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Showing posts from January, 2021

संसार मे रहो पर ध्यान रहे की संसार आप में न बसे |

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संसार मे रहो पर ध्यान रहे की संसार आप में न बसे |  मशहूर सूफी संत उमर बगदाद में रहते थे। उनके पास रोज बड़ी संख्या में लोग मिलने आते थे। वे सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करते और यथोचित सत्कार भी करते थे। एक बार एक दरवेश उनके पास पहुंचा। उसने देखा कि कहने को तो उमर फकीर हैं, लेकिन वे जिस आसन पर बैठे हैं, वह सोने का बना है। चारों ओर सुगंध है, जरी के पर्दे टंगे हैं, सेवक हैं तथा रेशमी रस्सियों की सजावट है। रस्सियों के निचले हिस्से में सोने के घुंघरू बंधे हैं जो जमीन तक आ रहे हैं। हवा चलती है तो रेशमी रस्सियां हिलती हैं, और उनके घुंघरू बज उठते हैं। कुल मिलाकर हर तरफ विलास और वैभव का साम्राज्य है।  दरवेश देखकर भौंचक रह गया। उमर उसके सम्मान में कुछ कहते, इसके पहले ही दरवेश बोल उठा-'आपकी फकीराना ख्याति सुन दर्शन करने आया था, लेकिन देखता हूं आप तो भौतिक संपदा के बीच मजे में हैं।' उमर ने कहा-'तुम्हें ऐतराज है तो मैं इसी पल यह सब वैभव छोड़कर तुम्हारे साथ चलता हूं।' दरवेश ने हामी भरी और कुछ ही पलों में उमर सब छोड़कर उसके साथ चल पड़े। दोनों पैदल कुछ दूर चले होंगे कि अचानक दरवेश पीछे मु...

" वेद कहता है कि सबके लिये शुभ कामना होनी चाहिये , एक दो चार के लिये नहीं |

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श्री महाराज जी :- (२२ अप्रैल २०१३) " वेद कहता है कि सबके लिये शुभ कामना होनी चाहिये , एक दो चार के लिये नहीं |  सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग् भवेत् || ये वेद मंत्र है | समस्त विश्व में सब सुखी हों , सबका कल्याण हो , सब निरोग हों , ईत्यादि शुभकामनायें सारे संसार के प्रति होनी चाहिये | एक के प्रति हुई या अपने बेटे - बेटी , नाती - पोते लिये हुई और औरों के प्रति दुर्भावना हुई ,ये गलत है | सबमें भगवान् का निवास है , इस फैक्ट को रियलाइज करते हुये सर्वत्र सबके प्रति अच्छी भावना हो, अपने प्रति खराब हो | अगर अपने प्रति भी अच्छी भावना हो गई तो फिर आपका उत्थान नहीं होगा, पतन हो जायगा , अहंकार हो जायगा | तो फैक्ट यही है कि सबमें भगवान् को माने इसलिये सबके प्रति सुन्दर भावना हो और अपना हाल तो वो जानता ही है कि हम अनादिकाल से अपराधी हैं , भगवान् को भूले हुये हैं | इसीलिये भगवान् नहीं मिले हमको | अनन्त पाप किये बैठे हैं ये सब माने | हमें अपने आपको ठीक करना है और किसी को नही देखना | देखना है तो अच्छी भावना से कि इसके अन्दर भगवान् हैं | हम स...

भगवान की तीन शक्तियों में एक परा, दूसरा क्षेत्रज्ञ और तीसरी माया है ।

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श्री महाराज जी :- भगवान की तीन शक्तियों में एक परा, दूसरा क्षेत्रज्ञ और तीसरी माया है । परा शक्ति को ही स्वरुप शक्ति कहते हैं । इसे योगमाया भी कहते हैं । भगवान की यह निज विशेष शक्ति है । जो असंभव को भी संभव कर सकती है । भगवत्प्राप्ति के बाद यह स्वरुप शक्ति सबको प्राप्त होती है । जिससे - अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षु: स श्रृणोत्यकर्ण:। स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्र्यं पुरुषं महान्तम् ।। (श्वेता. ३-१९) एक इन्द्रिय से सब इन्द्रिय का विषय ग्रहण कर सकते है और वह एक इन्द्रिय नहीं है तो भी -  बिनु पग चलइ सुनइ बिनु काना । कर बिनु कर्म करइ विधि नाना ।। आनन रहित सकल रस भोगी । बिनु जिह्वा वक्ता बड़ जोगी ।। तन बिनु परस नयन बिनु देखा । ग्रहइ 'घ्राण बिनु वास असेसा ।। असि सब भाँति अलौकिक करनी । महिमा जासु जाइ नहीं बरनी ।। असंभव को संभव करने वाली -  'कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ: '। इसे कहते हैं समर्था शक्ति, स्वरुप शक्ति या पराशक्ति । दूसरी शक्ति है क्षेत्रज्ञ । इसी का नाम जीवशक्ति है । हम जीव पराशक्ति युक्त श्रीकृष्ण के अंश नहीं हैं क्योंकि हम मायाधीन हैं किन्तु ज...

