पोस्ट सं- आठ ( अंतिम अध्याय) *** राम कौन हैं ****
पोस्ट सं- आठ ( अंतिम अध्याय) *** राम कौन हैं ****
श्री महाराज जी :-
राम के चार स्वरूप । वाल्मिकि रामायण कहती है।-
तत: पद्म पलाशाक्ष: कृत्वात्मानं चतुर्विधम् । [वा.रामा]
ये लक्ष्मण , भरत, शत्रुघ्न ये कोई महापुरुष नहीं हैं। सब राम हैं । राम अपने आप चार बन गए , और वही चारों फिर कृष्णावतार में श्रीकृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न यह चतुर्व्यूह बन कर के प्रकट हुए । और वही ब्रम्हा, विष्णु, शंकर , रामावतार में स्तुति करने गए । वहीं कृष्णावतार में स्तुति करने गए । इसलिए ऐसा नामापराध न कमाएं ।
अगर कोई भोले भाले लोग शास्त्रों वेदों को नहीं पढ़े हैं तो वे हमारी ये प्रार्थना को स्वीकार करें , और थोड़ा भी अंतर न मानें कि दोनों बराबर हैं ऐसा नहीं कहना । दोनों एक हैं ऐसा कहना । बराबर का मतलब तो दो पर्सनालिटी हो गई , पर्सनालिटी दो नहीं हुई । एक ही पर्सनलिटी के अनंत रूप हैं ।
अनंत नाम और रूपाय ।
इस प्रकार भगवान राम को रो कर पुकारो । रो कर पुकारो । खाली ऐसे जो आप लोग मंदिरों में गा देते हैं।
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला ....
ऐसे नहीं । रोक कर पुकारो । तुम्हें मांगना है ना भीख ।
प्रेम की भीख, राम दर्शन की भीख, तो भीख मांगने वाला जब भूखा होता है तो किस तरह बुलाता है ? और पेट भरा होता है तो कोई हम को दे दे, दान दे दे - ऐसे बोलेगा । जैसे पंडित लोग जाते हैं ना मंदिरों में, तो श्लोक बोलते हैं।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव .....
यह क्या लड़ रहे हो । भगवान के आगे आंसू बहा कर प्रार्थना करो, दैन्यभाव युक्त । 'मो सम दीन न' बोलते तो हो, और बनते नहीं हो अंदर से। इससे काम नहीं चलेगा ।
रो कर पुकारना होगा । भगवान को आंसू प्रिय हैं और वह भी निष्काम, संसार की डिमांड न करना, मोक्ष की भी ना करना।
तृण सम विषय स्वर्ग अपवर्गा।
तृणसम त्याग दो इनको मन से । यह भुक्ति मुक्ति पिशाचिनी है । तो जब रो कर पुकारोगे और राम के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम का कीर्तन करोगे , तो अंतःकरण शुद्ध होगा । जब अंतःकरण शुद्ध होगा तो भगवान कृपा करके स्वरूप शक्ति देंगे । तो स्वरूप शक्ति से इंद्रिय, मन, बुद्धि, दिव्य हो जाएंगे । वो गुरु के द्वारा प्रेम की दीक्षा होगी , तब भगवत् दर्शन होगा ।
भगवद् साक्षात्कार होगा । तब माया निवृत्ति , त्रिगुण निवृत्ति , त्रिकम निवृत्ति , पंच क्लेश निवृत्ति, पंचकोश निवृत्ति, द्वंद निवृत्ति, जितनी बीमारियां हैं , सव एक सेकंड में समाप्त । और-
तद्विष्णों परमं पदं सदा पश्यन्ति सूर्य:। [वेद]
सदा के लिए परमानंद युक्त होकर भगवान राम के साकेत लोक में निवास करोगे , उनकी सेवा प्राप्त करोगे । इस प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है ।
बोलिए साकेत विहारी श्री राघवेंद्र सरकार की जय।
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