पोस्ट संख्या -चार ***राम कौन हैं ***( पोस्ट संख्या तीन के आगे ) श्री महाराज जी :- 'राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी मत हमार अस सुनहु सयानी ।'

पोस्ट संख्या -चार ***राम कौन हैं ***
( पोस्ट संख्या तीन के आगे ) 
श्री महाराज जी :- 
'राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी मत हमार अस सुनहु सयानी ।'

वानी की गति नहीं वहाँ। अनिर्वचनिय कह देती हैं वेद की ऋचायें । वेद की ऋचायें राम के विषय में कह देती है अनिर्वचनियं । हम कुछ बता नहीं सकते।

'न इति न इति । अस्थूल मनणु:'

कोई अंत नहीं है । उनके गुणों को हम नहीं बता सकते। बताया है थोड़ा बहुत।

'सहस्त्रशीर्षा पुरूष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात् ।
स भूमिँ् सर्वतस्पृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलम् ।।'

हजारों आंख , हजारों कान, हजारों हाथ । अरे ये हजारों- हजारों से क्या तय होगा । अनंत-अनंत सामान सब उनके पास हैं । हां कोई गिनती नहीं किसी चीज की । तो भगवान का स्वरूप इंद्रिय , मन , बुद्धि से परे हैं । अतर्क्य है, अचिन्त्य है, अज्ञेय है , बड़े-बड़े दावा करने वाले भगवान के पास गए और मुंह की खा के लौट आए ,‌ नहीं जान सके । छोटे-मोटे नहीं । भगवान ब्रह्मा ,भगवान विष्णु, भगवान शंकर।

जग पेखन सब देखन हारे , विधि हरि शंभु नचावन हारे ।
तेउ न जानहिं मरम तुम्हारा, और तुमहिं को जाननहारा ।

तो क्या कोई राम को जान ही नहीं सकता । अगर नहीं जानेगा तो नहीं मानेगा और नहीं मानेगा तो प्यार भी ना होगा और प्यार भी ना होगा तो राम मिलेंगे कैसे।

जाने बिनु न होय प्रतीति, बिनु परतीति होय नहीं प्रीती ।

और प्रीति के बिना राम मिलेंगे कैसे? तो कोई नहीं जान सकता। फिर भी अनंत महापुरुष हुए वह कैसे हो गए।

तुम्हरिहिं कृपा तुम्हहिं रघुनंदन, जानत भगत ।

भक्त लोग जानते हैं , और सब जानते हैं जब आप अपनी इंद्रियांँ, अपना मन, अपनी बुद्धि उनको दे देते हैं ।कंक्लुजन यह निकला कि भगवान को कौन देख सकता है, केवल भगवान राम। राम के शब्द कौन सुन सकता है, केवल राम। राम के दिव्य सुगंधी कौन प्राप्त कर सकता है, केवल राम । राम का रस कौन ले सकता है, केवल राम । राम को कौन सोच सकता है, केवल राम । राम को कौन जान सकता है, केवल राम । वो राम अपनी इंद्रिय , मन, बुद्धि, दिव्य इंद्रिय, मन, बुद्धि जिस शरणागत भक्त को दे देते हैं, वो गधा भी हो तो भगवान को देख ले । कोई हो।

पुरूष नपुंसक नारि नर जीव चराचर कोय ।

कोई भी हो भगवत्कृपा से भगवान की इंद्रिय, मन, बुद्धि अलौकिक, दिव्य मिलेगी । तब भगवान को हम प्राप्त कर सकेंगे ऐसे नहीं । ऐसे तो -

यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा स:। [वेद]
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्य: परं मन:। [गीता]
मनसस्तु परबुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु स:। [गीता]

वेद कहता है ।
इन्द्रियेभ्य: परा ह्मर्था अर्थेभ्यश्च परं मन: ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्बुद्धेरात्मा महान् पर: ।
महत: परमव्यक्तमव्यक्तात् पुरूष: पर: ।
पुरूषान्न परं किञ्चित् सा काष्ठा सा परा गति:।।

इंद्रियां, मन, बुद्धि का प्रवेश नहीं , वह सरस्वती बृहस्पति कोई हो । अगर आप कहे कोई बड़ा बुद्धिमान हो ।बड़ा- वड़ा कुछ नहीं कर सकता । ये हम भगवान की जो भक्ति करते हैं । ये भगवान की भक्ति नहीं करते ये शरणागति करते हैं । भगवान को हमने देखा नहीं, कैसे कोई रूप बनाएगा । कोई हो बड़े से बड़ा बुद्धिमान सरस्वती हीं आ जाएं, हमको जवाब दें । आप राम का ध्यान कर सकतीं हैं, नहीं इंपॉसिबल । राम को देखा ही नहीं तो ध्यान कैसे होगा । और देखें कैसे, देखेंगे तब जब दिव्य दृष्टि मिले । और दिव्य दृष्टि कब मिले जब पूर्ण शरणागति हो जाए, अंतः करण निर्मल हो जाए , और दिव्य प्रेम मिल जाए , तब । उसके पहले असंभव । इसलिए भगवान को न कोई जान सकता है न कोई समझ सकता है । हमारे संसार में भगवान आए , एग्गारह हजार वर्ष रहे राम , किसी का फायदा हुआ? दिमाग खराब हुआ, फायदा किसी का नहीं हुआ । तुलसीदास जी महाराज ने बड़ी तारीफ की राम की, की-

राम एक तापस तिय तारी ।

एक तपस्वी की श्रीमती का उद्धार किया कुल जमा टोटल । 11000 वर्ष हमारे देश में रहे, यहां का माल टाल खाए, और एक का उद्धार किया और उसमें भी डाउट है । क्यों? वो अहिल्या अपने पति के पास गई है भगवान के चरण स्पर्श से ।अगर उसका पति साकेत लोक में है तो ठीक है, तर गई होगी । और अगर साकेत लोक में नहीं है तो फिर कहां तरी । हां तो राम के आने से क्या होगा।

क्रमश:............. शेष अगले पोस्ट संख्या -पांच में ।

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