पोस्ट सं- आठ ( अंतिम अध्याय) *** राम कौन हैं ****

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पोस्ट सं- आठ ( अंतिम अध्याय) *** राम कौन हैं **** श्री महाराज जी :-  राम के चार स्वरूप । वाल्मिकि रामायण कहती है।-  तत: पद्म पलाशाक्ष: कृत्वात्मानं चतुर्विधम् । [वा.रामा] ये लक्ष्मण , भरत, शत्रुघ्न ये कोई महापुरुष नहीं हैं। सब राम हैं । राम अपने आप चार बन गए , और वही चारों फिर कृष्णावतार में श्रीकृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न यह चतुर्व्यूह बन कर के प्रकट हुए । और वही ब्रम्हा, विष्णु, शंकर , रामावतार में स्तुति करने गए । वहीं कृष्णावतार में स्तुति करने गए । इसलिए ऐसा नामापराध न कमाएं ।  अगर कोई भोले भाले लोग शास्त्रों वेदों को नहीं पढ़े हैं तो वे हमारी ये प्रार्थना को स्वीकार करें , और थोड़ा भी अंतर न मानें कि दोनों बराबर हैं ऐसा नहीं कहना । दोनों एक हैं ऐसा कहना । बराबर का मतलब तो दो पर्सनालिटी हो गई , पर्सनालिटी दो नहीं हुई । एक ही पर्सनलिटी के अनंत रूप हैं ।  अनंत नाम और रूपाय । इस प्रकार भगवान राम को रो कर पुकारो । रो कर पुकारो । खाली ऐसे जो आप लोग मंदिरों में गा देते हैं। भये प्रगट कृपाला दीन दयाला .... ऐसे नहीं । रोक कर पुकारो । तुम्हें मांगना है ना भी...

** पोस्ट सं - सात**** श्रीराम कौन हैं ?

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** पोस्ट सं - सात**** श्रीराम कौन हैं । श्री महाराज जी -  नेम धर्म आचार तप योग यज्ञ जप दान । भेषज पुनि कोटिन करिय , रूज न जाहिं हरि जान । 'रघुपति भक्ति सजीवन मूरी ' बस एक दवा है । साधक सिद्ध विमुक्त । देखो क्या शब्द है ' विमुक्त ' साधक सिद्ध विमुक्त उदासी । कवि कोविद कृतज्ञ सन्यासी ।। जोगी सूर सुतापस ज्ञानि । धर्म निरत पंडित विज्ञानी ।। तरई न बिनु सेएं मम स्वामी । राम नमामि नमामि नमामि ।। चैलेंज है तुलसीदास जी महाराज का । वारी मथे बरू होय धृत सिकता ते बरू तेल । बिनु हरि भजन न भव तरिय , यह सिद्धांत अपेल ।। विनिश्चितं वदामि । चैलेंज कर रहे हैं बार-बार भक्ति से ही राम मिलेंगे । हां तो आप लोग समझ गए ,राम ब्रह्म है। उन्हीं का रूप परमात्मा और ब्रह्म का है। वह भगवान है । उनका शरीर भी सच्चिदानंदघन है, और उनकी प्राप्ति भी कर्म, ज्ञान, योग से असंभव, केवल भक्ति से ही होगी । वो राम और कृष्ण ये दो तत्त्व नहीं हैं । तत्त्व एक है । यह बात हमारे बहुत से साधू भाइयों को भी नहीं पता है। वो कहते हैं भाई ऐसा है कि सब अपने-अपने इष्ट को नमन करते...

