श्री राधा रानी की उपासना का महत्व ।।

हम साधकों के लिए अति महत्वपूर्ण , गुढ़ दिव्य विषय पर मां का दुर्लभ प्रवचन , मां का स्वनुभव , उनकी ही जुवानी में -राधा रानी की उपासना का महत्व :- 
आप सब साधक राधारानी से बहुत प्यार किजिये , बहुत प्यार किजिए उनसे | उनको अपने ह्रदय में धारण किजिये , क्योंकि उनको ह्रदय में धारण करने पर ही भीतर में सद्गुण आऐगें | क्योंकि सदगुणों की खान राधारानी ही हैं | 
स्वयं पीछे रहना , दुसरों को आगे करना राधारानी का गुण है | स्वयं सदा कहते रहना की कृष्ण ने तो मुझ अकिंचन को युँ हि अपना लिया है | मै तो उनके लायक नही हूँ , कृष्ण जब राधा की प्रशंसा करते हैं तो राधा एकातं मे जाकर रोती हैं और रो रो कर कहती है ललिता , विशाखा आदि सखियों से की कृष्ण ऐसा जो कहते है ये उनकी महानता है जो वो मेरी प्रशंसा करते हैं , मै तो प्रशंसा के लायक नही हूँ ! क्या किया है मैने उनके लिए ? 

इतनी दीनता है राधारानी में , जो स्वयं तत्त्व हैं , स्वयं प्रेम हैं , स्वयं ह्रिलादिनी शक्ति हैं | लेकिन अपने आपको इतना संकुचित , इतना दीन हीन बनाकर रखती हैं | 

तो वो सप्त सिंधु 'राधा ' जिनमें ये सात गुण हैं , इन सातो गुणों की सिंधु हैं |
विदग्ध की वो सिंधु हैं , अनुराग की वो सिंधु हैं , कृपा की सिंधु हैं , प्रेम की सिंधु हैं , बात्सल्यता की सिंधु हैं , माधुर्य और केलि की वो सिंधु हैं | 

क्या चाहिये उनसे आपको ? सब मिल जाएगा ! सबकुछ मिल जाएगा | 
एकबार ह्रदय में उनको धारण करके तो देखिये ! सब चीज दे देंगी जो आपको चाहिये | कृपा चाहिये , कृपा मिल जाएगा आपको , कृपा की वो सिंधु हैं | वात्सल्यता की सिंधु हैं एक वार शिशु बन कर तो जाईये , वात्सल्यता मिल जाएगा , केलि की सिंधु हैं , विहार देखना चाहते हैं तो निकुँज में ले जाएगीं , विदग्ध की सिन्धु है सुख पाना चाहते हैं ? परमानंद पाना चाहते हैं वो परमानंद दे देंगीं | बस शर्त ये है की हम उनसे प्यार करें और उनको ह्रदय में धारण करें | 

उनको धारण करेगें , उनसे प्रेम करेंगें और ऐसा ना हो , यह मुमकीन नहीं !
उसकी ज्वलंत प्रमाण मैं आपके सामने बैठी हूँ | 
मैं अपनी प्रशंसा इतनी नही करती लेकिन इसका गर्भ जरुर करती हूँ कि जब से मैने राधारानी से प्यार किया हैं , मैं अपने अँदर उनके कुछ छींक मात्र गुण पाएँ हैं | उन्होने अपने गुण दिए | 
और मैने राधारानी से प्यार किया है जब मैं आठवीं कक्षा में पढती थी और मैं अक्तुवर के साधना शीविर में बैठी थी और रो रही थी साधना हौल में बैठकर
मनगढ़ में कि कृष्ण का तो रुपध्यान होता है लेकिन राधा का रुपध्यान नही होता , और महाराज जी बस सब समय राधा ,राधा , राधा की उपासना बतातें हैं राधारानी का पद् गवाते हैं परन्तु राधारानी का रुपध्यान तो होता नहीं | 
ठीक उसी समय महाराज जी हौल में दोपहर को दो बजे आए और महाराज जी ने माईक खिंचा और माईक खिंच कर महाराज जी ने कहा कि " एक साधक बेचैन है कि हमसे राधा का रुप ध्यान नही होता ! हम क्या भाव से राधा का रुपध्यान करें "

और उसी समय महाराज जी ने ये लाईन बनाइ -
" ओ मां श्यामा तेरी पद् रज़ हीं मिल जाये , संसार की कौन कहे ....."
वो लाइन महाराज जी ने बनाई और महाराज जी ने इनडाइरेक्ट मुझे उत्तर दे दिया की यदि राधा से श्यामा से प्यार चाहती हो , उनको अपनाना चाहती हो तो उनको मां मानो और मां रुप में उनको अपने ह्रदय में , भीतर उतारो |

और वो क्षण था , महाराज जी ने वो पद् गवाया और मैनें सिहांसन पर राधारानी को विराजित किया अपने रुपध्यान में , मां का स्वरुप देखा , और स्वयं को उनके चरणों में अपने को छोटे रुप में देखा , देखा कि मै अपना शिश उनके चरणों में लगाय रो रहीं हूँ , वो दिन था , और उस दिन के बाद से मुझे राधारानी का हीं रुप ध्यान होने लगा |

इतनी प्यारी इतनी दयालु हैं कि वो एक क्षण मैनें ध्यान किया की मां मैं तुम्हे मां मानती हूँ मेरे ह्रदय में आ जाओ मुझे अपना लो और उन्होने ऐसा अपनाया की उस दिन के बाद से ठाकुर जी का रुप ध्यान करती हीं हूँ लेकिन प्रार्थमिकता मेरे लिए राधारानी हैं | तो वो बड़ी दयालु हैं | 

इसलिये उसके पश्चात् ही मैने अपने भीतर बहुत परिवर्तन देखा , और आपलोग भी देख रहें हैं जो शुरुआत से आते रहे बच्चों ने मुझे देखा है और आज भी देख रहें हैं | 
ये परिवर्तन इसके पीछे कमाल है मेरी स्वामीनीं जूँ का मेरी ठकुरानी जी , महारानी जी का |
मुझे जब भी कुछ होता है और जब भी कुछ करना होता है , आपलोग भी तो देखते है कि मैं अपनी ललीलाल से कितना प्यार करती हूँ | और वो प्यार ऐसे हीं खेल खिलौना नही हैं | मैं वास्तव में बहुत प्यार करती हूँ उनको |
इसिलिए प्रथम दिन से आपलोगों से एक ही चीज मांगीं थी | क्योंकि जो चिज मैने की और मुझे प्रैक्टिकल अनुभव हुआ हैं तो मैं चाहुँगी की साधको को भी उनका अनुभव हो | इसलिये सिरियसली आपलोग ऐसा करेंगें तो वो आपको अपना गुण दे देंगीं , लेकिन चाहना करना तो आपको ही होगा |
:- मां रासेस्वरी मां

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