कृपालु त्रयोदशी। तेरह दोहे हैं कुल। उसी में सब शास्त्र वेद का सिद्धांत भर दिया है।
हमसे पहले हमारे देश में पूरे कलयुग में चार जगद्गुरु हुए हैं - आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जी थे। ये सन्यासी थे और निर्गुण निराकार ब्रह्म के प्रचार के लिए, श्रीकृष्ण ने उनको भेजा था और कहा था -
स्वागमैंः कल्पितैस्त्वं च जनान्मव्दिमुखान्करु।
मां च गोपय येन स्यात्सृष्टिरेषोत्तरोत्तरा।।
(पद्मपुराण, उत्तरखंड७१.१०७ )
तुम जाओ और वेदों का प्रचार करो। बौद्ध धर्म ने वेदों का तिरस्कार किया। तो हमारे भारत के लोग, दुनिया के लोग, वेद के निन्दक हो गए हैं। तो वेद का प्रचार करो और सगुण साकार के विपरीत बोलो यानी मेरे खिलाफ बोलो 'मव्दिमुखान्कुरु।' लेकिन स्वयं भक्ति करना मेरी। भगवान् के कार्यों को कोई नहीं समझ सकता।
अति विचित्र भगवंत गति को जग जान जानइ जोग।।
उसके बाद और जगद्गुरु जो हुए उन सबने राधाकृष्ण की या लक्ष्मी नारायण की भक्ति का प्रचार किया। लेकिन उन सब लोगों ने जो ग्रंथ लिखे सब संस्कृत भाषा में लिखे। वेदों का भाष्य किया, गीता का भाष्य किया,उपनिषदों का भाष्य किया, कुछ ने भागवत का भी भाष्य किया। लेकिन कुछ जगद्गुरुओं ने तो इतनी कठिन संस्कृत में भाष्य किया है, उनको तो ये मामूली संस्कृत भाषा का पंडित तो समझ ही नहीं सकता।
तो हमसे भी लोगों ने कहा कि आपका जो सिद्धांत है, वह भी आपके द्वारा लिखित होना चाहिए ताकि भविष्य में कोई उलटा पलटा न कर दे।...
वेदव्यास ने वेदांत ग्रंथ बनाया। वेदांत! वेद के बाद वेदांत का नम्बर है! छहों शास्त्रों में वो टॉप है और उसमें एक-एक सूत्र छोटे-छोटे हैं,इशारे में। जैसे -
अथातो ब्रह्मजिज्ञासा। (ब्रह्म सूत्र १.१.१)
एक सूत्र जैसे 'जन्माद्यस्य यत: ।' इसका अर्थ लिखा एक आचार्य ने छप्पन पेज में! तर्क वितर्क! तो वेदव्यास ने सोचा कि मेरे इस ग्रंथ का बड़ा अनर्थ होगा, लोग नये नये मतलब निकालेंगे क्योंकि बहुत संक्षिप्त हैं वो शब्द। तो उन्होंने सोचा कि अपने सिद्धांत का मैं स्वयं अर्थ लिख जाऊॅं ताकि कोई गड़बड़ न कर सके। तो उन्होंने भागवत ग्रंथ लिखा, अठारह हजार श्लोक।..
तो लोगों ने मुझे भी कहा कि आप भी अपना सिद्धांत लिख दीजिये। तो मैंने कहा कि मैं भी संस्कृत में लिख दूॅंगा तो कितने आदमी समझेंगे? तो मैंने निश्चय किया कि मैं कविता में लिखूॅंगा। तो मैंने थोड़ा सा संक्षेप में और क्रमबद्ध अपना सिद्धांत अपनी राइटिंग में लिखा है। उसका नाम रखा है - कृपालु त्रयोदशी। तेरह दोहे हैं कुल। उसी में सब शास्त्र वेद का सिद्धांत भर दिया है।
*जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज*
संदर्भ ग्रंथ - कृपालु त्रयोदशी
पृष्ठ संख्या - 3-6
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Kripalu Trayodashi https://www.jkpliterature.org.in/en/product/kripalu-trayodashi
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