था पहले का , वो न भी मांगता , तो भी मिलता , अब वो सबको बोल रहा है अमुक देवी जी, अमुक देवा जी बड़ा पावरफुल है , मुझे मिल गया , आप भी जाईये , वो चार पांच और गया , मांगा , नहीं मिला , फिर वो भी नास्तिक हो गया , फिर वो सबको बोल रहा है ये भगवान उगवान कुछ नहीं , उल्टे जो भी पहले उसमें थोड़ा श्रद्धा और विश्वास था , वो भी गया , तमाम आगे का नुक्सान हो गया लोगों का ।

तो भगवान से कुछ नहीं मांगना चाहिए , मांगना ही चाहते हैं , सकाम भक्ति हीं करना चाहते हैं आप लोग तो रो रो कर उनसे केवल उनका प्रेम , उनका दर्शन , उनका धाम , उनकी सेवा , उनका आलिंगन मांगना चाहिए, ताकी आपकी उनके प्रति प्रेम , श्रद्धा , विश्वास और बढ़ता जाए , अलौकिक सुख और आनंद मिले , संसार के सभी व्यक्ति एवं बस्तुओं में दुख हीं दुख है यह अभी भी नहीं समझे अपलोग , आज बेटा हुआ , जश्न मना रहें हैं कल वो आपको नहीं पुछता है, अब दुखी हैं । 

   तो भगवान के धाम, भगवान के नाम, भगवान के संत , वो सब एक हैं । लेकिन भावना बस ए शर्त है । उसी संत के प्रति नामापराध भी कमा लो । और उसी संत के प्रति शरणागत होकर भगवत्प्राप्ति भी कर लो ।- श्री महाराजजी । ( जय गंगा मईया - पेंज - 32)

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