कर्मसन्यास और कर्मयोग की साधना दोनों आवश्यक है

कर्मसन्यास और कर्मयोग की साधना दोनों आवश्यक है , श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा प्रवचन - कर्मसंन्यास की भी साधना हम करें और कर्मयोग की साधना भी हम करें, दोनों को मिलाकर के करें और फिर हम अपने समय को बचाय रहें कि भई कर्मसंन्यास की साधना के लिये एक महीने का समय श्री महाराज जी ने रखा है (नोट - जगद्गुरु कृपालु जी महाराज की जन्मस्थली भक्ति धाम मनगढ़ में प्रत्येक वर्ष दशहरे से कार्तिक पूर्णिमा तक अहर्निश भगवन्नाम संकीर्तन, प्रवचन इत्यादि के माध्यम से 1 महीने का साधना शिविर आयोजित किया जाता है। प्रथम साधना शिविर 1966 में आयोजित किया गया किन्तु आज भी यह प्रत्येक वर्ष उसी प्रकार से चल रहा है।) इस एक महीने को हम बचाय रखें, छुट्टियों को बचाय रखें सर्विस वाले, और भी व्यापार वाले हो कोई हो अपना हिसाब बिठा लें कि भई हम एक महीना इसमें देंगे। बड़ी मजबूरी हो जाय, अच्छा बीस दिन देंगे, अच्छा पन्द्रह दिन अवश्य देंगे। जितना अधिक समय दे सकें इस लाभ के लेने में तो फिर ये विशेष पावर मिलेगी। 

अब आप लोग जब यहाँ से अपने घरों को जायेंगे तो यही मनगढ़ का सत्संग भवन आपको कई दिन तक गूँजता रहेगा खोपड़ी में और वही राधारमणा गूँजेगा और आप उस एटमॉसफिअर में जा के इतना परेशान होंगे कि कहाँ आ गये नरक में लेकिन जब कुछ दिन उस एटमॉसफिअर में रहेंगे तो फिर ये भूल जायेगा मनगढ़।

ऐसा हिसाब है कि जो वातावरण बार-बार मिलता है वही हावी हो जाता है। बार- बार बार-बार कोई वातावरण हो, स्पिरिचुअल हो चाहे मटीरिअल हो, जो भी वातावरण बार-बार मिलेगा बस वही आप पर अधिकार कर लेगा । इसलिये हमको अधिक से अधिक समय निकाल करके साधना में बढ़ना चाहिये और अपने घर में जितना अधिक से अधिक समय मिल सके कर्मसंन्यास की साधना भी करें और विशेष कर्मयोग की भी करें। इस प्रकार साधना करते हुए आप आगे बढ़ सकते हैं। 
:- श्री महाराज जी ( पुस्तक भगवद् गीता ज्ञान -३ )

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