श्री महाराज जी द्वारा एक लाईन में भक्ति का तरीका :-
श्री महाराज जी द्वारा एक लाईन में भक्ति का तरीका :-
" तन कार में मन यार में (३६५ दि.x२४ घंटा x60 मि.x 60 से.) लगा रहे , यह भक्ति है , फिर किसी साधन और साधना की जरुरत नहीं , एक सेकेंड को भी भगवान् को ना भुलो फिर किसी चीज की जरुरत नही । तुम्हारा काम बन जाऐगा ।"
" सोते समय भगवान् को याद करके सो जाओ और उठते समय में भगवान् में मन को लगा कर रखो "
तो अब सबाल यह उठता है कि " तन कार में और मन यार में चौबीसों धण्टें तीन सौ पैसठो दिन के हरेक पल भगवान् मे कैसे लगा रहे ?
मैने आपलोगों को बताया कि कोई भी व्यक्ति कामनाओं का समाप्त नही कर सकता, क्योंकि कामनाओं का मूल कारण है, वो माया है और यह भी सम्भव नहीं है कि हम संसार की कामना मन में रखे रहे और भगवान् की उपासना भी कर लें । "
"अब हमारे यहां वेदों से लेकर शास्त्रो तक मे भी लिखा है दो परस्पर विरोधी वातें, एक तो ये कि समस्त कामनाओं का परित्याग कर देने से जीव अपने परम लक्ष्य यानि भगवद् प्राप्त लेगा , और दूसरी बात ये लिखी है कि भगवान् की उपासना करने से ही जीव अपना परम लक्ष्य प्राप्त कर लेगा । मैने दोनो पक्षों को गलत सिद्ध किया ।
अर्थात् कामनायें भी नही जा सकती क्योंकि कामनाओं की जननी माया है । और जब तक जीव भगवद् प्राप्त नही कर लेता है तब तक जीव पर माया हावी रहेगी , और जवतक माया हावी रहेगी कामनायें जाएगी नही ।
अब जब तक कामनायें नही जाएगी तवतक उपासना कैसे हो ! भगवद् प्राप्ती कैसे हो , जीव परम चरम लक्ष्य कैसे प्राप्त करे !
अतएव यह मार्ग निकाला गया कि हमारी जो कामना संसार सम्बन्धी है वो चूँकि आनन्द के लिये ही है और जब हमारी बुद्धि में ये बात ठीक-ठीक बैठ जाय कि आत्मा का आनन्द संसार में हो ही नही सकता और हम लोगों ने अनन्त जन्मों में , अनन्त बार, अनन्त ऐश्वर्य यानी संसारी सुखों का अनुभव प्रैक्टिकल किया है ।
अपना एक्सपीरियेन्स भी बता रहा है कि पॉइन्ट वन परसेन्ट भी हमको उससे चैन नही मिला , अशांति ही बढ़ती जा रही है ।
अतएव इस संसार सम्बन्धी कामना को ही डायवर्ट कर देना है घुमा देना है ।
ईश्वरीय क्षेत्र में इसको मोड़ देना है । इसको मोड़ने में हमको परिश्रम अवश्य पड़ेगा क्योंकि संसार की कामनाओं को बनाने उसकी प्रैक्टिस करने में हमने बहुत समय और बहुत एनर्जी लगाया है , तमाम जन्मों का हमारा अभ्यास हैं , इसलिये उस अभ्यास को हटाने में और उसको इश्वरीय क्षेत्र में मोड़ने के लिये अभ्यास करना पड़ेगा , इसमें कुछ समय लगेगा लेकिन अधिक समय नही लगेगा यदि हम कटिबद्ध हो जायें । यह निश्चय कर लें तो।
मन तो माया का बना है ,यह माया का पुत्र है , यह संसार मे जायेगा हीं तबतक जब तक आप भगवद् प्राप्त नही कर लेते । और फिर माइक इंद्रियादी बिना मन का कोई कर्म कर हीं नही सकती । संसार मे कर्म करने के लिये मन को कार्य में लगाना हीं पड़ेगा नही तो माईक इंद्रिया कार्य नही कर सकेगी बिना मन के ।
