सृष्टि कौन करता है ?
भगवान श्री कृष्ण स्वयं सृष्टि नहीं करते , वो सृष्टि करने का केवल संकल्प करते हैं , यानि सोंचते है केवल । उनके सोंचते हीं प्रकृति में हलचल होता है , क्योंकि वो अगर संकल्प नहीं करेंगे तो प्रकृति में हलचल नहीं होगी । तो उनके संकल्प करते हीं सबसे पहले उनका ही एक स्वरूप महाविष्णु का प्रकटीकरण होता है ब्रह्मांड में । महाविष्णु के प्रकट होते ही भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप शक्ति से योगमाया शक्ति द्वारा उनसे ब्रह्यांड के अनंत आकाशगंगा , फिर आकाश गंगा में अनेकों सौरमंडल तथा उस अनेकों सौर मंडल में पृथ्वी का प्रकटीकरण होता है फिर अनंत पृथ्वी के लिए अनेक ब्रह्मा , अनेक विष्णु, अनेक शंकर आदि प्रकट होते हैं , फिर वो ब्रह्मा सृष्टि करते हैं, श्री कृष्ण आगे का काम नहीं करते , यह सब काम अब उनके नित्य दास ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा योगमाया आदि शक्ति के द्वारा होता है । अत: ब्रह्मा कहते है :-
'न सृजामि तन्नियुक्तोय्हं तन्नियुक्त:'
अर्थात उनका नियुक्त किया हुआ मैं सर्वेंट, ब्रह्मा कह रहा है मैं सृष्टि करता हूँ ।
और उनके द्वारा नियुक्त हुये शंकर ' हरो हरति तद्वश: तद्वश: ' वो श्रीकृष्ण के वश में रहते हैं शंकर जी उनके अंश हैं । उनके सर्वेंट हैं ।
' विस्वं पुरूषरूपेण परिपाति त्रिशक्तिधृक् ' (भागवत् )
इसलिये श्रीकृष्ण को कहा गया-
' स्वयं त्वसाम्यातिशय स्त्र्यधीश: ' (भाग)
वो तीनों के अधीश हैं । अध्यक्ष हैं ब्रह्मा विष्णु शंकर का ।
तो श्रीकृष्ण का जो अंश स्वरूप है उसको महाविष्णु कहते हैं वो महाविष्णु अनंत वैकुंठ के अध्यक्ष कहलातें हैं । - श्री महाराज जी ( हम दो हमारे दो-तीन पेंज- ३६)
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