जीव का एक मात्र काम है अपने गुरू के शरणागत होकर साधन भक्ति जैसे भगवान का , गुरू का उनके धाम का , लीला का, रूप का , गुण का चिंतन , स्मरण , रूपध्यान युक्त किर्तन करना । उनकी सेवा करना , उनके निमित्त दान करना । इससे उसके अंत:करण की शुद्धि होगी ।
जीव का एक मात्र काम है अपने गुरू के शरणागत होकर साधन भक्ति जैसे भगवान का , गुरू का उनके धाम का , लीला का, रूप का , गुण का चिंतन , स्मरण , रूपध्यान युक्त किर्तन करना । उनकी सेवा करना , उनके निमित्त दान करना । इससे उसके अंत:करण की शुद्धि होगी ।
तत्पश्चात गुरू उसके अंत:करण को स्वरूप शक्ति से दिव्य बना देगा और प्रेम दान करेगा ।
तब जाकर वो भगवान कि सेवा , भक्ति करेगा , उससे पहले नहीं ।
उससे पहले जीव भगवान कि भक्ति सेवा कैसे करेगा भला ? वो न भगवान को देखा है और न उनको जान सकता है ।
जीव भगवान का शरणागत भी नहीं हो सकता । क्योंकि जीव तो उनको जानता भी नहीं , देख भी नहीं सकता तो कैसे उनके शरण में जाएगा बेचारा ?
जीव को सबसे पहले किसी श्रोत्रिय तथा ब्रह्मनिष्ठ भगवद् प्राप्त महापुरुष के शरण में हीं जाना पड़ेगा । उनको अपना गुरू बनाना होगा , फिर उनके द्वारा बतलाया गया साधन भक्ति , सेवा , दान आदि करेगा जीव ।
इन साधनों से उसका अंत:करण जब शूद्ध हो जाएगा, फिर गुरू उसको दिव्य बना कर उस दिव्य अंत:करण में प्रेम दान करेगा । तब जाकर उसका तमाम मन बुद्धि, इंद्रियां आदि सभी दिव्य हो जाएगा । वो माया से परे हो जाएगा ।
जब जीव का तमाम ईद्रियांदि दिव्य हो जाएगा फिर वो भगवान को देख सकता है , उनको छू सकता है , उनका आलिंगन कर सकता है , उनसे बातें कर सकता है , उनकी सेवा कर सकता है , उनकी भक्ति कर सकता है, आभास में नहीं , फैक्ट में देख सकता है वो , ठीक वैसे हीं जैसे आप मुझे देख रहे हैं ,एक दुसरे को हमलोग देख सुन रहे हैं वैसे ।
अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को अपना गुरू माना था , फिर गुरू ने तमाम तत्वज्ञान दिया अर्जुन को , और अंत में कहा -
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
यह जगद्गुरु श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन को , वो उनको गुरू माना था न । तो गुरू ने कहा अर्जुन को , सब कुछ छोड़ कर केवल मेरे शरण में आ जाओ अर्जुन ।
अर्जुन जब सेंट परसेंट अपने गुरू के शरण में हो गया तब जगद्गुरु श्री कृष्ण ने अपने स्वरूप शक्ति से उसके इंद्रियों को दिव्य बना दिया , फिर वो भगवान श्री कृष्ण को देख सका , सुन सका । उससे पहले नहीं ।
तो जीव भगवान को न जान सकता है न देख सकता है तो वो भला भगवान के शरण में कैसे जाएगा ? उनकी भक्ति कैसे करेगा , उनकी सेवा कैसे करेगा ?
उसे तो किसी वास्तविक महापुरुष को अपना गुरू मानना होगा , फिर उनके शरण में जाकर उनके बतलाए साधना , सेवा तथा भक्ति करना होगा , फिर काम बनेगा जीव का ।
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