द्रौपदी ने question किया था भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य से भरी सभा में कि जब पाण्डव अपने आप को हार गए तो हमको जुआ पर लगाने का अधिकार क्या है? जुआ खेलने का अधिकार कहाँ ? सब सिर नीचा कर लिए कोई जवाब नहीं दे पाए।

धर्मस्य गहनो गतिः। 
द्रौपदी ने question किया था भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य से भरी सभा में कि जब पाण्डव अपने आप को हार गए तो हमको जुआ पर लगाने का अधिकार क्या है? जुआ खेलने का अधिकार कहाँ ? सब सिर नीचा कर लिए कोई जवाब नहीं दे पाए।

अरे भाई, देखो। एक स्त्री है, उसके पति ने कहा- पानी लाओ। ससुर ने कहा- चश्मा उठाओ, हमको दो। सास ने कहा- दूध उबल रहा है, जल्दी उतारो। अब वह किसकी बात माने? अगर कहो कि वह तो बीबी बनी है पति की, उसकी माने। तो वह पति का बाप है, वह पति की माँ है। पति की माँ की बात के आगे पति की बात क्या गलेगी? अगर पति की माँ की मान ले तो वह माँ का पति है, ससुर जो है। उसकी बात क्यों न माने भला? अब बिचारी वह परेशान है, किसकी आज्ञा हम मानें पहले? और जिसकी पहले मानेंगे, बाकी दो का mood off होगा-'हाऽ...! पति के लिए पानी लेने दौड़ गई, हमने चश्मा मँगाया तो नहीं लाई । 
यह इतना टेढ़ा है धर्म का हिसाब कि सरस्वती-बृहस्पति की बुद्धि fail हो जाती है। एक धर्म, एक धर्म को काट देता है। जैसे court में वकालत जब होती है, तो कानून को कानून काटता है। तुम्हारी गोली से यह मरा?

हाँ साहब! हमारी गोली से मरा। फिर तो फाँसी होनी चाहिए तुमको ! नहीं साहब !

क्यों?

हम पक्षी को गोली मार रहे थे, यह पेड़ पर बैठा था। लग गई इसको गोली, मैं क्या करूँ? हमारी गोली से मरा यह सही है, लेकिन हमने मारा नहीं इसको। हम तो पक्षी का शिकार कर रहे थे, अब यह पेड़ पर क्यों बैठा था, यह जाने।

बहुत बारीक बातें हैं। धर्म का विषय जो है, अम्बार है। बहुत बड़ा इसका detail है। इसकी knowledge भी नहीं प्राप्त कर सकता अगर सौ वर्ष भी कोई पढ़े। पालन करना तो बहुत दूर की बात है। केवल भक्ति एक ऐसा साधन है कि सब पापों को भी क्षमा कर दे, अन्त:करण भी शुद्ध कर दे, भगवत्प्राप्ति भी करा दे। सारा काम बन जाए। बस, केवल दो को पकड़े रहो गुरु और भगवान। बाकी सब दिमाग से निकाल दो। क्या धर्म, क्या अधर्म! उसकी theory, उसका सिद्धांत समझना-जानना, इस चक्कर में पड़ा, तो गया! :- श्री महाराज जी ।

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