भगवत्प्राप्त महापुरुष के जब प्राण जाते हैं,
श्री महाराज जी :- भगवत्कृपा प्राप्त महापुरुष । भगवत्प्राप्त महापुरुष के जब प्राण जाते हैं, इसका रहस्य मैंने आपको बताया था आप लोगों ने भुला न दिया होगा। ७२ करोड़ नाड़ियाँ हमारे शरीर में हैं, उनमें से.
शतं चैका च हृदयस्य नाड्यस्तासां मूर्धानमभिनिःसृतैका तयोर्ध्वमायन्नमृतत्वमेति (वेद)
एक सौ एक नाड़ियों में से एक नाड़ी मूर्धा की ओर गई है, सीधी सिर की ओर। उस नाड़ी से महापुरुष की आत्मा का वह जीव तत्व निकलता है लेकिन निकलने के पहले यमराज स्वयं आता है। आ करके चरणों में प्रणाम करता है और प्रार्थना करता है, आपका समय हो चुका है अगर आप जाना चाहें तो आप गोलोक जाइए।
कानून नहीं है कि जाना ही पड़ेगा। ऐसा नहीं कह सकता यमराज । वह भगवान् के अवतार काल में भगवान् के पास भी जाता है। आपने पढ़ा होगा, सुना होगा, रामराज्य में भी गया था राम के पास। इसी चक्कर में लक्ष्मण का परित्याग हो गया था। दास का काम क्या ? याद दिलाना स्वामी को कि आपका समय हो गया ग्यारह हजार वर्ष, आप चाहें ग्यारह लाख वर्ष रहें, आपका संसार है। लेकिन मैं आपको स्मरण दिलाने आया हूँ। महापुरुषों के चरणों में यमराज अपना मस्तक रखता है।
फिर महापुरुष उस नाड़ी से जो मूर्धा की ओर गई है उससे निकलता है और सूर्य की रश्मियों के द्वारा वह ब्रह्माण्ड को पार करके भगवद्धाम को जाता है अर्थात् वह स्वयं अपनी इच्छा से शरीर छोड़ता है। लेकिन संसार में कोई मरना नहींचाहता,
उसका शरीर हठात् छुड़वाया जाता है।
'ये हमारी मम्मी है, ये हमारा बेटा है, ये हमारा पोता है, ये हमारा नाती है इसलिये मरते समय आप लोगों ने देखा होगा कि सबको बुलाते हैं लोग, अब मेरा अन्तिम समय है मेरी बेटी को बुला दो, पोती को बुला दो, मेरे भाई को बुला दो, सबको चिपटा लें, बैकुण्ठ मिल जायगा।'
अरे, मरने के पहले, मरते समय नहीं।
लेकिन महापुरुष की किसी में आसक्ति नहीं है और वह विदेह है इसलिये स्वेच्छा से शरीर छोड़ता है इसलिये वो भगवान् का स्मरण करे तो ठीक,भगवान् का नाम ले तो ठीक, न ले तो ठीक, वह भगवद्धाम जायगा। :- श्री महाराज जी ( पु -भगवन्नाम माहात्म्य) पेज :- २० , २१ ।
Comments
Post a Comment