संसार में जीवों के सुख दुख का दाता कौन ? कारण क्या ?
संसार में जीवों के सुख दुख का दाता कौन ? कारण क्या ?
उत्तर :- संसार में प्रायः लोग भगवान को दोष देते हैं कि भगवान ही हमारे सुख तथा दुख का कारण है , भगवान ही हमें दुख देते हैं इसलिए हम दुखी हैं !
यह सबसे बड़ी अज्ञानता है । भला भगवान क्यों किसी को सुख या दुख देंगे ? भगवान तो सत् चित् तथा आनंद है , उनके पास दुख कहां जो किसी को वो दुख देंगे ? जिसके पास जो रहता है वहीं तो वो देता है । तो भगवान तो आनंद ही आनंद है। वो सदा आनंदमय है और उनकी शरणागति करने वालों को भी वो आनंदमय बना देते हैं सदा के लिए ।
अरे दुख तो जीव को उससे मिलता है जिसके शरण में जीव है , जिसके अधीन जीव है । जीव चूंकि माया के आधीन है सदा से , जीव माया के शरण में है सदा से , जीव माया का नौकर है, माया का दास है, गुलाम हैं इसलिए उसे मायिक अथवा संसारिक सुख दुख माया से ही मिलता है । माया हीं दुख की जननी है क्योंकि माया के पास भगवान वाला आनंद है हीं नहीं , उसके पास तो क्षणिक एवं अस्थाई सुख तथा आत्यंतिक दुख है ।
अब जीव चूंकि माया के शरणागत है , माया के आधीन है , माया का गुलाम हैं और उसी माया के अधीनता में अपना कर्म, धर्म, तथा चिंतन आदि करता रहता है दिन रात इसलिए उसे मायाजनित सुख और दुख हीं मिला करता है तथा हमेशा मिलेगा ।
"काहु न कोउ सुख दुख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता।।"
'कोई किसीको सुख-दुःखका देनेवाला नहीं है। सब अपने ही किये हुए कर्मोंका फल भोगते हैं।'
आप जिसकी चाकरी करोगे , जिसकी नौकड़ी कर रहे हैं , जिसकी गुलामी कर रहे हैं , जिसके अधिनस्थ होकर कर्म कर रहे हैं , जिसकी सेवा कर रहे हैं तो वो आपका मालिक उसी अनुसार आपको सुख दुख दे रहा है । भगवान भला क्या करेंगे ? यह चुनाव तो आपका है कि आप किसकी नौकड़ी करो ? जिसकी नौकड़ी कर रहे हो , उसके पास जो है वो आपको मिल रहा है !
आपके मालिक माया के पास भगवान वाला सुख , भगवान वाला आनंद है हीं नहीं तो आपको उससे आनंद कैसे मिलेगा , आपके दुख कि निवृत्ति कैसी होगी ?
देखो इसी संसार में दो प्रकार के लोग रहते हैं , एक हमलोग है जो माया के अधीन है , माया के गुलाम हैं इसलिए माया हमको झापड़ लगाती रहती है हमारे कर्म के अनुसार । फिर भी हम माया को नहीं छोड़ते । ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कोई मनुष्य किसी सेठ के यहां नौकड़ी कर रहा है । अब वो सेठ अपने स्वार्थ के अनुकूल किसी के कर्म को करते हुए पाता है तो उसे मेहनताना के रूप में सैलरी के साथ साथ पुरस्कार भी देता है और जो ठीक से काम नहीं करता है तो उसे दंड देता है । दंड देता है तो नौकड़ को दुख होता है ।
और दुसरा वो लोग हैं इसी संसार में जो माया से मुक्त हो चुके हैं , वो भगवान के शरणागत है, वो माया के अधीनता को त्याग कर , मायिक बिषय तथा बस्तुओं के कामना को त्याग कर भगवान के शरण होकर भगवान की निष्काम सेवा करते हैं, उनकी भक्ति करते हैं , भगवान की नौकड़ी कर रहे हैं ।
इसलिए ऐसे लोग महापुरुष हों चुके हैं , उनको भगवान से ईश्वरीय राज्य का सुख , आनंद मिल चुका है और लगातार मिलता रहता है , जो सदा बढ़ने वाला है तथा अनंत मात्रा का है ।
माया कि हिम्मत नहीं कि वो उसके पास तक फटक सके ।
इसलिए महापुरूष लोगों को कोई दुख नहीं , सदा आनंदमय रहते हैं इसी संसार में ।
तो सारांश यह कि हम आप जिसकी गुलामी कर रहे हैं उस माया के पास आनंद नहीं है , उसके पास ऐसा सुख है जो क्षणिक है , अस्थाई है तथा केवल शारीरिक है , इंद्रियादिक है और अंतत्वोगत्वा दुख देने वाला है , अत: मायाधीन जीव को सुख दुख उसके स्वामी माया से ही मिलता है , भगवान उसके सुख दुख का जिम्मेदार नहीं हैं ।
जिस दिन हम आप माया कि गुलामी छोड़ कर भगवान कि शरण में सदा के लिए चले जाएंगे, हम भी आनंदमय हो जाएंगे सदा के लिए , श्री राधे ।
:- श्री महाराज जी तथा पूज्यनीयां मां से प्राप्त दृष्टि से । श्री राधे ।
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