अंत:करण चातुष्ट्य यानि मन बुद्धि चित्त की शूद्धि और अहंकार का मिटना कैसे संभव है ?
तुमको बर्तन साफ़ करना पड़ेगा। बर्तन साफ़? क्या मतलब?
अन्तःकरण शुद्धि, पहला काम।अन्तःकरण की शुद्धि अर्थात् ये जो डिसीज़न अनन्त जन्मों से हम करते आये हैं कि संसार में ही आनन्द है, ‘ही’। हमको नहीं मिला ये बात अलग है।
एक लाख में नहीं मिला, एक करोड़ में है,एक करोड़ में नहीं मिला, एक अरब में है। एक कांस्टेबल बनकर के नहीं मिला,सब इंस्पेक्टर को होता होगा, कोतवाल है वो...।अरे! नहीं, उसके भी ऊपर है वो एस॰पी॰ को होगा,आई॰जी॰ को होगाअरे! क्या कल्पना कर रहा है पागल,संसार मात्र में कहीं आनन्द नहीं है—
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
सब जगह एक हाल है,बल्कि जितना बड़ा आदमी संसार में आप लोग बोलते हैं न,
उतना ही वो दुःखी है।
तो सबसे पहले तुमको बर्तन साफ करना है और बर्तन साफ करने के लिए गुरू निर्दिष्ट साधना करनी होगी । बिना प्रैक्टिकल साधना के प्रैक्टिस के मन बुद्धि चित्त कि शूद्धि असंभव है और बिना शूद्धि के भगवान तथा गुरू को अपने ह्रदय में रियलाईज करना संभव नहीं । जानना अलग बात है लेकिन मानना , उनको हर पल अपने साथ रियलाईज करना कठिन है । अगर बिना साधना के यह संभव होता तो आज बहुत से लोगों को तत्वज्ञान मिल चुका है फिर तुमको कितना समय यह याद रहता है कि हरिगुरू तुम्हारे साथ है ? संसार से कितना वैराग्य तथा भगवान से कितना प्रेम हुआ अबतक ?
कितना काम क्रोध राग द्वेष कम हुआ , ये जरा सोचो अपने आप में ? कितना हरि और गुरू कि शरणागति हुई अबतक ?
तो बिना अभ्यास के यह सब संभव नहीं है ।
- जगद्गुरुत्तमई श्री कृपालु जी महाराज।
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