प्रश्न :- क्या कर्म धर्म से पाप समाप्त हो जाते हैं ?

श्री महाराज जी के श्री मुख से
प्रश्न :- क्या कर्म धर्म से पाप समाप्त हो जाते हैं ?

उत्तर :- एक स्वाभाविक प्रश्न यह भी होता है कि जब वेद कहताहै कि-

धर्मेण पापमपनुदंति ।

अर्थात् धर्म से पाप नष्ट होता है, तो फिर क्या धर्म से मुक्ति नहीं हो सकती ? इसका उत्तर वेदव्यास ने बड़ा सुन्दर दिया है। उन्होंने कहा कि:- 

धर्मः सत्यदयोपेतो विद्या वा तपसान्विता
मद्भक्त्यापेतमात्मानं न सम्यक् प्रपुनाति हि ॥ (भागवत ११.१४.२२) 
अर्थात् सत्य एवं दया से युक्त धर्म तथा तपश्चर्या से युक्त विद्या भी अन्त:करण की शुद्धि नहीं कर सकती। पुनश्च

तैस्तान्यघानि पूयन्ते तपोदान जपादिभिः
नाधर्मजं तद्धृदयं तदपीशाङ्घ्रिसेवया ॥ (भागवत ६.२.१७)

अर्थात् दान, यज्ञ, तप व्रतादि वैदिक-धर्मों से पाप तो नष्ट होता है किन्तु अन्त:करण की शुद्धि नहीं हो सकती। आप लोग कहेंगे, जब पाप नष्ट होता है, तब अन्तःकरण की
शुद्धि तो स्वयमेव हो ही जायगी। किन्तु ऐसा नहीं है। जैसे, आपने एक गोहत्या का पाप किया, अब उसके लिये लिखे हुए धर्मानुकूल प्रायश्चित्त भी किये, जिससे गोहत्या का पाप तो नष्ट हो गया किन्तु पाप करने की चित्तवृत्ति का नाश नहीं हुआ। आप पुनः पाप करेंगे और इसी प्रकार सदा पाप करते रहेंगे एवं उसके लिये प्रायश्चित्त कर्म-धर्म का पालन करते रहेंगे। इस प्रकार चित्त-शुद्धि कभी न हो सकेगी।

पुनश्च, पाप तो कम समय में होता है, प्रायश्चित्त अधिक समय में होता है। पुनश्च, यदि पाप सदा के लिए नष्ट हो जाय तो भी अनन्तानन्त जन्मों के संचित पाप-पुण्य अनन्तकाल के प्रायश्चित्त से भी न समाप्त होंगे क्योंकि वे अनन्त हैं। तब फिर मुक्ति कैसे मिलेगी ? अस्तु, अन्तःकरण की शुद्धि के लिये भक्ति करनी पड़ेगी। आदि शंकराचार्य तक कहते हैं -

शुद्ध्यति हि नान्तरात्मा कृष्णपदाम्भोज भक्तिमृते॥

अर्थात् श्रीकृष्ण-भक्ति के बिना अन्तःकरण की शुद्धि नहीं हो सकती और अन्तःकरण की शुद्धि के बिना बहिरंग पाप के प्रायश्चित्त से भविष्य में पाप न होने की कोई गारंटी नहीं है। तात्पर्य यह कि भक्ति के बिना धर्म पालन मात्र से मुक्ति तो दूर की बात है, अन्तःकरण-शुद्धि तक ही नहीं हो सकती। यही कारण है कि बिना ईश्वर-भक्ति के हम धर्म करते हुए भी ईश्वरीय फल से वंचित रहते हैं। मछली गंगाजल में सदा रहती है, पर भक्ति के बिना उद्धार नहीं होता। आप लोग यह आशा करते हैं कि एक डुबकी लगाने मात्र से हम बैकुण्ठ पहुँच जायें। यह सब धोखा है। :- श्री महाराज जी ( उनका पुस्तक " कर्मयोग " भगवद् गीता ज्ञान , प्रवचन स्थल गीता भवन मुंबई )

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