अर्थ अनर्थ बन जाता है जब मनुष्य सिर्फ़ धन कमाने के पीछे भागता रहता है ।

तत्त्वज्ञान जब हो जाता है मनुष्य को तो वो इस चक्कर में नहीं पड़ता कि हम दान न करके कमाते ही जायँ, कमाते ही जायँ।

देखो, जिस बच्चे को बाप कमाकर करोड़ों रुपया दे जाता है वो बच्चा ९९ प्रतिशत (नाइन्टी नाइन परसैन्ट) आवारा हो जाता है क्योंकि उसको तो मेहनत पड़ी नहीं, पका पकाया मिल गया। बड़े-बड़े सेठों के लड़के इतने आवारा, इतने गुण्डे कि उनके साथ तमाम गुण्डों का झुण्ड। कहीं मर्डर करा दें, कहीं कुछ करा दें क्योंकि पैसों का बल है।

ये पैसा जो है - इतना अनर्थकारी है और इतना कल्याणकारी भी है, सही जगह में लगा दे तो। संसार में ही रहना है उसको। नहीं सही जगह में लगाओगे तो गलत जगह लगायेंगे तुम्हारे बच्चे। वो तो संसार में रहेगा, कहीं बाहर नहीं जायेगा। तुम चले जाओगे संसार से और दण्ड भोगना पड़ेगा। जिसको सत्संग नहीं मिलता और अपने परमार्थ की चिन्ता नहीं हैं वो लोग बस, जमा करने में लगे रहते हैं।

कोई काम नहीं, कोई धाम नहीं, कोई मतलब नहीं। बच्चा भी पढ़ गया है, लड़की की भी शादी हो गई है। सब काम हो गया है। हाँ, ये है कि आवश्यकता यदि किसी को है कि हमारे लड़की है उसकी शादी करना है। हम सौ सौ रुपया हर महीना जमा करते हैं। तो शादी के समय हमारे पास एक लाख हो जायेगा। वो जायज है, ठीक है करो। लेकिन तुम्हारे पास करोड़ों हैं और कोई आवश्यकता नहीं है, उसको बढ़ाने में लगे हो, दान नहीं करते। तो अपराधी माने जाओगे, उसका दण्ड मिलेगा, कोई नहीं छूटेगा उससे।

इन्कम टैक्स से बचने के तरीके तो वकील लोग निकाल लेते हैं। हमारे देश में खरबों रुपया ब्लैकमनी है, सब जानते हैं, गवर्नमेन्ट भी जानती है; लेकिन कुछ नहीं कर सकती। सबको पता है एक दुकान लेने में एक करोड़, पचास लाख पगड़ी देनी पड़ती है। लेकिन लिखा पढ़ी नहीं है, सरकार कुछ नहीं कर सकती। पता सबको है लेकिन कानून के अनुसार कुछ नहीं कर सकती। फैक्ट पता है, लेकिन भगवान् तो सर्वांतर्यामी है। उसके यहाँ घपड़ शपड़ न चलेगा। दण्ड मिलेगा।

*प्रवचनांश- भक्तियोगरसावतार जगद्गुरूत्तम १००८ स्वामि श्री कृपालु जी महाराज*

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