भगवान हर जगह , हर बस्तू , हर जीव में है । जो हर क्षण यह फिलिंग रखता है वो कभी पाप का नहीं सोंच सकता । भक्त वो जो हर किसी में भगवान को देखें और स्वयं में भी ।

श्री महाराज जी के श्री मुख से :- भगवान हर जगह हैं वो आपके ह्रदय में भी हैं । वो आपके ह्रदय में वही पर है जहां पर आप है। और हमेशा से हैं और रहेंगे । मरने के बाद भी आप जहां जहां जाएंगे वो वहां वहां आपके साथ जाएगें , चाहे स्वर्ग जाए या नरक या दुसरा जन्म लेकर कुत्ते बिल्ली गदहे आदि किसी भी योनि में जाए , वो हमेशा साथ रहते हैं, वो एक सेकेंड को भी‌ हमसे अलग नहीं हो सकते । 

वो हमारे सायुज्य सखा हैं हमेशा साथ रहते हैं , आप इस बात को जानते हैं पर मानते नहीं । इसलिए उनके उपस्थिति से आपको कोई लाभ नहीं हुआ अबतक , आप सदा से भगवान से विमुख है , उल्टा मुख किये है। एक दिन विमुख हुए , ऐसा नहीं, आप सदा से उनसे विमुख हैं। आप उनको भुले हुए हैं । इसलिए मन से पाप कि सोचते हैं और करते हैं । 
आप समझते हैं जो मैं सोच रहा हुं वो कोई नहीं जानता , अरे वो सब नोट कर रहे हैं , भगवान आपके ह्रदय में बैठ कर आपके सभी संकल्पों को हर क्षण नोट करते रहते हैं , वो आपको रोकते टोकते नहीं, केवलआपके मन में उठे संकल्पों को नोट करते रहते हैं और तदनुसार आपको फल देते हैं । कर्म तो आप बाद में करते हैं , पहले कर्म करने कि संकल्प करते हैं , सोचते हैं मन में , आपने सोचा कि नोट हो गया । आप बच नहीं सकते । आप ने सोचा इसको एक झापड़ लगा दूं । आप ने अभी झापड़ नहीं लगाया पर नोट हो गया । कर्म अभी आपने किया नहीं , केवल सोंचा , बस वो नोट हो गया । 

भगवान हमारे इंद्रियादिक कर्मो के तरफ देखते भी नहीं ,‌ वो तो केवल हमारे मन में उठे संकल्पों को नोट करते रहते हैं हर क्षण और उसी के अनुसार हमको फल देते हैं । हमारे आपके ह्रदय में बैठ कर वो केवल यही करते हैं । 

हम आप सोचते हैं , प्राइवेसी है, हम जो प्राईवेट में सोचते हैं वो कोई नहीं जानता । न न ऐसा नहीं है वो अंदर बैठा सब देख सुन रहा है और नोट कर रहा है और उसी के अनुसार हमको फल दे रहा हैं , कोई प्राइवेसी नहीं , कोई प्राईवेट नहीं । 

लेकिन जिस जीव को हमेशा इस बात कि फिलिंग रहती है अंदर से कि भगवान उनके ह्रदय में हमेशा विद्यमान हैं, वो एक सेकेंड को भी इस बात को नहीं भुलता मन से , ऐसा जीव भक्त हैं । 

तात्पर्य भक्त वो है जिसको हर क्षण इस बात का फिलिंग रहे कि भगवान उसके ह्रदय के साथ साथ सबके ह्रदय में भी है , सभी जगह प्रजेंट हैं , सभी जीवों में हैं , पेड़ पौधे लता पता, मिट्टी , पहाड़ आदि सभी जगह हैं। 

वो एक हाथ में माला लेकर केवल मुख से, रसना से , इंद्रियों से राम राम श्याम श्याम कर रहे है, शरीर से पैदल मार्च तीर्थ विर्थ , पुजा पाठ जप तप व्रत उपवास कर रहे हैं । वो सब धोखा है , वो भक्त नहीं है । मन कहां है तुम्हारा यह इंपौर्टेंट हैं । 

मनएव मनुष्यानाम् कारणम् बंध्य मौक्षयो ।। ब्र बि उपनिषद 

मन कहां है , मन कहां है ? रट लो इस वाक्य को , मन कहां है ? केवल इस बात का महत्व है । इंद्रियों के किसी भी कर्म का कोई फल नहीं । भगवान इंद्रियादिक कर्मों को नोट नहीं करते । मुख से भले राम श्याम न कहो लेकिन मन में हमेशा श्याम सुंदर का स्मरण रहे यह भक्ति है । 

प्रह्लाद से हिरण्यकशिपु ने पुछा , भगवान इस खंभे में है ? 
प्रह्लाद बोला , हां महाराज इस खंभे में भी हैं । उसने खंभे पर अपने गदा से प्रहार किया , भगवान प्रकट हो गए । भगवान खंभे में भी हैं ।

तो भगवान सब जगह है और इसका फिलिंग प्रह्लाद को है वो एक सेकेंड को भी इस बात को नहीं भूलता इसलिए वो भक्त हैं ।‌ संतों को महापुरुषों को हर क्षण इस बात का अनुभव रहता है कि भगवान उनके ह्रदय में बैठे हैं और सभी जीवों में तथा सभी जगह हैं , वो प्रत्येक में हरेक क्षण भगवान को देखता है । 

हम ल़ोग अभी याद रखें, अगले क्षण भुल गए , इसिलिए पाप कर बैठते हैं । पाप का कारण यही है, हम जानते तो हैं पर हर क्षण यह मानते नहीं ,‌ इस बात का ध्यान नहीं रखते , इसलिए हर समय इसका फिलिंग नहीं और पाप करते रहते हैं । 
जिस जीव को हमेशा , हर क्षण , प्रत्येक सेकेंड इस बात का फिलिंग है मन में कि भगवान उसके ह्रदय में बैठे हैं वो भक्त हैं । 
:- श्री महाराज जी के प्रवचन के विडियो का अंश ।

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