भगवान के अनन्तानंत नामों में जीवों के लिए महत्वपूर्ण नाम है ' पतितपावन' - ऐसा क्यों कहा गया है ?

*-*-*-*-*-*-*-पतितपावन-*-*-*-*-*-*-*
भगवान के अनन्तानंत नामों में जीवों के लिए महत्वपूर्ण नाम है ' पतितपावन' - ऐसा क्यों कहा गया है ? आइए , इस गूढ़ विषय को समझने के लिए श्री महाराज जी के श्रीमुख से नि:सृत इसकी अनमोल व्याख्या पर अपने मन को केन्द्रित करें |
भगवान का एक नाम है - पतितपावन | यह सबसे Important नाम है क्योकि  अनंत कोटी ब्रह्माण्ड के समस्त जीव पतित हैं ,
पापात्मा हैं | अनन्त जन्मों में अनंत पाप कर चुके हैं और वर्तमान में भी कर रहें है |
जितने क्षण आपके मन का attachment भगवान और महापुरुष में नहीं है, वह सब पाप है , वह सब समय आपका पापमय है | यह परिभाषा याद कर लो , भगवत्प्राप्ति तक काम देगी | 
आप नहीं जानते - हमने कहाँ पाप किया ? हमने कोई चोरी नहीं की | हमने झुठ नहीं बोला एक घंटे में | कुछ तो किया ! क्या किया बोलो ? तुम्हारे मन ने क्या सोंचा ? संसार सोंचा ! तो संसार जो सोंचा तुम्हारे मन ने भगवान को छोड़ करके , वह सब पाप है | 
अच्छा कर्म भी पाप है और बुरा कर्म भी पाप है | केवल भगवान और महापुरुष का चिन्तन , यही सही है | बाकी सब कर्म पाप है क्योंकि बाँधने वाले है वह | उन कर्मो का बंधन होता है | 

अच्छा कर्म करोगे स्वर्ग मिलेगा , खराब कर्म करोगे नरक मिलेगा , अच्छा बुरा दोनों का मिश्रण करोगे , मृत्युलोक मिलेगा | तीनों का परिणाम मायाकारक है , बंधनकारक है | ८४ लाख में घुमाएगा वह कर्म | तो इस परिभाषा के अनुसार कितने क्षण हम भगवान और महापुरुष में मन का attachment करते हैं ? सोचिए , २४ घंटे में कितने घंटे करते हैं ? अरे यहां घर छोड़कर आए हैं  मनगढ़ में |
हम आपके पीछे लगे हैं, फिर भी आप २४ घंटे मन नहीं लगा पाते 
भगवान और महापुरुष में | तो उस संसार में जाकर आप कितना घंटा मन लगा पाते होंगे ? 
माँ का चिन्तन , भाई का चिंतन , पत्नी का चिन्तन , वेटे का चिन्तन , वेटी का चिंतन , तमाम का चिन्तन , किसी से बुराई का श्रवण , किसी में बुराई का कीर्तन | यही सब तो करते हैं संसार में आप | सब पाप है !
अनंत पाप तो एक जन्म में हम कर चुके हैं और फिर अनंत जन्म हो चुके हैं | पापों की क्या गिनती है ?
लेकिन भगवान पतितपावन हैं | सब पाप भस्म कर देतें हैं शरणागत का , याद रखो केवल शरणागत का | केवल तन से शरणागत का नही , अपितु मन से शरणागत का | 
तो 'सर्व पापेभ्यो: मोक्षयिष्यामि ' केवल surrender कर देने से | कुछ करना-धरना नहीं , मन - बुद्धि दान कर दिया | शरणागत ! 

तो पतितपावन नाम इसलिए Important है कि हम सब जीव पतित हैं , अनंत कोटी ब्रह्माण्ड में | उसमें स्वर्ग भी है | वहाँ के लोग भी सब पतित हैं | इन्द्र, वरुण, कुबेर सब पतित हैं |
आपलोग हजारों बार इन्द्र बन चुके हैं | इन्द्र, स्वर्ग के राजा ! सम्राट !! और फिर कुत्ते बिल्ली बने ; फिर मनुष्य बने | तो ब्रह्मलोक तक माया का आधिपत्य है , इसलिए ब्रह्मलोक तक सब जीव पाप करतें हैं |
कभी-कभी भगवान का स्मरण जब कभी कर लेतें हैं उतना समझ लो वह बिना पाप के हैं | वह भी ठीक-ठीक करें तो ! 
:- श्री महाराज जी

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