**पोस्ट संख्या - छः** राम कौन हैं ******

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***पोस्ट संख्या - छः** राम कौन हैं ****** श्री महाराज जी -   विष्णुर्महान् स इह यस्य कला विशेषो-  इसलिये जब देखा विराट रूप तो-  भिन्न भिन्न प्रतिलोक विधाता । भिन्न विष्णु शिव मनु दिशि त्राता ।। ब्रह्मा विष्णु, शंकर , मनु सब भिंन्न भिंन्न देखा, अनंत ब्रह्मांडों में अनंत मात्रा के, और भगवान राम को जब देखा एक ब्रह्मांड के विष्णु ने तो- रमा समेत रमा पति मोहे । मोहित हो गए । रमा भी और रमा पति भी । तो ये विष्णु एक ब्रह्मांड वाले तो राम के अण्डर में हैं । उनके गुणावतार हैं । अनंत कोटी ब्रह्मांड नायक जो बैकुंठाधिपति हैं वो महाविष्णु हैं । वो राम के हीं अभिन्न रूप हैं । ऐश्वर्य के रूप हैं, चारभुजा है उनके। ब्रह्मा ने कहा था -चतुर्भुज:। आप चार भुजा वाले हैं ।भवान्नारायणों देव: । आप नारायण हैं, ये नारायण शब्द भी भ्रामक है । क्योंकि विष्णु का नाम भी नारायण है। और महाविष्णु को भी नारायण कहते हैं, और राम कृष्ण को भी नारायण कहते हैं । यह शब्द जाल है ये पंडितों के बस का नहीं है । संत महात्मा लोग इसको हल करते हैं । तो भगवान राम वेदों के अनुसार पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान हैं ।...

आध्यात्मिक इतिहास के मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की विलक्षण दार्शनिकता

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आध्यात्मिक इतिहास के मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की विलक्षण दार्शनिकता :-  संसार के बड़े - से - बड़े शास्त्रकारों ने धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष - इन चार पुरुषार्थों को ही जीव का लक्ष्य बताया है | उन्होंने इन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अपने-अपने सिद्धान्त रखे हैं | किन्तु श्री कृपालु जी महाराज जी की तत्त्वज्ञता इन सबों से अद्वितीय है; भिन्न है | उनके अनुसार पुरुषार्थ चतुष्टय जीव को अंतिम लक्ष्य नहीं दे सकते क्योंकि जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है | उसके दासत्व की पूर्णता और प्रमाणिकता श्रीकृष्ण का प्रेम प्राप्त कर उनकी सेवा करने में हैं |  मोक्ष को उन्होंने दिव्य पुरुषार्थ माना है , किन्तु अंतिम नहीं | और शेष तीन मायिक पुरुषार्थ है :- धर्म , अर्थ , काम |  जीव ईश्वर का अंश है | यह 'गीता ' ' रामायण ' द्वारा प्रमाणित है -                          ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन: | - गीता                           ईश्वर अंश जीव अविनाशी ...

जगद्गुरुत्तम संदेश ( हमेशा याद रखें यह सिद्धान्त ) :-

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जगद्गुरुत्तम संदेश ( हमेशा याद रखें यह सिद्धान्त ) :-  * द्वेष करने वाले व्यक्ति के प्रति भी द्वेष न करें | उदासीन रहे | * आज कोई नास्तिक भी है तो कल उच्च साधक बन सकता है अत: साधक यह न सोचे कि इसका पतन सदा को हो चुका | सूरदास संत उदाहरण हैं | * गुरु की सेवा करने वाला तो साधक ही है, उसके प्रिय होने के कारण उससे द्वेष करना पाप है | * सचमुच भी कोई अपराधी हो तो भी मन से भी उसके भूतपूर्व अपराधो को न सोचे , न वोले | * संसार में भगवत्प्राप्ति के पूर्व सभी अपराधी हैं |  बड़े बड़े साधकों का पतन एवं बड़े बड़े पापियों का भी उत्थान एक क्षण में हो सकता है | * सब में श्री कृष्ण का निवास है अत: उनको ही महसुस करें |  * मन को सदा श्री कृष्ण एवं उनके नाम , रुप , गुण , लीला , धाम, तथा उनके स्वजन में ही रखना है | * अपने शरण्य ( हरि एवं गुरु ) को सदा अपने साथ रक्षक रुप में मानना है |  * परदोष दर्शनादि कुसंगों से बचना है | * दोष चिन्तन करते हुये शनै शनै बुध्दि भी दोषयुक्त हो जाती है | * परदोष दर्शन ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है | * हमारा निन्दक हमारा हितैषी है | * निन्दनिय के प...

"जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज"...(जगद्गुरुत्तमई का परिचय)......ये कौन हैं?

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"जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज"...(जगद्गुरु परिचय)......ये कौन हैं? "भक्ति की अंतिम परिणति का नाम महाभाव और महाभाव का मूर्तिमान विग्रह हैं श्री राधा। श्री कृष्ण रसिक शिरोमणि हैं,सम्पूर्ण अलौकिक रसों की निधि हैं। भक्ति और रस दोनों का अपूर्व सम्मिश्रण हैं ये 'कृपालु'।" बात 14 जनवरी 1957, की है। काशी के मूर्धन्य,शास्त्रज्ञ विद्वानों की सभा तथा उपस्थित विशाल जनसमूह,इनके मध्य एक तेजस्वी युवक उपस्थित हुए.....जिनकी आयु लगभग 34 वर्ष की होगी। उन्होने अपनी अलौकिक वाणी और प्रतिभा से सभी को मंत्र-मुग्ध कर दिया। गौर वर्ण,काले घुंघरारे बाल,बिजली के समान चमकता शरीर,प्रेम रस परिप्लुत सजल नेत्र,सभी का चित्त आकर्षित हो गया। सब कुछ भूल कर एकटक सब इनकी और देखते रह गये। कौन हैं ये? इनके रोम-रोम से प्रेम निर्झरित हो रहा है। इनको देखते रहो,देखते रहो,नेत्रों की तृप्ति नहीं होती बल्कि वे और अधिक प्यासे हो जाते हैं। उनके कठिन वैदिक संस्कृत में दिये गये 9 दिन के विलक्षण प्रवचन को सुनकर विद्वत समाज के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। सभी के मन में जिज्ञासा हुई,'ये कौन है?...

****राम कौन हैं *** पोस्ट संख्या - पाँच श्री महाराज जी :-

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****राम कौन हैं *** पोस्ट संख्या - पाँच  श्री महाराज जी :- सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होय।  प्रभु बंधन रण महंँ निरखि । गरूड़ सरीखे पर्सनालिटी को मोह हो गया। ये राम । भव बंधन से छूटहिं नर जपि जाकर नाम । एक तुच्छ राक्षस उसने नागपाश में बांध लिया । ये राम भगवान नहीं हो सकते, कोई बड़ी पर्सनालिटी हैं ठीक है, भगवान - उगवान नहीं । महामोह ऊपजा उर तोरे । सब जगह भटकते फिरे विचारे । लग गई माया । हांँ । नहीं समझ पाए । अरे कोई नहीं समझ सकता।  देखा हम आपको बताएं एक छोटी सी बात । सीता हरण हुआ, हांँ । तो भगवान लक्ष्मण के साथ सीता को ढूंढने निकले पैदल। और किस तरह ढूंढ रहे हैं । अरे आज कल भी तमाम लोगों की स्त्रियां खोती है, बेटी खोती है , बहन खोती है, लेकिन उसके खोजने का तरीका होता है । पुलिस में खबर करो , रेडियो में, इसमें-उसमें , सब तरह के तरीके हैं न- ये वृक्षा: पर्वतस्था गिरिगहन लता वायुना वीज्यमाना । रामोअ्हं व्याकुलात्मा दशरथ तनय: शोक शुक्रेण दग्ध:। बिम्बोष्ठी चारूनेत्री सुविपुल जघना बद्ध नागेन्द्र काञ्ची। हा सीता केन नीता मम ह्रदय गता को भवान् केन दृष्टा । ऐ पेड़ों लताओं...

