पोस्ट संख्या - तीन )*****राम कौन हैं ?******** श्री महाराज जी- 'राम एव परं तत्वम् '(राम रहस्योपनिषत)

(पोस्ट संख्या - तीन )*****राम कौन हैं ********  

श्री महाराज जी- 'राम एव परं तत्वम् '(राम रहस्योपनिषत)
तो वेदों में सर्वत्र राम तत्व का निरूपण किया गया है। राम शब्द का अर्थ भी हुआ है। मैंने एक बताया आपको।
 'रमंते योगिनोनन्ते ।'
दूसरा अर्थ भी है ।
'रा शब्दो विश्व वचनो मश्चापीश्वर वाचक: ।
विश्वानामीश्वरो तो हि राम: प्रकीर्तित: ।।'

'रा' माने संसार, विश्व और 'म' माने ईश्वर । शासन करने वाला । संपूर्ण विश्व का शासन करने वाला , वो राम । और कोई शासन नहीं करता, सब उनसे शास्य हैं । सब उनसे नियम्य हैं । वो नियामक हैं , शासक हैं । तीन काम करते हैं राम । ब्रह्मा जी ने कहा बाल्मीकि रामायण में ।
' कर्ता सर्वस्य लोकस्य'  
अनंत कोटी ब्रह्मांड को राम प्रकट करते हैं । प्रकट करते हैं? हांँ । और कोई नहीं कर सकता ? न । तो किसी महापुरुष को ये शक्ति भगवान ने नहीं दी, और सब दे दिया, सत्य , ज्ञान, आनंद।
'अपह्त पाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोकोअ्विजिघत्सोअ्पिपास: सत्यकाम: सत्यसंकल्प: ।'
ये आठ गुण हैं । वेद के अनुसार यह सब दे देते हैं । भक्त को , लेकिन सृष्टि करने की बात अपने हाथ में रखते हैं।

 'जगद् व्यापार वर्जम् ।'

वेदांत का सूत्र कहता है । सृष्टि का काम भगवान स्वयं करते हैं । इसलिए जो ब्रह्म की परिभाषा किया वेद ने, तो लिखा-
' यतो वा इमानि भूतानि जायंते। येन जातानि जीवंति यत्प्रयन्त्यभिसंविशंति। तद्विजिज्ञासस्व।

जिससे संसार उत्पन्न हो जिससे रक्षित हो, जिसमें लय हो । ये तीन काम जो कोई करे उसका नाम ब्रह्म राम । ये काम और कोई नहीं करता । महापुरुष लोग, दिव्यानंद, दिव्य प्रेम सब कुछ उनके पास है, लेकिन सृष्टि का काम भगवान स्वयं करते हैं ।
'भोग मात्र साम्य लिंगाच्च '। [ब्र० सू०]

 ब्रह्मानंद , प्रेमानंद , परमानंद, दिव्यानंद, अनिर्वचनीयानंद अपरिमेयानंद, अपौरूषेयानंद जो भगवान संबंधी है वो देते हैं सब भक्तों को , शरणागत को । सृष्टि का कार्य नहीं देते । इसलिए ब्रह्मा ने कहा -
'कर्ता सर्वस्य लोकस्य ।अन्ते मध्य तथा चाय्दौ ।'

 इस संसार के प्रारंभ में जो था , मध्य में जो है अंत में जो रहेगा वह राम ब्रह्म, ये और कोई नहीं ।
'योेय्वशिष्येत सोय्स्म्यहम्' ।
 अनंत कोटि ब्रह्मांड का प्रलय होने के बाद केवल भगवान अकेले रहते हैं, अकेले । आप लोग कभी अकेले होते हैं तो बोर होते हैं न? मां भी नहीं, बाप भी नहीं , बीवी भी नहीं, पति भी नहीं , बेटा भी नहीं, अकेले । 
तो भगवान भी बोर हुय।
 'स एकाकी न रमते । स द्वितीयमैच्छत् । स इममेवातत्मानं द्वेधाय्पातयत् । तत: पतिश्च पत्नी चाभवताम् ।'

फिर अपने आप को दो बना लिया । एक सीता एक राम । दो बन गए । ये दो पर्सनैलिटी नहीं है सीता राम । ये सीता राम , राम हीं सीता बन गए । सीता ही राम बन गयीं । एक दो बन गया । अरे अनंत बन सकता है तो दो क्या होता है ।
'क्षण महंँ मिले सबहिं भगवाना ।'
अनंत रूप धारण करके मिले थे अयोध्या में । तो भगवान का जो वास्तविक स्वरूप है वो दिव्य चिन्मय है । इसलिए कोई जीव भगवान को देख नहीं सकता, उनसे बात नहीं कर सकता, उनके शब्द सुन नहीं सकता , उनका चिंतन भी नहीं कर सकता, उनको जान भी नहीं सकता।
' राम स्वरूप तुम्हार, वचन अगोचर बुद्धि पर ।
अविगत अकथ अपार, नेति नेति नित निगम वद ।'

बुद्धि से परे हैं, इंद्रियांँ क्या करेगी बिचारी । इन्द्रियाँ सबसे नीचे है ।
क्रमश:........... अगला , पोस्ट संख्या - चार में

Comments

Popular posts from this blog

"जाके प्रिय न राम बैदेही ।तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।

नहिं कोउ अस जन्मा जग माहीं | प्रभुता पाइ जाहि मद नाहीं ||

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।