स्वतंत्रता क्या है ?

*जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा स्वतंत्रता दिवस संदेश:-*

*आज स्वतंत्रता दिवस है। वास्तव में कोई स्वतंत्र नहीं है। अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड के आवागमन में घूमने वाले सभी जीव माया के आधीन हैं। वो माया के अन्तर्गत काल, कर्म, स्वभाव, गुण बहुत सी चीज़ें हैं, जिनके आधीन हैं। मनुष्य हो, पशु हो, पक्षी हो, कोई भी हो। और, हम लोगों में कुछ माया से परे भी होते हैं लेकिन वे भगवान् के आधीन हैं। मायाधीन को माया नचाती है और भगवान् के आधीन महापुरुषों को माया नहीं छू सकती लेकिन भगवान् के अनुसार चलना पड़ता है, वो भी आधीन हैं। और भगवान् भक्त के आधीन हैं-*

*अहं भक्तपराधीनो*

*अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतंत्र इव द्विज।*
*साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः॥*
भागवत, 9-4-63]

*इसलिये न भगवान् स्वतंत्र हैं, न भगवान् को पा लेने वाले भक्त स्वतंत्र हैं और मायाधीन तो बिचारे परतंत्र हैं ही। हम लोगों का अनुभव है। लेकिन हम लोग बक-बक करने में टॉप करते हैं।अहंकार के कारण। हम किसी के आगे सिर नहीं झुकाते। हम किसी के आगे हाथ नहीं फ़ैलाते। एक-एक क्षण जो माया के आधीन है, वो ऐसी बक-बक क्यों करता है?*
*आश्चर्य है! काम के आधीन, क्रोध के आधीन, लोभ के आधीन बड़े-बड़े दैत्य हमारे पीछे लगे हैं। और फिर भी हम बोले जाते हैं।*

*तो स्वतन्त्रता की जो असली परिभाषा है वो ये है कि कुछ लोग माया से स्वतंत्र हैं और कुछ लोग भगवान् से स्वतंत्र हैं, मनमाना। माया से स्वतंत्र जो हैं नहीं, जो कहते हैं हम हैं और भगवान् से स्वतंत्र वे ही लोग हैं जो माया के अण्डर में हैं। लेकिन माया का परिणाम दुःख है, उनकी गुलामी वाला दुःख भोगता है और भगवान की गुलामी में आनंद है। इतना बड़ा अंतर है। भगवान् सम्बन्धी काम, क्रोध, लोभ, मोह सबमें आनंद है। और, संसार सम्बन्धी काम, क्रोध, लोभ, मोह, सबमें दुःख ही दुःख है। इसलिये भगवान् सम्बन्धी आनन्द यानि भगवत्प्राप्ति करना ही वास्तविक स्वतंत्रता का लक्षण है और उसी के लिये प्रयत्न करना चाहिेए।*

*- निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य भक्तियोगरसावतार जगद्गुरूत्तम १००८ स्वामि श्री कृपालु महाप्रभु जी*

Comments

Popular posts from this blog

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।