भगवान और महापुरुष कृपा साध्य होते हैं , लेकिन वो कृपा किस पर करते हैं ? क्या है योग्यता ?

भगवान और महापुरुष कृपा साध्य होते हैं , लेकिन वो कृपा किस पर करते हैं ? क्या है योग्यता ? सुनिय श्री कृपालु महाप्रभु जी के श्री मुख से - 
योग माने अप्राप्त को देना और क्षेम माने प्राप्त की रक्षा करना। दो चीजें कम्पलसरी हैं। हमें क्या चाहिये ये हम नहीं सोचेंगे क्योंकि हम तो शरणागत हो चुके । तुरन्त का पैदा हुआ बच्चा शरणागत होता है। वो कुछ नहीं सोचता कि हमें कब नहाना है, कब हमें क्या करना है और कब हमें दूध पीना है; न वो बोलेगा, न बतायेगा, न कुछ मतलब है उसको। वो माँ अपने हिसाब से अपना बच्चे का काम करती है। अब टाइम हो गया सोने का, अब टाइम हो गया दूध पिलाने का, अब टाइम हो गया नहलाने का।

तो अप्राप्त को देना और जो प्राप्त है उसकी रक्षा करना। उसमें गड़बड़ न होने पाये। ये दो चीज हो जायें तो बस पूरा ठेका हो गया। ये ठेका पूरा-पूरा है ये तभी होगा जब दोनों चीजों का ठेका ले। केवल योग का ठेका लेगा, अप्राप्य को देगा और फिर उसमें गड़बड़ हुई तो कौन सँभालेगा ? योगक्षेम भी आवश्यक है। इसी को दूसरी जगहों पर कहा है

ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः । 
अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते । (गीता १२.६)

तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात् ।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥ (गीता १२.७)
 कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥ (गीता ९.३१)

मेरे भक्त का पतन नहीं होगा। पतन नहीं होने का मतलब यही है कि मैं योग क्षेम दोनों वहन करूँगा। सिंगल नहीं डबल, दोनों का। अरे वो तो एक शब्द है- योगक्षेम । असली बात तो ये है कि जैसे कोई ड्राइवर गाड़ी चला रहा है वो शराब पिये है नशे में है। उसको एक झापड़ लगाया और मालिक खुद ड्राइव करने लगा गाड़ी। अब अगर एक्सीडेन्ट होता है तो ड्राइवर नहीं पकड़ा जायगा, मालिक पकड़ा जायगा। लेकिन मालिक सुप्रीम कोर्ट है इसलिये चाहे अपने आपको माफ कर दे और चाहे सजा दे। ड्राइवर से कोई मतलब नहीं है। तो जीव जब कम्पलीट सरेन्डर कर देता है

मामेकं शरणं व्रज (गीता १८.६६)

हो जाता है तो-

तस्य कार्यं न विद्यते ॥ (गीता ३.१७)

अब स्वयं का अपना कोई कार्य नहीं । कार्य जो है वो शरणागति तक है। शरणागति का मतलब कुछ न करना। जैसे मिलट्री में सरेन्डर कर देते हैं। सरेन्डर का मतलब हथियार डाल दिया। अब हम कुछ नहीं करेंगे। तो विदेश की गवर्नमेन्ट उसे पकड़ कर अपने यहाँ ले जाती है। तो हमने सरेन्डर भगवान् को कर दिया तो भगवान् हमको पकड़ कर के अपने लोक में ले जाते हैं।

शरणागति का मतलब यही है कि कुछ न करना। करना खतम। अगर करने से भगवत्प्राप्ति हो तब तो भगवान् कृपा साध्य नहीं रहेगा। फिर तो हमने दाम दिया तो भगवान् ने हमको अपना लोक दिया।

 लेकिन वो कृपा साध्य है। 

तो हम जब शरणागत हो जाते हैं, माने कुछ नहीं करते तब वो कृपा करता है। वो कहता है कि तुम कुछ मत करो तो मैं सब करूँगा। अगर तुम कुछ-कुछ करोगे तो मैं कुछ-कुछ करूँगा और अगर तुम सब कुछ करोगे तो मैं कुछ नहीं करूँगा। तुम करो मैं खाली फल दूँगा। अन्दर बैठ कर नोट करूँगा। अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः । (गीता १०.२० )

मैं अन्दर बैठ करके और साक्षी बन करके तुम्हारे सब कर्मों का हिसाब करूँगा, बस । 

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः (गीता ९.२९)

ये मेरा जनरल कानून है। लेकिन इसमें सब सेक्शन है -

 ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥ (गीता ९.२९)

अगर कोई मेरे शरणागत होता है तो ये कानून उस पर लागू नहीं होगा समदर्शी वाला। उसी को कहा है. -

सर्वगुह्यतमं भूयः शृणु मे परमं वचः ।

इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥ (गीता १८.६४)

मेरी प्राइवेट बात सुन अर्जुन !

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥ (गीता १८.६५) केवल मुझ में ही मन लगा देना बस ये सबका सारांश।

:- श्री महाराज जी ( भगवद्गीता ज्ञान भाग -५ )

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