महाराज जी के श्री मुख से शबरी प्रसंग :- प्रभु श्रीराम का आदर- सत्कार कर शबरी हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी |अपने प्रभु को देखा - उसका प्रेम अत्यन्त बढ़ गया | वह कहने लगी |

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महाराज जी के श्री मुख से शबरी प्रसंग :-  प्रभु श्रीराम का आदर- सत्कार कर शबरी हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी | अपने प्रभु को देखा - उसका प्रेम अत्यन्त बढ़ गया | वह कहने लगी | अधम ते अधम अधम अति नारी | तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी || तब श्रीराम जी बोले - हे भामिनि ! मैं तो केवल भक्ति का सम्बन्ध मानता हूँ | जाति , पाँति , कुल , धर्म , बड़ाई , धन-बल , कुटुम्ब , गुण एवं चतुराई - इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य जलहीन बादल सा लगता हैं | उन्होने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश किया | कहा- मेरी भक्ति नौ प्रकार की है - नवधा भक्ति कहहुँ तोहि पाहीं | सावधान सुनु धरु मन माहीं || प्रथम भक्ति संतन कर संगा | दूसरि रति मम कथा प्रसंगा || गुरुपदपंकज सेवा तीसरि भक्ति अमान | चौथि भक्ति मम गुन गन करइ कपट तजि ज्ञान || मंत्र जाप मम द्दढ़ विश्वासा | पंचम भजन सो वेद प्रकासा || छठ दम सील विरति कहु करमा | निरत निरन्तर सज्जन धरमा || सातवँ सम मोहि मय जग देखा | मोते संत अधिक कर लेखा || आठवँ जथा लाभ संतोषा | सपनेहुँ नही देखहिं परदोषा || नवम सरल सब सन छल हीना | मम भरोष हिय हरषन दीना || नव महँ एकहुँ जिन्ह के होई | नारी पु...

पोस्ट संख्या -चार ***राम कौन हैं ***( पोस्ट संख्या तीन के आगे ) श्री महाराज जी :- 'राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी मत हमार अस सुनहु सयानी ।'

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पोस्ट संख्या -चार ***राम कौन हैं *** ( पोस्ट संख्या तीन के आगे )  श्री महाराज जी :-  'राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी मत हमार अस सुनहु सयानी ।' वानी की गति नहीं वहाँ। अनिर्वचनिय कह देती हैं वेद की ऋचायें । वेद की ऋचायें राम के विषय में कह देती है अनिर्वचनियं । हम कुछ बता नहीं सकते। 'न इति न इति । अस्थूल मनणु:' कोई अंत नहीं है । उनके गुणों को हम नहीं बता सकते। बताया है थोड़ा बहुत। 'सहस्त्रशीर्षा पुरूष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्रपात् । स भूमिँ् सर्वतस्पृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलम् ।।' हजारों आंख , हजारों कान, हजारों हाथ । अरे ये हजारों- हजारों से क्या तय होगा । अनंत-अनंत सामान सब उनके पास हैं । हां कोई गिनती नहीं किसी चीज की । तो भगवान का स्वरूप इंद्रिय , मन , बुद्धि से परे हैं । अतर्क्य है, अचिन्त्य है, अज्ञेय है , बड़े-बड़े दावा करने वाले भगवान के पास गए और मुंह की खा के लौट आए ,‌ नहीं जान सके । छोटे-मोटे नहीं । भगवान ब्रह्मा ,भगवान विष्णु, भगवान शंकर। जग पेखन सब देखन हारे , विधि हरि शंभु नचावन हारे । तेउ न जानहिं मरम तुम्हारा, और तुमहिं को जाननहारा । तो क्या कोई राम को ज...

पोस्ट संख्या - तीन )*****राम कौन हैं ?******** श्री महाराज जी- 'राम एव परं तत्वम् '(राम रहस्योपनिषत)

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(पोस्ट संख्या - तीन )*****राम कौन हैं ********   श्री महाराज जी- 'राम एव परं तत्वम् '(राम रहस्योपनिषत) तो वेदों में सर्वत्र राम तत्व का निरूपण किया गया है। राम शब्द का अर्थ भी हुआ है। मैंने एक बताया आपको।  'रमंते योगिनोनन्ते ।' दूसरा अर्थ भी है । 'रा शब्दो विश्व वचनो मश्चापीश्वर वाचक: । विश्वानामीश्वरो तो हि राम: प्रकीर्तित: ।।' 'रा' माने संसार, विश्व और 'म' माने ईश्वर । शासन करने वाला । संपूर्ण विश्व का शासन करने वाला , वो राम । और कोई शासन नहीं करता, सब उनसे शास्य हैं । सब उनसे नियम्य हैं । वो नियामक हैं , शासक हैं । तीन काम करते हैं राम । ब्रह्मा जी ने कहा बाल्मीकि रामायण में । ' कर्ता सर्वस्य लोकस्य'   अनंत कोटी ब्रह्मांड को राम प्रकट करते हैं । प्रकट करते हैं? हांँ । और कोई नहीं कर सकता ? न । तो किसी महापुरुष को ये शक्ति भगवान ने नहीं दी, और सब दे दिया, सत्य , ज्ञान, आनंद। 'अपह्त पाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोकोअ्विजिघत्सोअ्पिपास: सत्यकाम: सत्यसंकल्प: ।' ये आठ गुण हैं । वेद के अनुसार यह सब दे देते हैं । भक्त को , लेकिन...

