दुसरे कि बुराई करने का परिणाम।

परदोष दर्शन और स्व गुण बखान के कारण साधक साधना करके भी अपने लक्ष्य से कोसों दूर ही बने रहते हैं । साधना का कोई फल उन्हें प्राप्त नहीं होता, उल्टा हानि होती है ।

 स्वयं में आध्यात्मिक प्रगति न पाकर साधकों की निराशा बढ़ने लगती है । उससे कई तरह के अपराध होने लगते हैं । इतना ही नहीं , उसकी श्रद्धा हरि-गुरु के प्रति भी डगमगाने लगती है और उनके अपने मन में सर्वस्व हरि-गुरु के प्रति भी गलत विचार आने लगते हैं , जिसे शास्त्रों-वेदों में नामापराध कहा गया है । यह सबसे बड़ा पाप है । इसका कोई प्रायश्चित नहीं हैं । इससे तो पुन: गुरु ही उबार सकता हैं हम पर अहैतुकी कृपा करके । 

परदोष दर्शन से दो हानि होती है - एक तो वह दोष हमारे मन में आयगा , दूसरा इसके साथ हम में अहंकार भी आएगा । ' मन से ही तो दोष का चिन्तन करोगे न! तो वह मन में आएगा और मन को और गंदा करेगा । उसका दोष तो जाएगा नहीं , उल्टे तुम और दोषी हो जाओगे ।  
किसी की गंदगी को अपने अंदर डाल लेने से तो तुम्हारा मन और गंदा हीं होगा । तो मन से यदि दूसरे का दोष देखेंगें तो हम सदोष हो जाएँगें । 

अनन्त जन्मों में अनन्त अपराध हमलोगों ने किए हैं , इसलिए ऐसे ही क्या कम सदोष है हम जीव , और उपर से और दूसरे का दोष मन में लाकर इसे और गंदा ही किए जा रहे हैं , अरे हमको तो अपने अन्त:करण को शुद्ध करना है और हम उल्टा किए जा रहे हैं ।

दूसरे में दोष देखने से अपने में अहंकार आएगा ।' ऐसे ही कम अहंकार है क्या ? यही अहंकार हीं तो हमे चौरासी लाख में घुमा रहा है। इसलिए सावधानी परमावश्यक है । यदि हम सावधान न रहे तो ये दोनों ही दोष हमारे अंदर बलवान होते चले जाएँगें । 

नम्बर तीन , ' हम इसी प्रकार अगर अपने में गुण देखेंगें, तो अपने में दोष नहीं दिखाई पडेगा ।' साधना तो हम करेंगें , किन्तु हम इसके साथ यह भी करेंगें चोरी- चोरी - ' हमने इतना कीर्तन किया , इतना भजन किया , इतना दान किया ।' स्व प्रशंसा की तुष्टि हेतु हम बारम्बार इसकी आवृत्ति करेंगें और हमें इसकी आदत पड़ जाएगी । बिना बताए चैन नहीं । हमें अपने साधना का अहंकार हो जाएगा । दिन - रात इसी में व्यस्त रहेंगें , साधकों के दोष नही जाएँगें क्योकि भगवान के चिन्तन का हमारे पास समय ही कहाँ होगा ! 
हम तो गुणों का चिन्तन कर रहें है अपने । लोगों से बस यही कहते फिर रहें हैं । 
इसलिए यह गांठ बांधकर मन में वैठा लो की ' परमार्थ का जो भी काम करो, उसमें यह समझो कि यह भगवान और गुरु की कृपा ने करा लिया मुझसे । वरना मै करता भला ! अरे हमारे कितने भाई - बहन संसार में हैं ! वे क्या कर रहें हैं ? 
पूरे संसार का चिन्तन । उसी में चौबीसों घंटे लगे हैं । माँ, बाप, बेटा, बीवी, पैसा , सम्मान, सब उसी के चक्कर में लगे हैं । पता नहीं हमारे ऊपर क्या कृपा हो गई भगवान और गुरु की कि हमको तत्त्वज्ञान हो गया - यह चिन्तन हो , उसमें भगवत्वकृपा मानो। पर दोष दर्शन के स्थान पर अपने दोषों को दूर करने का सोंचों हरदम , तो फिर जल्दी - जल्दी आगे बढ़ोगे भगबत क्षेत्र में । :- श्री महाराज जी

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