** पोस्ट सं - सात**** श्रीराम कौन हैं ?

** पोस्ट सं - सात**** श्रीराम कौन हैं ।
श्री महाराज जी - 
नेम धर्म आचार तप योग यज्ञ जप दान ।
भेषज पुनि कोटिन करिय , रूज न जाहिं हरि जान ।

'रघुपति भक्ति सजीवन मूरी ' बस एक दवा है ।
साधक सिद्ध विमुक्त । देखो क्या शब्द है ' विमुक्त '

साधक सिद्ध विमुक्त उदासी ।
कवि कोविद कृतज्ञ सन्यासी ।।
जोगी सूर सुतापस ज्ञानि ।
धर्म निरत पंडित विज्ञानी ।।
तरई न बिनु सेएं मम स्वामी ।
राम नमामि नमामि नमामि ।।

चैलेंज है तुलसीदास जी महाराज का ।

वारी मथे बरू होय धृत सिकता ते बरू तेल ।
बिनु हरि भजन न भव तरिय , यह सिद्धांत अपेल ।।

विनिश्चितं वदामि ।

चैलेंज कर रहे हैं बार-बार भक्ति से ही राम मिलेंगे । हां तो आप लोग समझ गए ,राम ब्रह्म है। उन्हीं का रूप परमात्मा और ब्रह्म का है। वह भगवान है । उनका शरीर भी सच्चिदानंदघन है, और उनकी प्राप्ति भी कर्म, ज्ञान, योग से असंभव, केवल भक्ति से ही होगी । वो राम और कृष्ण ये दो तत्त्व नहीं हैं । तत्त्व एक है ।
यह बात हमारे बहुत से साधू भाइयों को भी नहीं पता है। वो कहते हैं भाई ऐसा है कि सब अपने-अपने इष्ट को नमन करते हैं । हां । तो हमारा इष्ट दूसरा है तो हम राम को नमन कैसे करें , और हम राम वाले हैं तो हम कृष्ण को नमन कैसे करें । इतनी बड़ी जहालत है हमारे देश में । क्यों जी तुम से बड़ा और भी कोई बुद्धिमान है ? 
 ये ब्रम्हा ,विष्णु ,शंकर ये तो रामावतार में भी आकर कर के नाक रगड़ रहे हैं, और कृष्णावतार में भी ।
 तुम उनसे भी बड़े बुद्धिमान हो ? हां। अरे तुलसीदास जी तो कह रहे हैं -

सीय राम मय सब जग जानी ।
करऊँ प्रनाम जोरि जुग पाणि।।

दुष्टों को तो पहले प्रणाम किया है तुलसीदास जी ने, सज्जनों को बाद में किया है। और वो कृष्ण को नहीं प्रणाम करेंगे! इतनी भूल ।
अच्छा ये देखिए रामायण से बताते हैं आपको ।अध्यात्म रामायण-
 मायातीतं माधवमाद्यं जगदादिम् ।

 अध्यात्म रामायण में राम को कहा गया है ' माधव'
'मायातीत माधव जगत के आदि में रहने वाले आपको नमस्कार है।'
फिर उसी अध्यात्म रामायण में और स्पष्ट- 

वंदे रामं मरकत वर्णं मथुरेशम् ।

मथुरा के आधीश मरकत वर्ण के भगवान राम आपको नमस्कार है। फिर उसी अध्यात्म रामायण में-
'वृन्दारण्ये वंदित वृन्दारक वृन्दम् ।'

वृंदावन में वृंदारक वृन्द से बन्द्य राम तुमको नमस्कार है। ये रामायण कह रही है । और तुम उसके भी आगे चले गए।
 तुलसीदास जी ने लिखा विनय पत्रिका में।
 सब जगह तो बहुत रोए गाए हैं। मुझसे बड़ा कोई पतित नहीं , महाराज कृपा करो , दया करो। तो विनय है विनय पत्रिका में । लेकिन एक जगह चैलेंज किया है माया को-

अब मैं तोहिं जान्यो संसार ।
बाँधि न सकइ मोहिं हरि के वल प्रकट कपट आगार ।

ऐ माया ! तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, हरि का बल है मेरे पास । तो कौन सी हरि का बल है भाई ,
 तो-
सहित सहाय तहांँ वसु अब जेहि हृदय न नन्दकुमार।

माया जिसके हृदय में नंदकुमार ना हों वहां जाकर अपना तू डेरा जमा । हमारे यहां दाल नहीं गलेगी । हमारे हृदय में नंद कुमार रहते हैं । हां दशरथ कुमार नहीं कहा, नंदकुमार कहा ।

विरद गरीब निवाज राम को, जड़ पतंग पाण्डव सुदाम को।

हमारे राम गरीब निवाज है । देखो सुदामा का उद्धार किया, पांडवों का किया, यमलार्जुन का किया । यह विनय पत्रिका कह रही है, आप उनसे आगे हो गए? हां ।

हमारे बहुत से भाई रामोपासक ऐसे हैं जो , भाई कुछ भी हो, वो तो अपना इष्ट देव है अपना । हां । 
क्यों जी आप का बाप पच्चीस तरह के कपड़े पहनता रहता है । ऑफिस में और कपड़ा , घर में लूंगी लिय घूमता है । बाथरूम में नंगा नहाता है, तो क्या वो बाप बदल जाता है । अरे बाप तो वही है, स्त्री का पति वही है । और फिर राम कृष्ण का तो शरीर का रंग भी नहीं बदला।
 दोनों निलांबुज हैं दोनों पीतांबर धारी हैं । सब चीज एक है। वो साहब मोर पंख ? तो क्या राम को मोर पंख लगाना मना है । वो भी लगा सकते हैं मौज में आ जाएगी तो, उनको कोई रोकने वाला है क्या ? कि तुमने क्यों मोर पंख लगाया, वो तो जी श्रीकृष्ण के नाम रिजर्वेशन हो गया है उसका , ऐसा तो नहीं है कुछ । हांँ ।
राम धनुष धारी हैं । तो कृष्ण धनुष धारी नहीं है । वह भी तो शार्ङ्गधर है । उनके धनुष का नाम शार्ङ्ग है।
अरे क्या बकवास की बात करते हो सब रामावतार वाले ।

क्रमश:......... शेष और अगले अंतिम पोस्ट संख्या आठ में।

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