प्रश्न : पंचकोष क्या है ?

श्री महाराज जी से एक साधक का -
प्रश्न : पंचकोष क्या है ?

उत्तर: कोष मन की अवस्थाओं का नाम है। वे पाँच हैं- अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय अन्नमय तथा प्राणमय कोष के आधीन जब मन रहता है तो वह अत्यन्त निम्न स्थिति है। इसको काटना बहुत मुश्किल है। गुरु को भी इसको काटने में बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। अन्नमय कोष जब कट जाता है तब अन्न की विभिन्नता का मन पर कोई असर नहीं होता।

प्राणमय कोष में पंच प्राण होते हैं जिनमें मन प्रमाद आदि अनेक दोष उत्पन्न होकर मन को साधना से विरत कर देते हैं। इसके कट जाने पर वह विरत न कर पायेंगे। योगीजन अनेक प्रयत्नों से इनको वश में कर पाते हैं लेकिन प्रेम से अपने आप ही दोनों कोष कट जाते हैं।

मनोमय कोष से साधक को अनेक अनुभव होने लगते हैं और साधक को आनन्द आने लगता है। इसका कट जाना तब जानना चाहिये कि स्त्री की गोद में बैठे हैं और उसके अनेक प्रयत्न करने पर भी मन में विकार नहीं उपन्न हो रहा है।

विज्ञानमय कोष अहंकार का कोष है। अपनी स्थिति का सूक्ष्म अहंकार साधक को आगे नहीं बढ़ने देता है।

आनन्दमय कोष माया की अन्तिम सीढ़ी है। इसमें आने पर संसार की कोई बाधा असर नहीं कर पाती। भाव में भगवद् दर्शन होता है और प्रयत्न सिद्ध होता है, परन्तु साक्षात् नहीं होता यद्यपि साक्षात् के सदृश्य ही ज्ञात होता है। यहाँ आकर गुरु का असली और सबसे बड़ा कार्य होता है। यहाँ पर साधक को प्रतिक्षण सँभालना पड़ता है। माया की आखिरी ग्रन्थि को काटना होता है। माया कटी कि भगवत्साक्षात्कार हुआ, प्रतिक्षण साक्षात् साकार दर्शन। भाव में नहीं, दर्शन होता है साक्षात् जैसे हमलोग एक दुसरे को देख सुन रहे हैं वैसे ।

आनन्दमय कोष तक की स्थिति का अहंकार हो जाने से साधक अन्नमय कोष तक गिर सकता है। यह दूसरी बात है कि वह कितने दिनों तक उस स्थिति में भटकता रहे। जब चेतेगा तो अपनी पुरानी स्थिति को थोड़े से प्रयत्न से ही पा लेगा।

:- श्री महराज जी 🙏❤️🙏

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