मनुष्य सुख चाहता है लेकिन दुख मिल रहा है ऐसा क्यों ?

कितनी बार बतलाऊं आप लोगो को ,
ज्ञान,योग,कर्मकांड , कर्म , धर्म , जप तप , पुजा पाठ, व्रत उपवास यज्ञ  आदि अभीष्ट फल दे के समाप्त हो जाती है तत्क्षण ,  वो भी इन सब का महत्व कलयुग में  विल्कूल नहीं है , कलयुग में केवल और केवल भक्ति हीं एक मात्र साधन है जीव को लक्ष्य दिलाने के लिए,  भक्ति तो कामधेनु गाय है ये कभी न समाप्त होने वाली वो फलदार वृक्ष है जो हमेशा भक्त के पास रहती है, और इसलिए भक्त के लिए भगवान का प्राण भी समर्पित है । भक्ति मृत्यू के पहले और मृत्यू के बाद भी अनंत काल के लिए भक्त का कभी न समाप्त होने वाला धन है । 

निमि ने भागवत में कहा है :- 
"भयं द्वितीयाभिनिवेशत: स्यादीशादपेतस्य विपर्ययोऽस्मृति:।
तन्माययातो बुध आभजेंत्तं भक्त्यैकयेशं गुरूदेवातात्मा ।।
मनुष्य सुख चाहता  है । वह भगवान का अंश है,  इसलिए पैतृक संपत्ति चाहता है- अनंत ज्ञान, अनंत  आनंद,  अनंत सत्ता ,  अनंत ऐश्वर्य, अनंत यश ;  लेकिन उनसे विमुख होने के कारण माया की संपत्ति जीव को मिल रही है  । चाहता है आनंद , मिल रहा है दुख,  चाहता  है ज्ञान , मिल रही है अज्ञानता , चाहता है अनंत काल के लिए अनंत सत्ता और मिल रहा है सदा मृत्यु का भय,  इसलिए वास्तविक महापुरुष को ढूंढो और महापुरुष को अपनी आत्मा मानो,  अपनी आत्मा !

  पंचवटी में लक्ष्मण जी को  राम ने यही उपदेश दिया था,  जो निमि ने भागवत में कहा है,  मन कर्म और बाणी गुरु की सेवा में संपूर्ण समर्पित करो गुरु को अपनी आत्मा मानकर उनकी सेवा करो 🙏❤️🙏 तब उनकी संपत्ति मिलेगी । सदा के लिए आनंदमय हो जाओगे । :- श्री महराज जी ।

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