प्रश्न: अनन्त सन्त हमें मिले लेकिन हमने उनकी शरणागति क्यों स्वीकार नहीं की ?
प्रश्न: अनन्त सन्त हमें मिले लेकिन हमने उनकी शरणागति क्यों स्वीकार नहीं की ?
उत्तर: अहंकार के कारण क्या अहंकार ? ज्ञान का अहंकार क्या मतलब? हमने अपनी बुद्धि से महापुरुषों को तौलने की अनधिकार चेष्टा की
योगेश्वराणां गतिमन्धबुद्धिः कथं विचक्षीत गृहानुबन्धः ।
(भाग ५-१०-२०)
जब योगीश्वरों की गति को ही कोई विश्व में नहीं समझ सकता तो योगीश्वरों से भी आगे हैं महापुरुष, उनकी गति को कौन समझ सकेगा और हमने समझने की चेष्टा की जरा देखें तो कैसा महात्मा है? हाँ, देखा। ऐसा मुँह है, ऐसी नाक है, ऐसी आँख है, इतना लम्बा है, इतना चौड़ा है, यह उमर है, यह रंग है, यह रूप है। यह क्या देख रहे हो ? अरे देख रहा हूँ कैसा महात्मा है। यह क्या देख रहे हो? महापुरुष यह शरीर नहीं है। महापुरुष तो इसके भीतर वाली आत्मा है और वहाँ तुम जा नहीं सकते।
एक बार जनक की सभा में अष्टावक्र गये। वे आठ जगह से टेढ़े थे। सोचिये, आठ जगह से टेढ़ा आदमी आप लोगों ने कहीं नहीं देखा होगा। दो जगह, तीन जगह से टेढ़ा भले ही देख लिया हो। यह छः फुट के शरीर को आठ जगह से टेढ़ा करो तो नौ-नौ इंच पर टेढ़ापन आयेगा।
सोचो, किस तरह का शरीर होगा। तो जनक सभा में जब अष्टावक्र गए तो स्वाभाविक है, वहाँ बड़े-बड़े टॉप के दार्शनिक विद्वान् वेदों के विद्वान् बैठे हुए थे। उन लोगों ने देखा और सबको हँसी आ गई, कोई कन्ट्रोल नहीं कर सका। महापंडितों को हँसते देखकर वो भी हंसे और जनक की ओर देखा और कहा- क्यों तेरी सभा में सब चमार ही चमार रहते हैं? चमार एक जाति होती हैं जो चमड़े का विशेषज्ञ हो उसको चमार कहते हैं, वे जूते इत्यादि बनाते हैं, और तमाम चीजें चमड़े की बनाते हैं। वे चमड़ा परख लेते हैं, यह चमड़ा किस क्लास का है? इसका दाम क्या होगा? यह हिरन का चमड़ा है, यह भैंस का चमड़ा है, यह गाय का चमड़ा है। इसमें विशेषज्ञ हो जाते हैं वे लोग तो अष्टावक्र ने कहा मैंने तो बड़ा नाम सुना था कि जनक की सभा में बहुत उच्च कोटि के विद्वान् रहते हैं पर यहाँ सब चमार हैं। पूरी सभा स्तब्ध रह गई। सारे विद्वानों को फील हुआ कि कैसा विचित्र आदमी है, हम लोग तो ब्राह्मण हैं फिर शास्त्रों वेदों के विद्वान् हैं। जनक समझ गए, वे तो विदेह परमहंस थे। जनक ने कहा- महाराज! ये लोग जानना चाहते हैं, आपने इन्हें चमार क्यों कहा। उन्होंने कहा- ये तो सीधा सा उत्तर है. इतना भी नहीं समझते ये लोग, हमने इन्हें चमार क्यों कहा? ये हमारे शरीर को देख रहे हैं कि आठ जगह से टेढ़ा है। आरे! शरीर को क्या देख रहे हो? शरीर में कोई बात नहीं होती, अगर होती भी है तो चर्म चक्षुओं से दिखाई नहीं पड़ सकती।
भगवान् का शरीर दिव्य चिन्मय है। लेकिन जब आपने देखा तो पंचमहाभूत की आँख से, तो भगवान् का दिव्य शरीर नहीं दिखाई पड़ेगा।
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी ॥
जैसी आपकी भावना थी, जैसा आप का टेम्प्रेचर था आत्मा का, स्प्रिचुअल पॉवर का, उसी प्रकार आपने देखा। इसलिये भगवान् के शरीर को भी आप देखेंगे तो आपको वह दिव्यानन्द नहीं मिलेगा, जो फैक्ट में है। वह तो महापुरुषों को मिलेगा। तो फिर महापुरुष के शरीर में अगर अलौकिकता भी हो जाए तो आपको दिखाई तो पड़ेगी नहीं। इसलिये हम लोगों ने जो गलती की बुद्धि लगाने की पहली गलती यह की। दूसरी गलती उसके वाक्य नं. १, क्रिया नं. २, चेष्टा नं. ३, इनको रीड करने की चेष्टा की। यह क्या बोलता है ? यह बोला, ऐसा क्यों बोला? यह महापुरुष नहीं है। यह क्या करता है ? ऐसा क्यों किया? महापुरुष नहीं है
जार चित्ते कृष्ण प्रेमा करये उदय
तार वाक्य क्रिया मुद्रा विज्ञे न बुझय ।
गौरांग महाप्रभु कहते हैं जिसके हृदय में श्रीकृष्ण प्रेम प्रकट हो गया है, वो महापुरुष हो गया है, उसके वाक्य, उसकी क्रिया, कार्य और उसकी चेष्टा, यह महानतम बुद्धिमान सरस्वती - बृहस्पति भी नहीं समझ सकते। :- श्री महाराज जी ।
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