**पोस्ट संख्या - छः** राम कौन हैं ******
***पोस्ट संख्या - छः** राम कौन हैं ******
श्री महाराज जी -
विष्णुर्महान् स इह यस्य कला विशेषो-
इसलिये जब देखा विराट रूप तो-
भिन्न भिन्न प्रतिलोक विधाता ।
भिन्न विष्णु शिव मनु दिशि त्राता ।।
ब्रह्मा विष्णु, शंकर , मनु सब भिंन्न भिंन्न देखा, अनंत ब्रह्मांडों में अनंत मात्रा के, और भगवान राम को जब देखा एक ब्रह्मांड के विष्णु ने तो-
रमा समेत रमा पति मोहे ।
मोहित हो गए । रमा भी और रमा पति भी । तो ये विष्णु एक ब्रह्मांड वाले तो राम के अण्डर में हैं । उनके गुणावतार हैं । अनंत कोटी ब्रह्मांड नायक जो बैकुंठाधिपति हैं वो महाविष्णु हैं । वो राम के हीं अभिन्न रूप हैं । ऐश्वर्य के रूप हैं, चारभुजा है उनके। ब्रह्मा ने कहा था -चतुर्भुज:।
आप चार भुजा वाले हैं ।भवान्नारायणों देव: ।
आप नारायण हैं, ये नारायण शब्द भी भ्रामक है । क्योंकि विष्णु का नाम भी नारायण है। और महाविष्णु को भी नारायण कहते हैं, और राम कृष्ण को भी नारायण कहते हैं । यह शब्द जाल है ये पंडितों के बस का नहीं है । संत महात्मा लोग इसको हल करते हैं । तो भगवान राम वेदों के अनुसार पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान हैं । भगवान ।उन्हीं का दूसरा रूप परमात्मा, उन्हीं का तीसरा रूप ब्रह्म । ये ब्रह्म , परमात्मा, भगवान सब एक हैं। इन तीनों को दो में बाँट दिया जाता है । वेद ने कहा ।
द्वे वाव ब्रह्मो रूपे मूर्तं चैव मूर्तं च ।
एक सगुण साकार भगवान हैं एक निर्गुण निराकार भगवान है बस दो।
एक दारूगत देखिये एकू ।
पावक युग सम ब्रह्म विवेकू ।।
निराकार ब्रह्म, साकार ब्रह्म । निराकार ब्रह्म के उपासक का नाम ज्ञानी, साकार ब्रह्म के उपासक का नाम भक्त। लेकिन भगवान राम की प्राप्ति बिना भक्ति के नहीं हो सकती । ये चैलेंज है वेद से लेकर रामायण तक ।
वेद कह रहा है ' भक्ति ही,' 'भी नहीं' ' एव' शब्द का प्रयोग हुआ है।
भक्तिरेवैनं नयति ।
भगवान को मिलाने वाली केवल भक्ति है।
यस्यदेवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ । [वेद]
उपासते पुरूषं ये ह्मकामा: । [वेद]
भक्तिरेव गरियसी भक्तिरेव गरियसी भक्तिरेव गरियसी ।
[नारद जी]
भक्त्यात्वनन्या शक्य अहमेवं विधोयर्जुन ।
ज्ञातं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परंतप ।।
तीनों के लिए केवल भक्ति।
नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया ।
शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्टवानसि मां यथा ।। [गीता]
केवल भक्ति से ही मैं मिलूंगा ।
भक्त्याहमेकया ग्राह्म: । [भागव०]
भक्ति से ही मैं ग्राह्य हूँ और कोई गति नहीं ।और तुलसीदास ने तो भर मारा है पूरी रामायण में-
जप तप नियम योग निज धर्मा ।
श्रुति संभव नाना शुभ कर्मा ।।
ज्ञान दया दम तीरथ मज्जन ।
जहँ लखि धर्म कहे श्रुति सज्जन ।।
आगम निगम पुराण अनेका ।
पढ़े सुनें कर फल प्रभु एका ।।
तव पद पंकज प्रीति निरन्तर ।
सब साधन कर यह फल सुन्दर ।।
मिलहीं न रघुपति विनु अनुरागा ।
किये जोग जप ज्ञान विरागा ।।
क्रमश:-............. शेष अगले पोस्ट सात में
Comments
Post a Comment