प्रश्न : सांसारिक विद्या भी जब किसी गुरु के बिना नहीं आती है। फिर आध्यात्मिक विद्या कैसे आयेगी? शास्त्र कहता हैं कि वो गुरु से ही शिष्य को मिलती है। 'आचार्यवान् पुरुषो हि वेद' फिर आप कैसे कहते हैं कि आपका कोई गुरु नहीं है ?

प्रश्न : सांसारिक विद्या भी जब किसी गुरु के बिना नहीं आती है। फिर आध्यात्मिक विद्या कैसे आयेगी? शास्त्र कहता हैं कि वो गुरु से ही शिष्य को मिलती है। 'आचार्यवान् पुरुषो हि वेद' फिर आप कैसे कहते हैं कि आपका कोई गुरु नहीं है ?

उत्तर : १६ वर्ष के पश्चात् की हमारी सब बातें लोकवत् नहीं हैं, संसारी नियम-कानून के अनुसार नहीं हैं, जबकि लोग उसी के अनुसार समझना चाहते हैं। ऐसा कोई विषय नहीं है, चाहे वह संसारी हो या आध्यात्मिक, जिसको मैंने ए बी सी डी से शुरू किया हो। भारत का कोई व्यक्ति बता दे कि हमने उससे कुछ सीखा हो, पढ़ा हो। एक अक्षर भी पढ़ा या सीखा हो, तब तो कहा जा सकता है कि बुद्धि तीव्र थी, इसलिए जल्दी सीख लिया। लेकिन ऐसा कोई निमित्त ही नहीं दिखायी देता। किसी ने हमें किताब लेकर पढ़ते भी नहीं देखा।

सब यही समझते हैं कि संसार में कोई निमित्त होना ही चाहिए। रामकृष्ण आदि अवतारों तथा आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी कोई निमित्त बनाया जबकि हमने कोई निमित्त ही नहीं बनाया तो क्या बतावें। संसार वालों में इस बात को समझने की शक्ति नहीं है।

१६ वर्ष की उम्र में किसी व्यक्ति को एक भाषा का भी पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता। समस्त शास्त्र-वेदों का पूर्ण ज्ञान तो हजारों वर्ष पढ़ने पर भी नहीं हो सकता। कोई पढ़े और उसको कोई विद्या आ जाय, यह भौतिक नियम है। किसी को कोई विद्या थोड़ा पढ़ने से ही आ जाय, यह संस्कारजन्य बात है किन्तु किसी को बिना पढ़े मिल जाय, यह अलौकिक है। ऐसा उसी को होता है जो भगवत्शक्ति से जुड़ जाता है। जब ईश्वर से किसी का कनेक्शन हो जाता है, उसे वहाँ से वह शक्ति मिल जाती है। उसको समस्त विद्याओं का ज्ञान, जिनको वह जानना चाहता है, बिना पढ़े ही हो जाता है।
:- श्री कृपालु महाप्रभु जी ।

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