आदेशामृत, श्री कृपालु जी महाप्रभु
आदेशामृत -१
सतर्क होकर साधना के लिए बैठो | यदि आलस्य आने लगे, तो अपने आप खड़े हो जाओ | लेकिन शर्त यह है, चिंतन श्यामसुन्दर का ही हो |
आदेशामृत - २
" अपने इष्टदेव का गुणगान करो | ध्यान रखो , किसी का मन किसी के गुण पर रीझता है | जिस प्रकार संसार में कोई किसी के गुण पर रीझता है , कोई किसी की दयालुता पर आसक्त होता है | इसी प्रकार अधम उधारनहार , पतितपावन , भक्तवत्सल आदि ठाकुर जी के अनंत गुण हैं | इन गुणों का निरंतर श्रवण करो |
आदेशामृत -३
" केवल गुणगान करने से काम नही चलेगा | गान तो गवैये भी करते हैं | लेकिन उसको भगवत्प्राप्ति नहीं होगी | अतएव गुणगान करते समय तदनुसार भाव भी लाओ | जैसे , हम वस्तुत: अधम हैं , पतित हैं | अनंत जन्मों के किए अनंत पापो की गठरी सिर पर लिए हैं और वे अकारणकरुण , भक्तवत्सल , पतितपावन , अधमउधारनहार आदि हैं |" :- श्री महाराज जी ।
आदेशामृत - ४
" नेत्र बंद करके रुपध्यान करो क्योंकि प्राथमिक अवस्था में आँखें खोल कर कीर्तन करने से दुसरे लोग आते - जाते दिखाई देते हैं , श्यामसुदंर नही | रुप ध्यान की अत्यन्त आवस्यकता है | रुपध्यान नहीं करेंगें , तो शारीरिक क्रिया का कोई फल नही मिलेगा" ।
आदेशामृत - ५
" ठाकुर जी का जैसा भी चाहो रुप बना लो | बाल्यावस्था का , किशोरावस्था का , युवावस्था का , ठाकुर जी उसी रुप में मिल जाएँगे ।
आदेशामृत - ६
" कीर्तन में नींद क्यों आती है ? क्योंकि तुम अपने इष्ट का रुपध्यान नहीं करते | श्यामसुंदर का ध्यान नही करते | प्यार नहीं है , इसलिए गुणगान करते समय ह्रदय नही पिघलता व तुम ऊँघने लगते हो | " :- श्री महराज जी
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