प्रश्न १: हम यह भलीभाँति जानते हैं कि संसार में सुख नहीं है। फिर भी हमारा मन अकसर संसार में आसक्त हो जाता है। ऐसा क्यों?
श्री महाराज जी :- मन और बुद्धि
प्रश्न १: हम यह भलीभाँति जानते हैं कि संसार में सुख नहीं है। फिर भी हमारा मन अकसर संसार में आसक्त हो जाता है। ऐसा क्यों?
उत्तर: परीक्षित ने शुकदेव परमहंस से प्रश्न किया था कि महाराज! संसार के सुख में इतना दुःख का mixture है, इतना tension है और भगवान के यहाँ आनन्द-ही-आनन्द है, फिर भी लोग क्यों नहीं भगवान की ओर जाते?
तो शुकदेवजी ने कहा- ठीक है, ठीक है। फिर कभी बता देंगे। दो-चार दिन बाद शुकदेव परमहंस गए जंगल में, परीक्षित भी साथ-साथ गए। एक जगह पाखाना पड़ा हुआ था, सूखा हुआ पाखाना। और उसमें कीड़े गोल-गोल गोली बना रहे थे। उसी में मँडरा रहे थे चारों ओर। शुकदेव परमहंस अपने साथ एक फूल ले गए खुशबूदार । १०-१५ फुट की दूरी पर रख दिया और परीक्षित से कहा- 'देखो भाई, वह बेचारा कीड़ा इतनी गंदी जगह पर दुःखी हो रहा होगा, उसको
लाकर फूल में रख दो।' अब परीक्षित समझे नहीं कि ऐसा गंदा काम करने को गुरुजी हमको क्यों कह रहे हैं! लेकिन अब आज्ञा है गुरुजी की, तो चलो भाई। तो २-४ कीड़े पकड़कर वे ले आए और फूल में रख दिया। फूल में रखते ही वे कीड़े तुरंत about turn, फिर चले गए पाखाने में।
शुकदेव ने कहा- 'समझ में आया परीक्षित ? तब उनको होश आया, उन्होंने कहा- 'हाँ, गुरुजी' इस संसार में जितने भी नारकीय जीव हैं, विषय में आसक्त हैं। इनको भगवान अच्छा नहीं लगता। वो फिर वहीं लौट के जाते हैं ! आदत पड़ी हुई है।
ये जो loafer लड़के होते हैं न! जो लड़कियों को छेड़ते हैं। जब तक दस-बीस गाली और एक-दो चप्पल न मिल जाए, उनको शान्ति नहीं मिलती ! ऐसा ही हाल है संसारी लोगों का।
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