" वेद कहता है कि सबके लिये शुभ कामना होनी चाहिये , एक दो चार के लिये नहीं |

श्री महाराज जी :- (२२ अप्रैल २०१३) " वेद कहता है कि सबके लिये शुभ कामना होनी चाहिये , एक दो चार के लिये नहीं |

 सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग् भवेत् ||

ये वेद मंत्र है | समस्त विश्व में सब सुखी हों , सबका कल्याण हो , सब निरोग हों , ईत्यादि शुभकामनायें सारे संसार के प्रति होनी चाहिये | एक के प्रति हुई या अपने बेटे - बेटी , नाती - पोते लिये हुई और औरों के प्रति दुर्भावना हुई ,ये गलत है | सबमें भगवान् का निवास है , इस फैक्ट को रियलाइज करते हुये सर्वत्र सबके प्रति अच्छी भावना हो, अपने प्रति खराब हो | अगर अपने प्रति भी अच्छी भावना हो गई तो फिर आपका उत्थान नहीं होगा, पतन हो जायगा , अहंकार हो जायगा |
तो फैक्ट यही है कि सबमें भगवान् को माने इसलिये सबके प्रति सुन्दर भावना हो और अपना हाल तो वो जानता ही है कि हम अनादिकाल से अपराधी हैं , भगवान् को भूले हुये हैं | इसीलिये भगवान् नहीं मिले हमको |
अनन्त पाप किये बैठे हैं ये सब माने | हमें अपने आपको ठीक करना है और किसी को नही देखना |
देखना है तो अच्छी भावना से कि इसके अन्दर भगवान् हैं | हम सबके प्रति अच्छी भावना रखें | क्योंकि हमारा मन गन्दा न हो | 
अगर हम बुरे आदमी की बुराई का चिन्तन करेंगें तो हमारा मन और गन्दा हो जायगा | इसलिये अपने मन को शुद्ध करने के लिये भगवान् और महापुरुषों के चरित्रों का ही स्मरण , कीर्तन , मनन , जितना अधिक हो सके उतना करते रहो तो मन जल्दी शुद्ध हो जायगा | हमको अपने कल्याण से मतलब है | "

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