पोस्ट संख्या दो )******** राम कौन हैं ? *********श्री महाराज जी ---रामत्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रह: ।

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( पोस्ट संख्या दो )******** राम कौन हैं । ********* श्री महाराज जी --- रामत्वं परमात्मासि सच्चिदानंद विग्रह: । हे राम तुम परमात्मा हो । यानी भगवान जो है वो परमात्मा भी हैं, ब्रह्म भी हैं, उसी के दोनों रूप हैं । जैसे- चयस्त्विषामित्यवधारितं पुरा,                  तत: शरीरीतिविभा विताकृतिम् । विभुर्विभक्तावयवं पुमानिति-                 क्रमादमुन्नारद इत्यबोधि स: ।। जब नारद जी भगवान श्री कृष्ण के सामने आ रहे थे बैकुंठ से, तो पहले जनता ने देखा कोई लाइट आ रही है नीचे को, प्रकाश पुंज, और समीप में आए तो लोगों ने देखा कि इसमें कोई शक्ल भी है मनुष्य की प्रकाश के साथ-साथ, और जब नीचे पृथ्वी के पास आ गए, अरे ये तो नारद जी हैं , अच्छा-अच्छा-अच्छा । ऐसे ही ब्रह्म का स्वरूप लाइट का , परमात्मा का स्वरूप बीच वाला और भगवान जो नारद पृथ्वी पर आ गए । वो जिसमें सबकुछ प्रत्यक्ष है, जैसे हम आपके सामने बैठे हैं । ऐसे हमारे राम कृष्ण हमारे सामने बैठते हैं , बोलते हैं , सब इंद्रियों से हम उनको ग्रहण करते हैं , जैसे स...

प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :- १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् ।

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निष्काम भक्तिमार्गी साधकों के लिए अति महत्त्वपूर्ण - प्रपतिमूला भक्ति यानि अनन्य भक्ति में शरणागति के ये छ: अंग अति महत्वपूर्ण है :-   १. अनुकूलस्य संकल्प: २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: ४.गोप्तृत्व वरणम् ५.आत्मनिक्षेप एवं ६. कार्पव्यम् । भक्ति का आधार है शरणागति , आत्मसमर्पण । शरणागति को प्रपतिमूला भक्ति में भी अत्यन्त महत्व दिया गया है। प्रपति का अर्थ है - अनन्य भक्ति जो सद्गुरू के अनुग्रह से ही संभव है। इसमें शरणागति के 6 अंग बतालाए गए हैं जो निम्नलिखित हैं :-   १.अनुकूलस्य संकल्प: : - हरि-गुरू के अनुकूल बने रहना । यानि प्रत्येक क्षण उनके इच्छा में हीं इच्छा रखना ।  २.प्रतिकुलस्य वर्जनम् : - हरि-गुरू के प्रति प्रतिकूल भावादि से स्वयं की रक्षा करना उनके दिए गय तत्त्वज्ञान के बल से , कुसंग से दुर रहना , ( बहिरंग और अंतरंग दोनों प्रकार के कुसंग से बचना, बहिरंग यानि विषई व्यक्ति से दुरी और अंतरंग यानि अपने मन में उठे गलत भाव को तुरंत समाप्त कर देना )। ३.रक्षिष्यतीति विश्वास: : - हरि-गुरू प्रत्येक क्षण हमारी रक्षा कर रहें हैं और करे...

