पोस्ट संख्या दो )******** राम कौन हैं ? *********श्री महाराज जी ---रामत्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रह: ।

( पोस्ट संख्या दो )******** राम कौन हैं । *********

श्री महाराज जी ---
रामत्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रह: ।

हे राम तुम परमात्मा हो । यानी भगवान जो है वो परमात्मा भी हैं, ब्रह्म भी हैं, उसी के दोनों रूप हैं । जैसे-
चयस्त्विषामित्यवधारितं पुरा,
                 तत: शरीरीतिविभा विताकृतिम् ।
विभुर्विभक्तावयवं पुमानिति-
                क्रमादमुन्नारद इत्यबोधि स: ।।

जब नारद जी भगवान श्री कृष्ण के सामने आ रहे थे बैकुंठ से, तो पहले जनता ने देखा कोई लाइट आ रही है नीचे को, प्रकाश पुंज, और समीप में आए तो लोगों ने देखा कि इसमें कोई शक्ल भी है मनुष्य की प्रकाश के साथ-साथ, और जब नीचे पृथ्वी के पास आ गए, अरे ये तो नारद जी हैं , अच्छा-अच्छा-अच्छा । ऐसे ही ब्रह्म का स्वरूप लाइट का , परमात्मा का स्वरूप बीच वाला और भगवान जो नारद पृथ्वी पर आ गए । वो जिसमें सबकुछ प्रत्यक्ष है, जैसे हम आपके सामने बैठे हैं । ऐसे हमारे राम कृष्ण हमारे सामने बैठते हैं , बोलते हैं , सब इंद्रियों से हम उनको ग्रहण करते हैं , जैसे संसार को ग्रहण कर रहे हैं, इस प्रकार । तो वेद कहता है ।
" रामत्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रह: ।"
और एक वैलक्षण्य है भगवान राम के शरीर में, कि वो स्वयं सच्चिदानंद ब्रह्म हैं, और उनका शरीर भी वही है सच्चिदानंद ब्रह्म । देखिए हम लोगों के एक तो शरीर है। एक हम हैं आत्मा । ऐसे ही देवताओं का भी है, सबका ऐसे ही है अनंत कोटी ब्रम्हांड में । एक देह एक देही । लेकिन भगवान राम का देह और देही दोनों एक हैं ।
"देह देहि भिदा चैवनेश्वरे विद्यते क्वचित् ।।"
 ये भगवान में नहीं होता । वह सच्चिदानंद ब्रह्म शरीर और
"आनंदमात्र करपाद मुखोदरादि: ।"

 सब आनंद ब्रह्म , आनंद ब्रह्म ।और कुछ है ही नहीं, ये देखने का है शरीर । हाथ पैर सब दिखाई पड़ेंगे आपको, लेकिन वो हाड़ मांँस नहीं । वह प्राकृत नहीं । वो सच्चिदानंद विग्रह हैं । शरीर हीं सच्चिदानंद है, और शरीरी भी सच्चिदानंद है । ऐसा उनका शरीर है इसलिए।

"चिदानंद मय देह तुम्हारी ,‌ विगत विकार जानि अधिकारी।
ब्रह्म सच्चिदानंद घन रघुनायक जहँ भूप ।
सोइ सच्चिदानंद घन रामा ।"

देखिए एक शब्द जोड़ रहे हैं इसमें 'घन' ये क्या बलाए है। सच्चिदानंद हो गया पर्याप्त है। 'घन' और जोड़ दिया। देखिए ये जो निराकार ब्रह्म है इसका नाम है सत्, चित्, आनंद । सत् से परे चित्, चित् से परे आनंद, तो चाहे सच्चिदानंद कहो, चाहे चिदानंद कहो और चाहे खाली आनंद कहो । वेद में कहा गया-

'आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात् । आनंदाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायंते । आनंदेन जातानि जीवंति ।
आनंदं प्रयन्त्यभिसंविशंति ।'

आनंद ही ब्रह्म है । ब्रह्म में आनंद है ऐसा नहीं । आनंद ही ब्रह्म है।

'आनंद एवाधस्तात् ,आनंद उपरिष्टात् ,आनंद: पुरस्तात् , आनंद: पश्चात् ,आनंद उत्तरत: , आनंदो दक्षिणत: ,आनंद एवेद्ंँसर्वम ।'

जिसके ऊपर आनंद , नीचे आनंद , दक्षिण आनंद ,उत्तर आनंद, पुर्व आनंद , पश्चिम आनंद ,‌अंदर आनंद ,‌बाहर आनंद , आनंद ही आनंद लबालब भरा है वह आनंद । ब्रह्म उसी का नाम, उसी का नाम - राम , आनंद निराकार ब्रह्म , और निराकार ब्रह्म का भी सार तत्व,‌ वो आनंद घन हैं अथवा आनंद कंद है। यह दो शब्द का प्रयोग हुआ है शास्त्रों में राम कृष्ण के लिए। आनंद कंद या आनंद घन । तुलसीदास जी 'घन' का प्रयोग कर रहे हैं । हमारे राम आनंद ही नहीं हैं । आनंद घन हैं । आनंद का भी सारभुत तत्व निकालकर वो शरीर बना है।
क्रमश............ अगले पोस्ट संख्या तीन में

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