प्रश्न :- असली संत और महापुरुषों कि पहचान क्या है ? उत्तर :-

प्रश्न :- असली संत और महापुरुषों कि पहचान क्या है ? 
उत्तर :- असली संत , महापुरुष जीव का यानि अपने शरणागत शिष्यों की आसक्ति (Attachment ) को
संसार से मिटा कर भगवान के साथ जोड़ने का लगातार प्रयास करते रहते हैं जिससे जीव का सभी मायिक कामनाएं , संसार संबंधित कामनाएं धीरे धीरे समाप्त हो जाए तथा ये भगवद् संबंधित कामनाओं में बदल जाए । 
क्योंकि संसारिक कामनाएं ( भौतिक कामनाएं ) ही जीवों के दुःखों का मूल कारण है । जब तक जीव संसारिक कामनाओं को त्याग कर निष्काम नहीं हो जाता है वो भगवान संबंधित निष्काम कामनाएं कभी बना हीं नहीं सकता । 
वो संसार को छोड़ कर भगवान की ओर चल हीं नहीं सकता और न उसकी चित्तवृत्ति कभी शुद्ध हो सकती है। 

संसारिक कामनाओं के रहते हरि गुरू में उसकी आसक्ति, रूचि कभी बढ़ नहीं सकती है, असंभव ! जितनी मात्रा में जीवों कि संसारिक कामनाएं मिटेगी उतनी ही मात्रा में जीव का अटैचमेंट गुरू तथा भगवान से बढ़ेगा एवं उतनी ही मात्रा में वो भगवान कि ओर चलेगा , गुरू की शरणागति करेगा , सेवा करेगा , उतनी ही मात्रा में वो माया से उत्तीर्ण होगा और उतनी हीं मात्रा में हरिगुरू उसके योगक्षेम को वहन करेगा और वो दुख से मुक्ति पाकर असली सुख और आनंद को प्राप्त करने का अधिकारी बनेगा । 

अत: जब तक जीवों कि रूचि , आसक्ति ( Attachment) हरि गुरू से नहीं बढ़ेगी वो भगवद् मार्ग पर , साधन भक्ति के मार्ग पर नहीं चल सकता , न वो हरि तथा गुरू का निष्काम सेवा कर सकता है वो साधना सेवा कल पर टालता रहेगा और दुखी रहेगा । उसके मन के अंदर कहीं न कहीं गुप्त रूप से संसार का हीं वैभव , सुख तथा मायिक ऐश्वर्य को पाने की कामनाएं फलती फूलती रहेगी , भले ही उपर से वो इसे हरिगुरू को जाहिर न करें लेकिन हरि तथा गुरू यह अच्छी तरह समझते हैं , उसके मन में उठे भावों को नोट करते हैं । किसी भी जीव के मन के भाव को वास्तविक संत अच्छी तरह जानते हैं (Read करते हैं ) लेकिन प्रकट नहीं करते, उसके इन कामनाओं से तथा कुसंस्कारों से लड़ते रहते हैं, उसे मिटाने का प्रयास नाना विधि से करते रहते हैं । 
असली संत किसी भी जीव को संसार नहीं देते , बस जितना जरूरत है शरीर के लिए, उसे वह भगवान द्वारा गुरू के केअर औफ ( Care off Guru ) मिलता है इसी को योगक्षेम वहन करना कहते हैं । 
और जो संसार देने का नाटक करता है वो संत, महापुरूष तो बहुत दुर कि बात है एक ठग से बढ़ कर कुछ नहीं है । 
क्योंकि संसारिक बस्तू तो जीव के केवल अपने हीं प्रार्बध ( पिछले जन्मों के संचित कर्मों का एक भाग ) तथा क्रियामान कर्म के फल के रूप भगवान से हीं मिलता है , वो भी न एक रत्ती ज्यादा और न एक रत्ती कम , चाहे वो भगवान को माने या न माने , या गालियां दे। हां वो अलग बात है कि भगवान और महापुरुषों को गालियां देने का , अपमान करने का भी दंड भविष्य में अलग से मिलता ही है क्योंकि अपमान करना भी एक कर्म ही है तो इसका फल भी मिलना तय है एक दिन । इसमें इंटरफेयर करने का अधिकार किसी में भी नहीं है , किसी भी संत तथा महापुरुषों में भी नहीं है चाहे वो कितना भी बड़ा सिद्ध महात्मा क्यों न हो , वो भगवान के इच्छा विरूद्ध न तो जा सकता है , और न कोई काम कर सकता है कभी । 

