प्रश्न १: क्षण-क्षण में हमारे अंदर अहंकार आ जाता है। इससे हम कैसे बचें?

अहंकार
प्रश्न १: क्षण-क्षण में हमारे अंदर अहंकार आ जाता है। इससे हम कैसे बचें?

उत्तर: जीव की स्थिति ऐसी है कि अपनी चाल, अपनी बोली, अपना व्यवहार, अपना interest, अपनी style सब उसी को अच्छा लगता है। वह उसी को अच्छा मानता है, बाकी सब उसके सामने बेकार है। अस्मिता जो है वह सबसे भयानक है, अहंकार उसे कहते हैं।

 प्रश्न २ : अहंकार तो क्षण-क्षण में आता है? 
उत्तर: पानी बरसने का समय आ गया है, बरसात है। यह जानते हैं लोग, तो उसके लिए इन्तजाम करते हैं। मकान बनवाते हैं। छाया का प्रबन्ध करते हैं। भूख लगेगी तो खाने का प्रबन्ध करते हैं। जानते हैं शरीर को ढकना जरूरी है समाज में, तो कपड़ा पहनते हैं। अगर कोई जानता है कि अहंकार आता है हमको बार-बार, तो उसको हटाने का प्रयत्न करना चाहिए। सोचना चाहिए कि किस चीज़ का अहंकार है? जितनी चीजें हैं हमसे आगे, वे हैं कहीं की नहीं? अनन्त गुणा आगे हैं हमसे। स्वर्ग में ही हैं, फिर भगवान के लोक में तो हैं ही।

अहंकार तो वह करे, यह माने कि हमसे बड़ा कोई नहीं रूप में, गुण में, बल में, बुद्धि में और जब वह realise करता है कि नहीं जी, हम तो एक subject में भी सर्वज्ञ नहीं हैं। फिर और subject में तो हमसे हज़ार गुणा, लाख गुणा, करोड़ गुणा बड़े लोग हमारे देश में ही हैं। यह बात हर समय दिमाग में रहे तो अहंकार मिटता जाए। अगर philosophy भूल गए, तत्त्व ज्ञान भूल गया, तो अहंकार आएगा।

एक गंदे शरीर का इतना ध्यान रखता है हर आदमी- हर समय ढके रहो, हर समय। ज़रा-सा collar भी टेढ़ा हो गया, ठीक से tie ठीक करो....। कूड़ा-कबाड़ा शरीर की इतनी फिक्र है, आत्मा की फिक्र नहीं। यह सब लापरवाही है :- श्री महाराज जी ।

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