तमाम धर्म भ्रम में डालने वाले हैं और तुमको तो भ्रम मिटाना है? भ्रम माने माया, जिसके कारण आनन्द प्राप्ति से वंचित हो। तो केवल पुण्डरीकाक्ष श्रीकृष्ण में मन का लगाव कर दो, सरेन्डर कर दो, शरणागत कर दो, उनकी भक्ति करो, बस।
युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से शर-शैया पर प्रश्न किया महाराज! तमाम शास्त्र-वेद से तो हम थक गये, संक्षेप में ऐसी कोई चीज बताइये कि धर्म का स्वरूप क्या है? धर्म है क्या?
तो भीष्म पितामह ने उत्तर दिया_
एष मे सर्वधर्माणां धर्मोऽधिकतमो मतः।
यद्भक्त्या पुण्डरीकाक्षं स्तवैरर्चेन्नरः सदा॥
(महाभारत)
तमाम धर्म भ्रम में डालने वाले हैं और तुमको तो भ्रम मिटाना है? भ्रम माने माया, जिसके कारण आनन्द प्राप्ति से वंचित हो। तो केवल पुण्डरीकाक्ष श्रीकृष्ण में मन का लगाव कर दो, सरेन्डर कर दो, शरणागत कर दो, उनकी भक्ति करो, बस। इसके अतिरिक्त कोई धर्म ही नहीं होता। धर्म माने, आप जानते हैं? धर्म माने होता है धारण करने योग्य। धारण करने योग्य, जैसे आप लोग शरीर के लिये धारण करने योग्य आटा, दाल, चावल सब रखते हैं, बनाते हैं, खाते हैं क्यों? वह शरीर चलाने के लिये, शरीर को धारण करने के लिये योग्य है, वह सब सामान। ऐसे ही इस आत्मा का जो स्वरूप है असली, उसके धारण करने का सामान क्या है? स्प्रिचुअल खाना क्या है? कुछ नहीं है और कहीं नहीं सोचना। बस, श्रीकृष्ण को धारण करो, यही धर्म है क्योंकि तुम श्रीकृष्ण के दास हो। तुम्हारा धर्म है, अपने स्वामी को धारण करना, सीधा-सीधा हिसाब है। इसके अलावा अगर कोई और कुछ धारण करे, धारण करने को कहे, तो समझ लेना कि उसके चारों स्क्रू ढीले हैं, एक नहीं।
वेदव्यास बड़ा सुन्दर कहते हैं, स्कंद पुराण में -
स कर्ता सर्वधर्माणां यो भक्तस्तव केशव।
स कर्ता सर्वपापानां यो न भक्तस्तवाच्युत॥
(स्कंद पुराण)
जिसने श्रीकृष्ण की भक्ति की, वह समस्त धर्मों को कर चुका। सारे धर्म उसको नमस्कार करेंगे। उसे कुछ नहीं करना। अरे देखो ! संसार में एक गवर्नर का पी. ए. होता है, प्रेसीडेन्ट का पी. ए. होता है, प्राइम मिनिस्टर का पी. ए. होता है, बड़े-बडे ऑफिसर, कलेक्टर, कमिश्नर, सब उसको सलाम करते हैं, खुशामद करते हैं। वह गवर्नर तो नहीं है, प्राइम मिनिस्टर तो नहीं है, अरे, पी. ए. तो है? उसका आदमी है। तो भगवान् का आदमी जो बन जाये, उसके खिलाफ उँगली उठाने की हिम्मत इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज, ब्रह्मा, शंकर, किसी में नहीं है। आप जानते हैं, जब नरसिंह अवतार हुआ था और हिरण्यकशिपु को मार दिया, नृसिंह भगवान् ने। तो ब्रह्मा, शंकर वगैरह सब थे वहाँ। इन लोगों ने मीटिंग की- अरे भाई! भगवान हमारे मृत्यु लोक में आये हैं। इनका अभिनंदन करना चाहिये, कुछ थैंक्स देना चाहिये, धन्यवाद देना चाहिये। हम लोगों का इतना बड़ा काम किया इन्होंने, एटीकेट कहता है। तो ब्रह्मा शंकर से कहे, तुम जाओ, तुम तो सृष्टि संहार करने की शक्ति रखते हो, तुम जाओ। ऐ! तुम जाओ, तुमने सृष्टि की है, अरे! विष्णु तुम जाओ। तुम तो रक्षा करने वाले हो, सारी सृष्टि की। एक दूसरे को ठेल रहे हैं कि तुम पहले चलो, आगे-आगे, तो पीछे-पीछे हम चलेंगे। इतने भयभीत हैं, ये लोग! इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज की कहाँ गिनती? किसी का साहस नहीं हुआ। लक्ष्मी के पास गये कि हमेशा चरण दबाया है तुमने, आज तो यह काम करा दो, हम लोगों को आगे-आगे तुम चलो माँ, पीछे-पीछे हम लोग चलते हैं। लक्ष्मी कहती हैं- ना, मेरा तो शरीर काँप रहा है, इनको देख करके। अंत में नृसिंह का जो आदमी था, उनका आदमी, पर्सनल आदमी जो था, उसने इन लोगों को घबराते हुए देखा। उसने कहा- इधर आओ, सब लोग, मैं चलता हूँ आगे-आगे प्रह्लाद चले। सब दंग रह गये छोटा-सा बालक, अरे, मामूली शेर को भी कोई देख ले सामने खड़ा हुआ, कोई