सनातन वैदिक धर्म में उपासना के तीन प्रकार हैं ।१. व्यास पद्धति , २. नारद पद्धति ३. हनुमत पद्धति ।

भजनक्रिया में सावधानी , ( अति महत्वपूर्ण गाइडलाइन मां द्वारा )
सनातन वैदिक धर्म में उपासना के तीन प्रकार हैं ।
१. व्यास पद्धति , २. नारद पद्धति ३. हनुमत पद्धति ।

१. व्यास पद्धति में केवल शास्त्राधारित यानि भगवान के लीला गुण , धाम का भजन गीत गाने के साथ-साथ भगवान और गुरू के स्मरण का नियम है ।। 

२. नारद पद्धति में भगवान का स्मरण एवं गायन के साथ-साथ बाद्ययंत्र के साथ यानि स्मरण ,(भजन) गीत और संगीत का नियम है । 

३. हनुमत पद्धति में भगवान का स्मरण , भजन (गीत ) , बाद्ययंत्र के साथ यानि संगीत , और नृत्य का विधान है । पर स्मरण तीनों प्रकार के उपासना में प्राण हैं 
 स्मरण के विना वांकी सभी शव के समान है , लाभ हीन है । इसलिए स्मरण प्रमुख हैं ।

गायन के लिए सावधानी , भजन गायन में भगवान के रूप , गुण, लीला और धाम प्रमुख हैं जिसमें निष्काम भाव भजन सर्वोत्तम है ।

एक और बहुत महत्त्वपूर्ण बात है कि स्मरण तो जरूरी है लेकिन केवल गीत के लय , ताल ,छंद , लहरी में खो जाना , यानी भजन गीत, संगीत में हीं रम जाना भक्ति नहीं है । यानि केवल अलाप में मन रमना सही सही भजनक्रिया नहीं माना जाता है ।
अति ध्यान देने वाली बात, सावधानी जरूरी यहीं पर है । अक्सर साधक लोगों को कहतें सुना होगा कि यह बहुत सुंदर गाया है । इसका लय मनमोहक ( मेलौडियस ) है , 
यानि वो केवल गीत संगीत के मनमोहक लय में खो गय है । गाने वाला गवईया बहुत बढ़िया है । 

तो सावधान गवईया अनंत जन्म गाता रहे और इसमें खो कर झुमने वाला अनंत जन्म इसमें मोहित होकर झूमता रहे , कोई लाभ नहीं है । सब जीरो वट्टे सौ । क्योंकि गाने वाला और सुनने वाले का आसक्ति केवल भजन , गीत संगीत के सुर लहरी, आलाप में है तो इसका कोई लाभ नहीं । 

अतः भगवान के गुण , धाम और लीला के भजन में उनका रूपध्यान, स्मरण एवं आलाप के साथ "प्रलाप" अत्यंत आवश्यक है , मतलव गायन के साथ रूदन, करूण क्रंदन , आर्तपुकार और रूपध्यान अत्यंतावश्यक है । 

"बहु जन्म यदि करें श्रवण, किर्तन ।
तबहुँ न पाय श्रीकृष्ण पदे प्रेम धन ।।"- चै महाप्रभु जी । 

 भजन में 'अलाप ' के साथ यदि 'प्रलाप 'यानि वो अश्रु धार के साथ करूण क्रंदन नहीं है । उनके प्रेम को पाने की व्याकुलता नहीं है तो वो बढ़ीया से बढीया भजन , किर्तन व्यर्थ हो जाता है । इसलिए 'अलाप ' के साथ साथ 'प्रलाप' बहुत जरूरी है ।
साधकों को एक और सावधानी रखना नितांत आवश्यक है । यह रूदन , क्रंदन , प्रलाप आंतरिक तौर पर जरूरी है । यानि हरि व गुरू के प्रति यह होना चाहिए , लोगों को दिखाने के लिए लोगों को प्रभावित करने के लिए नहीं । हां कभी कभी भाव की अतिशयता में यह लोगों के बीच भी आंसु छलक जाए , ना रूके , नेचुरल हो तो यह सही है । 

अतः केवल गाने से काम नहीं चलने वाला ध्यान रहे ।
:- पुज्यनियां मां रासेस्वरी देवी जी के गाईड लाईन (भजनक्रिया हेतु सावधानी) ।

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