बाहर दुख है भीतर आनंद है । बाहर प्रदर्शन है भीतर दर्शन है ।बाहर संसार है भीतर भगवान हैं ।बाहर भटकाव है भीतर ठहराव है ।बाहर हराम है भीतर आराम है सुख है ।
गाईये गुण गोपाल निरंतर :- श्री महाराज जी । तो गोपाल का गुण किसको गाना है ! तो मन को गाना है । मन कब गायगा गुण , तो जब मन अंतर्मुखी होकर , एकाग्र होकर श्री महराज जी के बतलाई साधना करेगा तब । एकांत साधना इतना आवश्यक क्यों है ? क्योंकि बाहर बहिर्मुखता है भीतर अंतर्मुखता है । बाहर अशांति है बेचैनी है , भीतर शांती है । बाहर श्रूति ज्ञान है , भीतर आत्मक तथा परमात्मक तत्वज्ञान है प्रैक्टिकल नौलेज है । बाहर प्रतिभूत ज्ञान है, भीतर अंतर्भुत ज्ञान है । बाहर अज्ञान है भीतर ज्ञान है । बाहर माया का अंधकार है,भीतर मायाधीश का प्रकाश है बाहर दुख है भीतर आनंद है । बाहर प्रदर्शन है भीतर दर्शन है । बाहर संसार है भीतर भगवान हैं । बाहर भटकाव है भीतर ठहराव है । बाहर हराम है भीतर आराम है सुख है । बाहर मृत्यु है , भीतर जीवन है । बाहर प्यास है भीतर तृप्ति है । बाहर फुहरता है , भीतर सु़ंदरता है । बाहर परिदृश्य है , भीतर अंतर्दृश्य है । बाहर अवरोध है , भीतर निरंतरता है । बाहर विरोध है अंदर सहयोग है । बाहर अन्यता है भीतर अनन्यता है । बाहर अनित्य है भीतर नित्य है । बाहर लोक रंजन है , भीतर ...