प्रश्न २ : चाहते हुए भी हम भगवत् विषय में अधिक समय नहीं दे पाते क्योंकि परिवार के लिए duty भी निभाना पड़ता है, इसका क्या समाधान है?

प्रश्न २ : चाहते हुए भी हम भगवत् विषय में अधिक समय नहीं दे पाते क्योंकि परिवार के लिए duty भी निभाना पड़ता है, इसका क्या समाधान है?

उत्तर : अरे भाई, देखो। स्त्री है, बेटा है, बेटी है- यह परिवार हो गया। माँ-बाप मर गए लेकिन बेटा-बेटी, स्त्री हैं। इसी में मन का attachment है, चार-छ: में। इसके आगे बढ़ाओ तो • बहुत बड़ा अपराध है तुम्हारा। तब बेटी का बेटा है, बेटे का बेटा है, वहाँ भी attachment कर लो। इसका मतलब मरने पर तैयार हो तुम ! ८४ लाख में घूमने का शौक सवार है तुमको |

तुम्हारी duty अपने बच्चों तक है, बच्चों के बच्चों को बच्चे सँभालें। हम क्यों attachment करके मरें उसके पीछे और अपना भविष्य खराब करें तो यह हमारी नासमझी है। हम भगवान को भूल • जाते हैं, संसार को ही अपना मानने लगते हैं।

तो विवेक से अभ्यास करें। भगवत् विषय में, वानप्रस्थ आश्रम में पचास साल के बाद क्या बताया गया है कि अपने बाल-बच्चों को भी छोड़ो और खाली मियाँ-बीबी साधना करो। practice करो, भगवान में मन लगाओ। और कोई काम नहीं तुम्हारा। हम मरते-मरते तक नाती-पोते के चक्कर में पड़े रहते हैं। भला बताओ कि कितनी हमारी duty शास्त्र-वेद ने बताई है? अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा के पालन-पोषण करके तैयार कर दो, तुम्हारी duty खत्म। तुम पितृ ऋण से उऋण हो गए। अब इसके बाद अपना भी तो बनाओ! हर जन्म में तुमको ये बेटे पोते नहीं मिलेंगे, कर्म के अनुसार जाना होगा। ये तो यहीं बैठे रहेंगे। दो-चार हजार रुपया खर्चा करके क्रियाकर्म कर देंगे और नमस्ते कर देंगे।

प्रश्न ३:- वह भी लोक-लज्जा के लिए करतें हैं अन्यथा वह भी न करें । 

उत्तर: हाँ, वह भी न करें। स्वार्थ का तमाशा है। हमें उन लोगों को देखकर बहुत कष्ट होता है कि जिनके लड़के बड़े-बड़े हो गए। सब duty खत्म हो गई। वह भी बच्चों के बच्चों में आसक्त हैं। उनकी दो रोटी का प्रबन्ध है। एक तो यह होता है कि बूढ़ा आदमी है, उसको खाने के लिए बच्चा ही दे सकता है। उसके पास पैसा नहीं है और कोई साधन नहीं है। तो अब बच्चे के बच्चों को गोदी में लिए घूमता है। वहाँ तो ठीक है, मजबूरी है। नहीं करेगा तो दो रोटी नहीं मिलेगी। लेकिन जिसको अपना दो रोटी का प्रबंध है, वह भी उसी में मरता है। और इससे बच्चे आवारा होते हैं, बच्चे लापरवाह होते हैं। उनका अपने बच्चों में प्यार नहीं हो सकता। वह तो चालाकी होती है बच्चों की कि माँ-बाप को इसमें उलझाए रहो, स्वयं स्वतंत्र रहो।

जिनको भगवान से प्यार न हो, भगवान की importance समझ में न आई हो, तो वह बेचारा करे क्या बुढ़ापे में? बैठा है। नाती-पोते चारों ओर घेरे हैं, उन्हीं में खेल रहा है, जिन्दगी बिता रहा है बेचारा। लेकिन जिसको समझ में आ गया है कि भगवान ही साथी हैं, ये तो चार दिन में हमारा साथ छोड़ेंगे ही, तो उनको तो ऐसा नहीं करना चाहिए। :- श्री महाराज जी । 🙏❤️🙏

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