भक्ति और सेवा ।

बड़ी दीदी :- भक्ति और सेवा का गहरा रिश्ता है। सेवाभाव के बिना भक्ति हो ही नहीं सकती। यही कारण है कि हम जो भी सेवा करें उसे बड़े प्रेम से करें परम निष्काम भाव से करें। किन्तु याद रहे कि इस सेवा का श्रेय केवल ईश्वर को जाता है। हममें अपने बल पर हरि-गुरु की सेवा करने की क्षमता हो नहीं सकती ! यदि सेवा का सुफल दिखे, तो यह समझिए कि यह ईश्वर की करुणा है। उनकी मात्र कृपा और कृपा है। हमारी योग्यता यह चमत्कार कदापि नहीं कर सकती।

यदि हम में कोई दुर्बलता है जो हमारी सेवा में बाधक बनकर उपस्थित होती है तो उसके निराकरण के लिए उसे हम ईश्वर के समक्ष रो रोकर समर्पित करें। कोई अपनी ओर से साध्यातीत साधना कर सकता है, अपनी समस्त शक्ति लगा सकता है, किन्तु अन्ततः सबकुछ निर्भर करेगा ईश्वर की कृपा पर ।

भगवत्पथ पर कदम रखते ही हमें सबकुछ करना है समर्पण भाव रखकर। साधना और सेवा करने की अभिलाषा निरंतर रखनी पड़ेगी, पुरुषार्थ भी करना पड़ेगा। सामर्थ्य के अनुसार पूरा जोर भी लगाना पड़ेगा, किन्तु अकेला हमारा सामर्थ्य क्या करेगा? हमारी वास्तविक पिपासा देखकर जब गुरु के हृदय में करुणा जागेगी तो असंभव भी संभव हो जाएगा । और यह कमाल मात्र हमारे समर्पण में छिपा है, अपने को अक्षम जानने में एवं उसकी सक्षमता पर अगाध विश्वास रखने में, पुरुषार्थ के साथ निष्कामता को जोड़ने में । दीनता, निष्कामता, अपार श्रद्धा और अपरिमेय हरि-गुरु प्रेम व भक्ति हमें क्या से क्या बना देगा- - बड़ी दीदी । 🙏❤️🙏

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