राम कौन हैं ? पहले वेदों में चलिए ।राम शब्द का अर्थ स्वयं वेद कर रहा है ।

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पोस्ट संख्या -एक *****राम कौन हैं ******* श्री महाराज जी :- राम कौन हैं ? पहले वेदों में चलिए ।राम शब्द का अर्थ स्वयं वेद कर रहा है । "रमंते योगिनोनन्ते नित्या नंदे चिदात्मनि । इति राम पदेनाअ्सौ परब्रह्मभिधीयते ।।"(राम तापनी) जिसमें योगी लोग आत्माराम पूर्ण काम परम निष्काम परमहंस लोग रमन करते हैं वह परब्रह्म श्रीराम है ।  फिर वेद कहता है -  " यो ह वै श्री राम चन्द्र: स भगवान् । "( राम तापनी) ये जो अयोध्या के श्री राम चंद्र हैं यह भगवान हैं । भगवान । यह भगवान क्या होता है । " ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशस: श्रिय: । ज्ञानंवैराग्य योश्चैव षण्णां भग इतिरणा ।।"  अनंत मात्रा के षडैश्वर्य जिसमें हों उसको भगवान कहते हैं । उस भगवान के तीन स्वरूप होते हैं । भगवान तीन नहीं होते । भगवान का अभिन्न तीन स्वरूप । "वदंति तत्त्वत्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् । ब्रह्मोति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते ।।(भागवत) वेदव्यास कह रहे हैं कि भगवान का एक रूप होता है परमात्मा, एक रूप होता है ब्रह्म । यह तीन रूप होते हैं, जिसमें ब्रह्म सबसे नीचे है । निराकार, निर्गुण निर्विशेष ...

भक्ति में बाधक हैं ये सारे दोष

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श्री महाराज जी - संक्षेप में सुन लो , डिटेल नहीं करूंगा । दो प्रकार दोष होता है सबमें ,  एक होता है कपुयाचरण और दुसरा अध्यात्मिक तुष्टी ।  भक्ति में बाधक हैं ये सारे दोष - कपुयाचरण तीन प्रकार का होता है ।  एक होता जिह्म भाव । :- ह्रदय में कपट हो और राधे राधे बोलते हैं , दुसरे में दोष देखने की बीमारी है , वो ऐसा है , वो ऐसा है , अरे महापुरूषों को भी नहीं छोड़ते , लोग अपनी उसी दोष बुद्धि से भगवान और महापुरूषों को भी देखतें हैं , विश्वास नहीं भगवान पर  कि भगवान हमारे  अंदर बैठे हैं ,‌ वो हमारे ह्रदय में वहीं पर वैठे हैं जहां पर हम है,  तो यह जिह्म भाव हैं , केवल मुख से राधे-राधे , राम-राम, हरे राम हरे राम बोलतें हैं , वो माला लेकर जपतें जातें हैं,  पर मन में तमाम संसार भरा परा है, दुसरे में दोष देखते रहतें हैं   । दुसरा है अनिर्त भाव :- अपने दोष को छुपाना , और‌ खुद को अच्छा कहलवाने का शौख रखना ।  खुद को भक्त दिखाने का नाटक करना , जोर-जोर  से रोने का नाटक करना ।  । तो इसको अनिर्त भाव कहतें हैं , इसका कोई फल नहीं उल्टे अहंकार आया और...

मनुष्य चार दोषों से ग्रसित है । वे कौन कौन है जाने और सावधान रहें । :- श्री महाराज जी ।।

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सभी मायाधीन मनुष्य चार दोषों से ग्रसित है ।  हर व्यक्ति जो ❛माया❜ के आधीन है उसमे चार दोष होते ही हैं। तो अब प्रश्न यह है कि क्यों ये दोष होते हैं? इसका कारण है माया। ❛माया❜ की वजह से, माया आधीन जीव अथवा मनुष्य अथवा स्त्री-पुरुष में चार दोष होते हैं। कुछ मनुष्य तो मायातीत (माया से मुक्त) भी होते हैं उनमें  यह दोष नहीं होते। जैसे तुलसीदास, सूरदास, मीरा, वेद व्यास, आदि। जो मायातीत (माया से मुक्त) होते हैं, उनको महापुरुष, गुरु, रसिक, महात्मा व संत कहते है। जो माया के आधीन रहते है उनको मायाधीन मनुष्य कहते हैं। मायाधीन मनुष्य (स्त्री-पुरुष) में चार दोष होतें हीं है किसी में कम तो किसी में ज्यादा । ये हैं  १. भ्रम २.प्रमाद ३. विप्रलिप्सा ४. कर्णापाटव भ्रम किसे कहते हैं? भ्रम कहते हैं किसी वस्तु को न पहचान करके उसे दूसरा रूप समझना। जैसे मैं आत्मा हूँ परन्तु अज्ञान (भ्रम) के कारण अपने को देह मानता हूँ। एक पीतल की चैन (chain) है, उसको एक व्यक्ति सोने की चैन समझता है। एक वस्तु को सही रूप में न पहचान कर गलत रूप में निर्णय करना यह भ्रम है। भागवत में कहा गया है, विपर्यय, मति विपर्यय इ...