अतएव मार्ग निकाला गया की जब आप अपना सारा संसारिक कार्य हरि निमित्त हीं करेगें, जैसे खा रहें है तो क्यों खा रहें है ? शरीर को स्वस्थ रखना हैं , अब शरीर स्वस्थ रखना है क्योकि भगवान् की , गुरु की सेवा करनी हैं ,
:- श्री महाराज जी ( कामना और उपासना )
हम व्यापार क्यों कर रहे है ? तो संसारिक फर्ज को पुरा करना है पर मेन उदेश्य तो है कि पैसा कमा कर बचाकर दान करना ,अपना परमार्थ बनाना है । भगवान की सेवा मे लगाना है ।
कपड़ा खड़ीदना है , शरीर को ढकना है क्योकि शरीर भक्ति के लिये आवश्यक हैं ।
वाल बच्चे को पालना है , पढ़ाना है क्योकि यह भी संसार में हरिगुरु के अनुसार कर्मयोग करे, नौकरी करे , व्यापार करे परंतु भगवान् की सेवा का लक्ष्य , हरिगुरु की सेवा का लक्ष्य रखे और करे । इसलिये बच्चों का लालन पालन , पढ़ा लिखा रहें हैं ।
हम सब यह मन मे गांठ पार ले कि जब शरीर ही अपना नही है । तो संसार कैसे अपना हो सकता है , यह अनमोल मानव देह जो मिला है वह एक मात्र अपने परम चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिये केवल ।
तो ये बंगला , ये मकान , ये दुकान , हाथी , घोड़ा , पालकी, आपके पौकेट का बटुआ , बैंक मे जो पैसा रखें है वो सब भगवान् का है , हम केवल मुनीम हैं सेवक हैं । उनकी ही (भगवान् की हीं ) नौकरी कर रहें हैं ।
अपने सेव्य के निमित्त नौकरी कर रहें हैं । हमे सेवा करनी है ।
हम जब भी बटुए से पैसा निकाले तो उनसे मांग कर निकाले कि किस चीज मे खर्च करना है । जरुरी है तो करें ले ले , हरिगुरु को बोल कर लें कि हे गुरु बर हम ले रहे है इस काम के लिय , हर काम मे इजाजत ले कर करें तो आपका हर काम भी अच्छा होगा और मन बार बार हरिगुरु मे जायेगा , भगवान में जाऐगा ।
क्योंकि आप गलत काम के लिये , या मितव्ययिता के लिये पैसा मांगने में हरि से गुरु से संकोच करने लगोगे और इस प्रकार गलत काम में जैसे शराब, कवाव , सिगरेट की आदत छूट ही जायेगी।
हां अगर पुरी निष्ठा से मन से , पुरी समर्पण से , श्रद्धा से यह मान लिजिये की कुछ भी आपका नही है , सबके लिये इजाजत मांगनी है । हर पल हर खर्च के लिये पैसा बटुये से निकालना है तो हरि गुरु से , हरि से इजाजत लेने की आदत डालना पड़ेगा ।
तो इस प्रकार यह कर्मयोग हो जायेगा । फिर आप भगवद् क्षेत्र में बड़ी तेजी से आगे बढ़ने सकेगें ।
यही है प्रैक्टिक अप्लिकेशन कर्मयोग का फिर आपका - तन कार में होगा और मन हमेशा यार मे होगा ।
इसप्रकार श्री महाराज जी ने तन कार में और मन हमेशा यार मे लगा कर रखने का उपाय बतलायें हैं
तब फिर आपका शरीर संसार में रहे , संसारी काम करते हुये हर क्षण आपका मन भगवान् मे लग जायेगा ।
आप यह मान ले , मन में वैठाया ले। :- पुज्यनियां मां ।।
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