पहलवान, तो कांपने लगे और भगवान् का जो शेर का स्वरूप बना है, उसको देखकर प्रह्लाद मुस्कुराते हुए कह रहा है कि आइये, आप लोग क्यों डर रहे हैं? ये तो हमारे प्राणवल्लभ हैं, हमारी आत्मा के जीवन दाता हैं। ये भक्षक नहीं हैं, रक्षक हैं। क्यों डरते हो? यह प्रह्लाद की स्थिति और जब गये तब नृसिंह भगवान ने प्रहलाद को उठा लिया, प्रह्लाद के चरण को अपने हाथ पर रखा और एक हाथ सिर के ऊपर और क्रोध समाप्त। आनन्द के आँसू बह रहे हैं, नाचने लगे। इतना प्यार करते हैं भगवान् अपने आदमी से, फिर औरों की बेचारों की क्या हिम्मत है, जो कोई उँगली उठावे। बहुत-सी आप लोगों ने कथायें सुनी हैं- अम्बरीष वगैरह की। आप लोग जानते हैं। इसलिए जिसने भगवान् की भक्ति की, उसने सब धर्म का पालन कर लिया और जिसने भगवान् की भक्ति नहीं की और सब कुछ किया, ध्यान दीजिए और सब कुछ किया। बड़ा वर्णाश्रम धर्म का पालन किया, तपस्या किया, योग किया, बड़ी-बड़ी साधना की, नई सृष्टि बना सकता है, विश्वामित्र की अवस्था पर पहुँचकर। नया स्वर्ग बना दिया विश्वामित्र ने। सब धिक्कार है, इस तपस्या पर और इस चमत्कार पर। भक्त लोग लात मारते हैं इसके ऊपर, दृष्टिपात तक नहीं करते ऐसे कर्म पर, वह पाप हैं सब। उसको पाप कह रहे हैं वेदव्यास
इसीलिए पद्म पुराण में वेदव्यास ने कहा-
मन्निमित्तं कृतं पापं मद्धर्माय च कल्पते।
मामनादृत्य धर्मोऽपि पापं स्यान्मत्प्रभावतः॥
ऐ मनुष्यों। मेरे निमित्त किया हुआ पाप भी धर्म हो जाता है और मुझको छोड़कर किया हुआ, धर्म भी पाप हो जाता है।
भगवान् की भक्ति इसलिये-
धर्मो मद्भक्तिकृत् प्रोक्तः।
वेदव्यास ने तो इतना डिटेल में लिखा-
वासुदेव परा वेदा वासुदेव परा मखाः।
वासुदेव परा योगा वासुदेव पराः क्रिया: ॥
(भाग. १-२-२८)
जितनी भी वस्तुयें हैं कर्म, धर्म, दान, तपश्चर्या, सब वासुदेवपरक हैं। अगर वासुदेवपरक नहीं है, तो सब ऐसे है कि जैसे जीरो में गुणा करे कोई, एक लाख से, एक करोड़ से, एक अरब से, तो जवाब क्या आयेगा? जीरो। जीरो में एक करोड़ बार गुणा करने का इतना बड़ा लेबर किया, परिश्रम किया, परिणाम जीरो आया। भगवान् श्रीकृष्ण कह रहे हैं उद्धव से-
एतावान् योग आदिष्टो मच्छिष्यैः सनकादिभिः।
सर्वतो मन आकृष्य मय्यद्धाऽऽवेश्यते यथा॥
(भाग. ११-१३-१४)
एतावान् योग आदिष्टो मच्छिष्यैः सनकादिभिः।
सर्वतो मन आकृष्य मय्यद्धाऽऽवेश्यते यथा॥
(भाग. ११-१३-१४)
उद्धव ये योग शब्द सुनते हो न, योग मार्ग है कोई? हाँ, सुना है, महाराज ! अष्टांग योग होता है। अरे, अष्टांग-फष्टांग नहीं योग का मतलब होता है, समस्त विश्व से, समस्त वस्तुओं से, समस्त वृत्तियों से, मन को हटाकर, केवल मुझमें लगा दे, इसका नाम योग होता है। योग माने जुड़ जाना। मन का मनमोहन से जुड़ जाना, यह योग है। श्यामसुन्दर कौन हैं? यह जान लो, यही ज्ञान है, श्यामसुन्दर की सेवा कैसे की जाये, यह जान लो, यही कर्म है, बस। और कर्म धर्म नहीं होता कुछ, अगर होता है, तो वह मायिक है, बंधन कारक है, चौरासी लाख में घुमाने वाला है। चाहे लौकिक कर्म हो, चाहे वैदिक हो, चाहे मृत्युलोक का फल देने वाला हो, चाहे स्वर्ग लोक देने वाला हो-
कर्मणां परिणामित्वादाविरिञ्चादमङ्गलम्।
(भाग. ११-१९-१८)
वह ब्रह्मलोक तक आपको पहुँचा देगा। उससे क्या होगा?
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
(गीता ८-१६)
फिर लौटकर आओगे-
इष्टापूर्तं मन्यमाना वरिष्ठं नान्यच्छ्रेयो वेदयन्ते प्रमूढाः।
नाकस्य पृष्ठे ते सुकृतेऽनुभूत्वेमं लोकं हीनतरं वा विशन्ति॥
(मुण्डको. १-२-१०)
कुकर, शूकर, कीट, पतंग आदि योनियों में भटकने से मानव देह का चान्स भी मिस कर जाओगे। अतएव बस एक ही मार्ग है, भक्ति मार्ग...।
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी के प्रवचन का अंश।
राधे राधे 🙏
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