मुर्ति पुजा क रहस्य , भगवान श्री कृष्ण का वास्तविक रंग कैसा है ।
संसार में अगर श्यामसुन्दर के रंग की कोई वस्तु एक प्रतिबिम्ब रुप में आप जानना चाहें, तो ऐसा करें यहाँ गाँवों में अलसी का फूल होता है अलसी का पेड़ होता है उसमें एक फूल होता है हलका नीला , उसके ऊपर जब सबेरे - सबेरे की सूर्य की किरण पड़ती है लाल लाल , तो वो जो फूल में सूर्य की लाल किरण का मिक्श्चर होता है , ऐसा आईडिया आप ले सकते हैं, श्यामसुन्दर के शरीर के रंग का ।
लेकिन ऐसी कोई मूर्ति बनी नहीं । इतने बड़े साइंस के युग में भी या तो धर दिया काला पत्थर या तो धर दिया सफ़ेद पत्थर ये ठाकुर जी हैं । अब हमारे मन को कैसे भावे ?
अरे ये मूर्ति बड़ी चमत्कारी है । इस डर के मारे हम जाते हैं मंदिर में । चमत्कारी ?
अरे चमत्कारी फमत्कारी कुछ नहीं होता , ये हमारी भावना का फल देती है मूर्ति ।
मूर्ति में कोई बात कुछ नहीं है । उसी मूर्ति को हजारों हथौड़ी मारा है शिल्पी ने , लोहे की हथौड़ी से मार- मार करके उनके हाथ पैर बनाये हैं । वही मूर्ति है ये । अजी लेकिन , अब तो मंदिर में आ गई है । मंदिर क्या है , मिस्त्रियों ने चढ़-चढ़ के उसके ऊपर दीवार बना दी , मंदिर खड़ा किया है और क्या है मंदिर में । लेकिन पण्डित लोगों ने मंत्र पढ़ा है अरे वो पण्डित लोग जिन्होने मंत्र पढ़ा है वो खुद ही माया बद्ध हैं वो क्या कर लेंगें । मंत्र मुँह से बोल दिया हे भगवान् ! तुम इस मूर्ति में आ जाओ स्वाहा ! आ गये । अरे वो तो वैसे ही हैं उनके वुलाने से आयेंगें क्या?
उनके बुलाने की शक्ति भी नही है उनमें । जब साक्षात् राम कृष्ण से आपका लाभ नहीं हो सकता तो , मूर्ति से क्या लाभ होगा , ये आखिरी पॉइन्ट । बिना हमारी भगवद् भावना बने , मूर्ति से हमें कभी कुछ नहीं मिल सकता , किसी मूर्ति में कोई खास बात नहीं हुआ करती , यह सिद्धान्त अटल समझे रहे । इसलिये भाग दौड़ न करो । वहाँ की देवी जी , वहाँ के हनुमान जी , वहाँ के भगवान् जी यह सब वकवास है ।
इसलिये मन से भगवान को बना लो, उसमें कोई झगड़ा नहीं , क्योंकि वो तो अपना पसंद का बनाओगे हमको कैसी आँख अच्छी लगती है वैसी वना लो , हमको कैसी नाक पसंद है , मुख पसंद है वैसा बना लो । हमको कितने श्रृंगार करने हैं ? क्या भोग लगाना है । लगाओ। कोई रोक टोक नही । और साधना करो ? - कामना और उपासना , भाग -२ , श्री महाराज जी।
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