श्री राधा रानी की उपासना का महत्व ।।

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हम साधकों के लिए अति महत्वपूर्ण , गुढ़ दिव्य विषय पर मां का दुर्लभ प्रवचन , मां का स्वनुभव , उनकी ही जुवानी में -राधा रानी की उपासना का महत्व :-  आप सब साधक राधारानी से बहुत प्यार किजिये , बहुत प्यार किजिए उनसे | उनको अपने ह्रदय में धारण किजिये , क्योंकि उनको ह्रदय में धारण करने पर ही भीतर में सद्गुण आऐगें | क्योंकि सदगुणों की खान राधारानी ही हैं |  स्वयं पीछे रहना , दुसरों को आगे करना राधारानी का गुण है | स्वयं सदा कहते रहना की कृष्ण ने तो मुझ अकिंचन को युँ हि अपना लिया है | मै तो उनके लायक नही हूँ , कृष्ण जब राधा की प्रशंसा करते हैं तो राधा एकातं मे जाकर रोती हैं और रो रो कर कहती है ललिता , विशाखा आदि सखियों से की कृष्ण ऐसा जो कहते है ये उनकी महानता है जो वो मेरी प्रशंसा करते हैं , मै तो प्रशंसा के लायक नही हूँ ! क्या किया है मैने उनके लिए ?  इतनी दीनता है राधारानी में , जो स्वयं तत्त्व हैं , स्वयं प्रेम हैं , स्वयं ह्रिलादिनी शक्ति हैं | लेकिन अपने आपको इतना संकुचित , इतना दीन हीन बनाकर रखती हैं |  तो वो सप्त सिंधु 'राधा ' जिनमें ये सात गुण हैं , इन सातो गुणों की...

श्री कृपालु महाप्रभु एक ऐसा दुर्लभ संत हैं जिनकी सेवा स्वयं श्री कृष्ण करते हैं । श्री महाराज जी श्री कृष्ण के भी वल्लभ हैं । हरि के वल्लभ हैं वे ।

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हमारे महाराज जी जैसे दुर्लभ संत बड़े नसीब वालों को हीं मिलते हैं | इसको समझने के लिये संत प्रिया दास की उक्ति को समझिए | एक संत हुएँ है संत प्रिया दास , भक्त माल के भाष्य कर्ता, इन्होने कहा है :-   " हरि के जो वल्लभ है , दुर्लभ भुवन माझ ,   तिनहिं की पदरेणु , आसा जिये करिहे |   जोगी तपी जपी तासो मेरो कछु काम नाही ,  प्रीति परितीति रीति मेरी मती हरिहें ||         हरि के वल्लभ किसको कहते है ? हरि के वल्लभ उनको कहते हैं जिनको श्री हरि प्यार करते हैं | जो गोलोक से आते हैं कभी कभी , ये बड़े दुर्लभ होतें हैं | बड़े ही दुर्लभ ! जिनके पदरेणु के लिय भगवान तरसते हैं | बड़े बड़े ऋषि , मुनिन्द्र , ज्ञानि ध्यानी , ब्रह्मा की कौन कहे देवता की तो बात हीं छोड़ो | प्रेम रस के रसिक संत इतने दुर्लभ हैं कि हजारो , वर्षो में जब भगवान कलिमल ग्रसित अपने प्यारे जीवों पर तरस खाकर , कृपा कर देतें हैं तो उनको कृपालु जैसे संत दे देते हैं | सोचिये आप सब कि आप सब कितने सौभाग्यशाली है कि आपको कृपालु जैसा अति दुर्लभ संत का संग मिला |  योगी , ज्ञानी , तप , जप करने वाले ...