देखिए यह भगवान का सिद्धांत है कि किसी भगवद् प्राप्त संत को भगवान अपनी सारी शक्ति दे देते हैं लेकिन दो काम वो किसी को नहीं देते हैं वो हैं :-
 "विश्व व्यापार वर्जनम्" यानि पहला सृष्टि करना तथा दुसरा प्रत्येक जीवों के मन में उठे संकल्पों को एवं कर्मों को नोट करके तदनुसार उसे फल देने का अधिकार या काम वो किसी भी भक्त , संत या महापुरूषों को नहीं देते हैं और न कोई वास्तविक संत, भक्त या महापुरूष उनसे यह काम मांगता हैं, तो भला कोई महापुरुष यह कैसे दावा कर सकता है कि वो किसी जीव को आशीर्वाद देकर संसार में उसके द्वारा बिना कर्म किए हुए संसारिक सामान दे दे ? 
यह तो भगवान के कानून उनके वेदों शास्त्रों के खिलाफ बात है ।
और भला भगवान का कोई निज जन , उनका वास्तविक संत , महापुरुष भगवान के नियम के विरुद्ध जाकर किसी को बिना कर्म किए हुए , बिना पुरूषार्थ किए हुए बैठे बैठाए कोई भी संसारिक सामान या भगवद् संबंधित सामान भी क्यों दे देगा ? 
अगर कोई देने का दावा करता है तो इसका मतलव तो यह हुआ कि वो स्वयं को भगवान के ऊपर मानता है ? वो भगवान के कर्म तथा फल के विधान को नहीं मानता ? 
और भगवान के ऊपर तो कोई नहीं और न होगा भविष्य में कभी । तो फिर जो संत या महापुरूष किसी जीव को संसार देने का दावा करता है , संसारिक सामान के लिए आशिर्वाद देता है तो यह सिद्ध हुआ कि वो पाखंडी है, ढोंगी है , ठग है, भगवान के सत्ता का द्रोही है, वो भगवान को जानता ही नहीं और न वो शास्त्रों को जानता है , वो एक अज्ञानी है , स्वयं के लिए पाप कमा रहा है और कुछ नहीं । ऐसे बाबा लोगों से सदा सावधान रहना चाहिए। 

अरे शास्त्र का तो उद्घोष है कि इसी संसारिक कामनाओं ने तो अनंत मानव जन्म को बर्बाद करने का मुख्य कारण बना, जीवों के दुखों का कारण बना , संसार में चौरासी लाख योनियों में आवागमन का कारण बना और फिर तुम उसे उसी दुख के दलदल में धकेलने का पाखंड कर रहे हो, पाप कर रहे हो , उसे ठग रहे हो ? लोगों को कान फुक कर, आशिर्वाद देने का खुलेआम नाटक करके , ढोंग करके भोले भाले लोगों को बहका रहे हो, उसे और पाप के दलदल में धकेल रहे हो , वो भगवान के तरफ क्या चलेगा वो तो संसार में भी और अधिक अकर्मण्य बन जाएगा , वो तो संसारिक सामान के लिए भी ठीक से कभी कोई पुरूषार्थ नहीं करेगा , इस प्रकार न तो उसे माया मिलेगी और न भगवान , वो न तो इधर का रहेगा और न उधर का ! इस प्रकार वो और भी अधिक दुख भोगेगा संसार में जिसका जिम्मेदार तो तुम होगे !

तो ऐसे पाखंडी लोगों से आपलोग सदा सावधान रहें । ऐसे लोग सनातन वैदिक धर्म का ही द्रोही नहीं वल्कि भगवद् द्रोही भी है । 

असली संत , महापुरूष , भगवान के निज जन जीव के भवरोग का इलाज करते हैं , वे उसे भवरोग से परमानेंट छुटकारा दिला कर चौरासी लाख शरीर में आवागमन के चक्कर से मुक्त कराने के मार्ग को प्रशस्त करके सदा के लिए आनंद में डूबा देने का काम करते हैं। वो संसार नहीं देते हैं वो तो उसके मन से संसार के आसक्ति को छुड़ा कर भगवान के गोद में बैठा देते हैं । यही पहचान है असली संतों का । इसलिए सावधान । :- श्री महाराज जी के प्रवचन के कुछ भाग का सार ।

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